दुनिया का इतिहास ऐसी कहानियों से भरा-पड़ा है, जब ताकतवर देशों के खास हितों को जब चोट पहुंची, तो वे असल युद्ध की हद तक चले गए। क्या इस बार चीन और अमेरिका अपने टकराव को सिर्फ तकनीक के क्षेत्र तक सीमित रखने में सफल होंगे?
चीन के खिलाफ अमेरिका ने जिस चिप वॉर की शुरुआत की, अब वह खतरनाक मोड़ पर पहुंचता दिख रहा है। अब चीन ने ऐसा कदम उठाया है, जिससे सेमीकंडक्टर से जुड़े तमाम उद्योगों के साथ-साथ अमेरिका की डिफेंस इंडस्ट्री के लिए भी मुश्किलें खड़ी होंगी। दुनिया का इतिहास ऐसी कहानियों से भरा-पड़ा है, जब ताकतवर देशों के खास हितों को जब चोट पहुंची, तो वे असल युद्ध की हद तक चले गए। अब देखने की बात होगी कि क्या इस बार चीन और अमेरिका अपने टकराव को सिर्फ तकनीक के क्षेत्र तक सीमित रखने में सफल होते हैं। फिलहाल अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन चीन की यात्रा पर हैं। उनकी यात्रा का मकसद ही यह है कि दोनों देशों में बढ़ रहे तनाव के बावजूद आम आर्थिक और कारोबारी संबंध कायम रहें। जबकि उनकी यात्रा से ठीक पहले चीन ने अगले एक अगस्त से गैलियम और जर्मेनियम धातुओं का निर्यात सीमित करने का एलान किया। इन दोनों खनिजों का सेमीकंडक्टरों, रडार, इलेक्ट्रिक वाहनों, अक्षय ऊर्जा पैदा करने वाले उपकरणों आदि में व्यापक रूप से उपयोग होता है।
साफ तौर पर चीन का यह जवाबी कदम है। इससे पहले अमेरिका और उसके सहयोगी देश चीन को हाईटेक चिप और सेमीकंडक्टरों का निर्यात रोकने का फैसला ले चुके हैँ। जर्मेनियम और गैलियम के लिए दुनिया काफी हद तक चीन पर निर्भर है। यूरोपियन कमीशन के एक अध्ययन के मुताबिक हाल के वर्षों में इन दोनों धातुओं के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन चीन में हुआ है। बाकी जर्मेनियम उत्पादन में रूस, जापान और अमेरिका का हिस्सा क्रमशः पांच, दो और दो प्रतिशत है। बाकी गैलियम उत्पादन में रूस और यूक्रेन का हिस्सा दो-दो प्रतिशत है। ह्वाइट हाउस साल 2021 में कहा था कि इन दोनों धातुओं के मामले में उसकी चीन पर निर्भरता है, क्योंकि उनका सबसे ज्यादा भंडार वहीं है। ह्वाइट हाउस ने कहा था कि इन दोनों धातुओं की सप्लाई से अमेरिका की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ जुड़ी हुई है। तो अब दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हैं कि अपनी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका क्या कदम उठाता है?