Thursday

24-04-2025 Vol 19

खुलेआम हत्याओं से चिंता

गवाह किसी भी मुकदमे की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। आरोपी को सजा होना काफी हद तक उसकी गवाही पर निर्भर करता है। गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती है, तो फिर गंभीर आपराधिक मामलों में इंसाफ की उम्मीद भी छोड़ देनी होगी।

बिहार में हाल में सरेआम हत्याएं हुई हत्याओं ने राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंता पैदा कर दी है। पिछले दिनों अररिया में पत्रकार विमल कुमार यादव की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उसके अलावा कम से कम महत्त्वपूर्ण मुकदमों के तीन अन्य गवाह भी गोलियों का निशाना बन चुके हैँ। गौरतलब है कि इन सभी मामलों में निशाना बने लोगों को पहले से धमकियां मिल रही थीं, लेकिन उनकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए। इसीलिए इन घटनाओं से राज्य सरकार आलोचनाओं के केंद्र में आई है। पत्रकार विमल कुमार यादव अपने छोटे भाई और सरपंच शशि भूषण की चार वर्ष पूर्व हुई हत्या के एकमात्र गवाह थे। उन्हें कई मौकों पर भाई के हत्यारों के खिलाफ गवाही देने से रोका गया था। बात नहीं मानने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी। लेकिन उन्होंने गवाही दी। नतीजा 17 अगस्त की सुबह उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इस घटना के तीन दिन बाद बेगूसराय जिले के बछवाड़ा में एक रिटायर्ड शिक्षक जवाहर चौधरी  को गोलियों से भून डाला गया। अपने छोटे पुत्र नीरज चौधरी की 2021 में हुई हत्या के मामले में वे चश्मदीद गवाह थे। आरोपी उन्हें इस मामले में पीछे हटने की धमकी दे रहे थे। लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं थे, तो अगली गवाही के ठीक एक दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई। 

उधर सारण जिले में एक हत्याकांड के गवाह गवाही से ठीक पहले हत्या कर दी गई। परिजनों का आरोप है कि उन्हें पहले जहर दिया गया और फिर उनके शव को नहर के किनारे फेंक दिया गया। साफ है कि हालिया घटनाएं न्याय प्रक्रिया को बाधित करने के प्रयास में की गई हैं। गवाह किसी भी मुकदमे की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। आरोपी को सजा होना काफी हद तक उसकी गवाही पर निर्भर करता है। गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती है, तो फिर गंभीर आपराधिक मामलों में इंसाफ की उम्मीद भी छोड़ देनी होगी। इसलिए हालिया हत्याओं में जवाबदेही प्रशासन और सरकार की बनती है। वरना, बिहार में “जंगल राज” के आरोप फिर संगीन होने लगेंगे।

NI Editorial

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