अरविंद पनागढ़िया के अध्यक्षता वाले वित्त आयोग ने केंद्र की गुजारिश मानी, तो हर वर्ष राज्यों को लगभग 35 हजार करोड़ रुपये का कम ट्रांसफर होगा। उधर केंद्र का राजस्व बढ़ जाएगा। वित्त आयोग को अपनी सिफारिशें 31 अक्टूबर तक देनी है।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार वित्त आयोग से कहने जा रही है कि वह अपनी कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा घटा दे। फिलहाल, टैक्स से जितनी उगाही होती है, उसका 41 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को ट्रांसफर होता है। केंद्र सिफारिश करने जा रहा है कि यह रकम 40 फीसदी कर दी जाए। अरविंद पनागढ़िया के अध्यक्षता वाले वित्त आयोग ने ये गुजारिश मानी, तो हर वर्ष राज्यों को लगभग 35 हजार करोड़ रुपये का कम ट्रांसफर होगा। उधर केंद्र का राजस्व बढ़ जाएगा। वित्त आयोग को अपनी सिफारिशें 31 अक्टूबर तक देनी है, जिस पर अमल अगले वित्त वर्ष यानी 2026-27 से शुरू हो जाएगा।
वित्त आयोग की सिफारिशें अंतिम और बाध्यकारी होती हैं। अनुमान है कि केंद्र ने राजकोषीय घाटा कम करने की एक तरकीब के तौर पर यह सुझाव दिया है। केंद्र का राजकोषीय का घाटा जीडीपी के 4.8 प्रतिशत के बराबर है। मगर राज्यों का साझा घाटा भी 3.2 फीसदी है। इसके अलावा अनेक राज्य कर्ज के भारी बोझ से दबे हुए हैं। जन-कल्याण संबंधी कई कार्यों और सामान्य प्रशासन की जिम्मेदारी राज्यों पर होती है। उन्हें स्थानीय निकायों को भी धन आवंटित करना होता है। इसलिए उनके संसाधन में कटौती को सही सोच नहीं माना जा सकता। जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के हाथ पहले ही बंध गए हैं। इस नई कर व्यवस्था के कारण राज्यों को हुई क्षति की भरपाई की अवधि गुजर चुकी है।
उसके बाद से राज्य केंद्र से होने वाले ट्रांसफर पर ही लगभग पूरी तरह आश्रित हो गए हैं। ऐसे में उन्हें मिलने वाली रकम में कटौती का बहुत खराब पैगाम जाएगा। वैसे ही कई राज्यों में वित्तीय एवं अन्य स्वायत्तताओं के सिकुड़ने की शिकायत गहरी होती चली गई है। उस पर खुल कर असंतोष जताया जा रहा है। इस बीच, केंद्र की इस तरह की सिफारिश असंतोष को और हवा देगी। यह देश के दीर्घकालिक हित में नहीं होगा। बेहतर यह है कि संवैधानिक भावना के अनुरूप केंद्र और राज्यों की अपने-अपने मामलों में स्वायत्तता बनी रहे। गौरतलब है कि वित्तीय स्वायत्तता से अधिक महत्त्वपूर्ण और कुछ नहीं होता।