Wednesday

23-04-2025 Vol 19

अर्थव्यवस्था की असल कहानी

अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश करने की तमाम कोशिशों के बावजूद अखबारी सुर्खियां लगभग रोज ही असल कहानी बता रही हैं। बिगड़ते हालात का कारण हैः अनिश्चित आर्थिक माहौल, ऊंची महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, औसत वेतन में कम बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था की (अंग्रेजी के) के अक्षर जैसी रिकवरी।

भारतीय अर्थव्यवस्था की खुशहाल कहानी प्रचारित करने की कोशिशें अपनी जगह हैं, लेकिन इनके बीच ही देश के आम जन का असली हाल का इजहार मुख्यधारा मीडिया की सुर्खियों से भी हो जाता है। कोई ऐसा दिन नहीं जाता, जब अखबारों में ऐसी कोई खबर देखने को ना मिले, जिनसे देश में घटती मांग, उपभोग के गिर रहे स्तर, रोजगार के मोर्चे पर बढ़ रही चुनौतियों और देश में बढ़ रही आर्थिक गैर-बराबरी की कहानी सामने ना आती हो। मसलन, इन खबरों पर ध्यान दीजिएः एक खबर के मुताबिक भारत में मोबाइल फोनों की बिक्री गिर रही है। 2023 के पहले छह महीनों में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में बिक्री की यह संख्या पांच करोड़ हैंटसेट से नीचे रही। यह लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट है। ऐसा क्यों हुआ, यह भी उसी अखबारी रिपोर्ट में बताया गया। ये कारण रहेः अनिश्चित आर्थिक माहौल, ऊंची महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, औसत वेतन में कम बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था की (अंग्रेजी के) के अक्षर जैसी रिकवरी।

एक दूसरी खबर यह आई है कि भारत में दफ्तर स्थलों की मांग मद्धम हो गई है। इसका एक प्रमुख कारण यह बताया गया है कि कंपनियों ने नए कर्मियों की भर्तियों का अपना अनुमान गिरा दिया है। एक अन्य खबर है कि स्टार्टअप्स में होने वाले निवेश की वृद्धि दर दस तिमाहियों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। बिगड़ते आर्थिक माहौल का ही असर है कि केंद्र सरकार की प्रिय पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव) योजना के तहत के तहत वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक 40 हजार करोड़ रुपये से भी कम व्यय होने का अनुमान है, जबकि सरकार ने इसके लिए एक लाख 97 हजार करोड़ रुपये का मद रखा है। जब बेरोजगारी का आलम यह हो कि किसी कंपनी के 15 नौकरियों का इश्तहार निकालने पर 48 घंटो के अंदर 13 हजार आवेदन आ जाते हों, तो उस समय कौन-सी कंपनी निवेश और उत्पादन के लिए प्रेरित होगी? उत्पादन का सीधा संबंध मांग और उपभोग से होता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि लगातार गंभीर होते ये हालात सरकार की चिंता का विषय नहीं हैं।

NI Editorial

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