केंद्र के कुछ प्रतिबंधों और घटते निर्यात की वजह से आंध्र प्रदेश में मिर्च किसानों को भारी नुकसान हुआ है। हालात यहां तक पहुंचे हैं कि मुख्यमंत्री को केंद्र से एमआईएस के जरिए राहत देने की गुजारिश करनी पड़ी है।
भारत में कृषि क्षेत्र की मुश्किल यह है कि उदारीकरण के बाद से उसे बाजार के तमाम नुकसान तो झेलने पड़ते हैं, लेकिन इस व्यवस्था के लाभ से उसे वंचित रखा जाता है। फसलों की जब मांग बढ़ती है या निर्यात फायदेमंद दिखने लगता है, तब केंद्र घरेलू बाजार में महंगाई रोकने के नाम पर निर्यात रोक देती है। लेकिन जब मांग घटती है, तो किसानों की अतिरिक्त सहायता के लिए कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। इस विसंगति का परिणाम फिलहाल आंध्र प्रदेश के मिर्च किसान भुगत रहे हैं। केंद्र के कुछ प्रतिबंधों और घटते निर्यात की वजह से आंध्र प्रदेश में मिर्च की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हालात यहां तक पहुंचे हैं कि मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू को केंद्र से मार्केट इंटरवेंशन स्कीम (एमआईएस) के जरिए इस समस्या को सुलझाने की गुजारिश करनी पड़ी है।
एमआईएस का मकसद उस हाल में किसानों की मदद करना है, जब उन्हें लागत से दस फीसदी या उससे अधिक कम दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही हो। अभी सूरत है कि मिर्च की घरेलू मांग घट गई है, जबकि निर्यात की कीमतें गिरती चली गई हैं। रुपये की कीमतों में गिरावट के साथ-साथ पड़ोसी देशों में जारी उथल-पुथल का भी असर मिर्च किसानों पर पड़ा है। बांग्लादेश भारतीय लाल मिर्च के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस व्यापार पर असर पड़ा है। यही हाल श्रीलंका में भी है, जिसने भारत के साथ आयात में कटौती की है। आंध्र प्रदेश भारत में लाल मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक है। गुंटूर, कुरनूल जैसे जिलों के किसान अलग-अलग किस्मों की मिर्च उगाते हैं, जिन्हें निर्यात किया जाता है। गुंटूर में एशिया का सबसे बड़ा मिर्च बाजार है। मगर मौजूदा वित्त वर्ष में लाल मिर्च की कीमतों में काफी गिरावट आई है। जनवरी 2025 में आंध्र प्रदेश में इसकी थोक मासिक कीमत 12,297 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो जनवरी 2024 की कीमत यानी 16,389 रुपये से लगभग 25 फीसदी कम है। इस सूरत को देखते हुए केंद्र को चंद्रबाबू नायडू की गुजारिश पर तुरंत ध्यान देना चाहिए।