Wednesday

23-04-2025 Vol 19

डेटा ही तो दिक्कत है!

population census: आम तजुर्बा है कि मौजूदा सरकार को आंकड़ों की पारदर्शिता पसंद नहीं है। वरना, यह समझना मुश्किल है कि भारत में अब तक दशकीय जनगणना क्यों नहीं हुई, जबकि कोविड-19 महामारी का साया हटे लंबा अरसा गुजर चुका है।

केंद्र ने जब कुछ महीने पहले सांख्यिकी स्थायी समिति बनाई, तो उसमें शामिल 14 विशेषज्ञों में से कुछ नामों को देख कर आश्चर्य हुआ था। खास कर यह देख कर हैरत हुई कि समिति की अध्यक्षता प्रणब सेन को सौंपी गई है, जिनकी छवि आंकड़ों के प्रति ईमानदारी बरतने की रही है। बताया गया कि समिति राष्ट्रीय सैंपल सर्वे तथा अन्य सरकारी सर्वेक्षणों की सैंपलिंग एवं आंकड़ा विश्लेषण को लेकर सुझाव देगी।

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सरकार ने गुपचुप प्रणब सेन समिति को भंग कर दिया

यह जग-जाहिर है कि नरेंद्र मोदी सरकार के दौर में तमाम सरकारी आंकड़ों की साख क्षीण होती चली गई है। अब खबर है कि सरकार ने गुपचुप प्रणब सेन समिति को भंग कर दिया है। समिति के सदस्यों का तो कहना है कि समिति क्यों भंग हुई, उन्हें इसका कारण तक नहीं बताया गया है। अधिकारियों को मीडिया से जरूर कहा है कि अब राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षणों के बारे में स्थायी संसदीय समिति बन गई है, इसलिए दोनों समितियों का दायरा टकरा रहा था। जबकि सूत्रों के आधार पर छपी अखबारी रिपोर्टों में बताया गया है कि एक बैठक के दौरान सेन समिति के सदस्यों ने जनगणना में हो रही देर पर अधिकारियों से सख्त सवाल पूछे।

 

2021 में कोविड महामारी के कारण टाला गया

मुमकिन है कि सरकार इससे खफा हो गई हो। आम तजुर्बा है कि मौजूदा सरकार को सवाल और आंकड़ों की पारदर्शिता पसंद नहीं है। वरना, यह समझना किसी के लिए मुश्किल है कि भारत में अब तक दशकीय जनगणना क्यों नहीं हुई? 2021 में इसे कोविड-19 महामारी के कारण टाला गया था, हालांकि उसी वर्ष तमाम चुनाव कराए गए। बहरहाल, महामारी का साया हटे लंबा अरसा गुजर चुका है।

दुनिया में कोई ऐसा प्रमुख देश नहीं है, जहां अब तक जनगणना ना हुई हो। इसलिए यह कहने का आधार बनता है कि मोदी सरकार ठोस एवं विश्वसनीय आंकड़ों के स्रोत जनगणना को जानबूझ कर टाल रही है। आंकड़े समय की सच्चाई को बताते हैं। आंकड़े ना हो, तो मनमानी कहानियां बनाई जा सकती हैं। जिस सरकार की प्राथमिकता मनपसंद आंकड़े तैयार कर विमर्श को भ्रमित करना और उसके जरिए मनगढ़ंत नैरेटिव्स को विश्वसनीय बनाना रहा हो, विशेषज्ञों से उसका गुरेज समझा जा सकता है।

NI Editorial

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