सरकारी हलकों में इसे पुलिस व्यवस्था की कमजोरी माना गया है। कहा गया है कि पुलिसकर्मियों की कम संख्या है, जिस कारण उपद्रवियों का मनोबल बढ़ा है। आधिकारियों ने कहा है कि पुलिस पर अधिकतर हमले शराब से संबंधित मामलों में हुए।
हाल में बिहार पुलिस जगह-जगह निशाने पर आई। ऐसी कई घटनाओं में दो एएसआई की जान चली गई, जबकि कई अन्य घायल हो गए। कई जगहों पर पुलिस की टीम पर पथराव किए गए। जवानों की वर्दियां फाड़ी गईं। महिला पुलिसकर्मियों से बदसलूकी हुई। कुछ स्थानों पर किसी तरह भागकर पुलिस वालों ने अपनी जान बचाई। भागलपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, सोनपुर, सारण, मधुबनी, जहानाबाद, नवादा, औरंगाबाद और पटना जिलों से ऐसी घटनाओं की खबरें आई हैं। ज्यादातर घटनाओं में पुलिस विवाद की सूचना पा कर घटनास्थल पर पहुंची, मगर खुद लोगों के आक्रोश का निशाना बन गई। कई जगह आत्मरक्षा के लिए हवाई फायरिंग तक करने की नौबत आई।
विचारणीय है कि ऐसा पुलिस विरोधी माहौल इतने व्यापक रूप से क्यों बन गया है? शासक तबकों में इसे पुलिस व्यवस्था की कमजोरी के रूप में देखा गया है। कहा गया है कि पुलिसकर्मियों की कम संख्या है, जिस कारण उपद्रवियों का मनोबल बढ़ा है। आधिकारियों ने कहा है कि पुलिस पर अधिकतर हमले शराब से संबंधित मामलों में हुए। शराब के अवैध कारोबार से कई आपराधिक गुट जुड़े हुए हैं। ये समूह बेखौफ होकर पुलिस को भी निशाना बना रहे हैं। हकीकत यह है कि जब कभी पुलिस की पिटाई के वीडियो वायरल होते हैं, तो जनता में उसका खराब संदेश जाता है। उससे पुलिस का खौफ कम होता है। उससे ऐसी प्रवृत्तियों को और बढ़ावा मिलता है।
मगर यह घटना का सिर्फ एक पहलू है। दूसरा पहलू खास कर पुलिस, और आम तौर पर पूरे सरकारी तंत्र से बढ़ी रही ना-उम्मीदी का माहौल है। ऐसा होने की जड़ें गहराई तक जाती हैं। सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार और पुलिस की बिगड़ती गई छवि लोगों में अब बेसब्री पैदा करने लगी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसका अलग-अलग रूपों में इजहार हो रहा है। बेशक, बिहार या अन्य राज्यों में पुलिस से संबंधित नाकारात्मक धारणों को बदलने की जरूरत है। लेकिन बड़े सामाजिक- आर्थिक सवालों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो असंतोष का टिकाऊ हल निकालना मुश्किल बना रहेगा। इस लिहाज से, बिहार पुलिस पर हुए हमले एक तरह की चेतावनी हैं।