Wednesday

23-04-2025 Vol 19

फटी शर्ट, ऊंची नाक

देश की जिन ज्वलंत समस्याओं को लगभग भाजपा के घोषणापत्र में नजरअंदाज कर दिया गया है, उनमें बेरोजगारी, महंगाई, उपभोग का गिरता स्तर और सुरसा की तरह बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी शामिल हैं।

भारतीय जनता पार्टी के समर्थक विश्लेषकों की नजर देखें, तो पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में “रेवड़ियों” का वादा नहीं किया है। इसके विपरीत उसने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के अनुरूप वादे किए हैं। उसने अधिक संख्या में बुलेट ट्रेन, वंदे भारत ट्रेनों, आईआईटी- आईआईएम आदि की स्थापना, कॉमर्शियल विमानों के उत्पादन का इको-सिस्टम भारत ले आने आदि जैसे उद्देश्य घोषित किए हैँ।

राजनीतिक मोर्चे पर पार्टी ने समान नागरिक संहिता पर अमल और नागरिकता संशोधन कानून के तहत अधिक संख्या में लोगों को नागरिकता देने का वादा किया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर उसने मिलिटरी थियेटर कमांडों की स्थापना एवं चीन- पाकिस्तान- म्यांमार की सीमाओं पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने का इरादा जताया है। कल्याणकारी योजनाओं के तहत मध्य वर्ग के लिए मकान निर्माण को किफायती बनाने और अधिक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था करने की बात कही है।

“रेवड़ी” के दायरे में शायद उसका सिर्फ यह वादा आता है कि 70 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ दिया जाएगा। मगर देश की जिन ज्वलंत समस्याओं को लगभग इस घोषणापत्र में नजरअंदाज कर दिया गया है, उनमें बेरोजगारी, महंगाई, उपभोग का गिरता स्तर और सुरसा की तरह बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी शामिल हैं। इससे ऐसा लगता है कि भाजपा नेतृत्व की गणना में इन समस्याओं से पीड़ित लोगों की ज्यादा फिक्र नहीं है। बल्कि उसे इस बात का आत्म-विश्वास है कि ऐसे मतदाताओं को लुभाने के लिए हिंदुत्व का आकर्षक एजेंडा उसके पास है।

फिर अगर ऐसी बातें लोगों को आकर्षित करती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले और कुछ ना किया हो, लेकिन “दुनिया में देश की इज्जत बढ़ा दी” है, तो फिर उन्हें इस बात पर भी गर्व क्यों नहीं होगा कि देश में बुलेट ट्रेन, वंदे भारत जैसी आरामदायक ट्रेनें आदि चल रही हैं और अब विमान भी देश में बनें- यह प्रधानमंत्री का एजेंडा है! आखिर इससे भी तो देश को शान बढ़ेगी! वे भाजपा के शुक्रगुजार होंगे कि उनकी अपनी शर्ट फटी होने के बावजूद आखिर “देश” चमक-दमक से भरपूर हो रहा है!

NI Editorial

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