Wednesday

23-04-2025 Vol 19

शक की वजह है माहौल

मामले को इसलिए अत्यधिक गंभीर समझा गया है, क्योंकि विपक्षी नेता लगातार निशाने पर हैं। इसके पहले पेगासस का मामला उठ चुका है, जिसके जरिए सरकार से असहमत लोगों के फोन हैक करने की शिकायत चर्चित हुई थी। 

अनेक राजनेताओं और कुछ अन्य व्यक्तियों को एपल कंपनी का नोटिस मिलने की खबर आते ही केंद्र सरकार ने इस प्रकरण की जांच का एलान किया। हालांकि केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह कयास भी लगाया कि संभवतः किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण एपल के कुछ यूजर्स को ऐसा नोटिस आ गया होगा। इसके बाद एपल का स्पष्टीकरण भी आ गया। सामान्यतः उसके बाद विवाद खत्म हो जाता, लेकिन माहौल ऐसा है कि ये चर्चा अभी ठहरने वाली नहीं है। मामले को इसलिए अत्यधिक गंभीर समझा गया है, क्योंकि आए नोटिस में लिखा है कि यूजर्स के फोन को संभवतः सरकार समर्थित एजेंसियां हैक करने की कोशिश कर रही हैं। चेताया  गया है कि हैकर सफल हुए, तो वे दूर से ही फोन में मौजूद सभी सूचनाओं तक पहुंच बना सकते हैं। उचित ही इस घटनाक्रम को पेगासस विवाद की शृंखला में देखा गया है। जुलाई 2021 में दुनियाभर के 17 मीडिया संस्थानों ने- पेगासस प्रोजेक्ट- नाम से एक रिपोर्ट छापी थीं। उसमें दावा किया गया कि एक इजराइली कंपनी द्वारा बनाए गए सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए विभिन्न देशों की सरकारों ने अपने यहां पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने की कोशिश की।

रिपोर्ट में भारत में 300 से ज्यादा पत्रकारों, नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के हैक करने की कोशिश का दावा किया गया था। हालांकि भारत सरकार ने कभी यह नहीं माना कि उसने पेगासस का इस्तेमाल दूसरों की जासूसी के लिए किया, लेकिन कभी इस बात का दो टूक खंडन भी नहीं किया। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, तो अदालत ने विशेष जांच समिति बनाई। समिति ने जिन 29 उपकरणों की जांच की, उनमें से पांच में “मैलवेयर” पाया गया, लेकिन समिति को यह प्रमाण नहीं मिला कि यह पेगासस था। इससे ये मामला खत्म हो गया, लेकिन उठा संदेह खत्म नहीं हुआ। उसी पृष्ठभूमि में ताजा मामला सामने आया है। वैसे भी देश में विपक्षी नेताओं और सरकार से असहमत नागरिकों के खिलाफ कार्रवाइयों का ऐसा वातावरण बना हुआ है, जिसमें ऐसे प्रकरण सनसनी पैदा कर देते हैं। और इसका एक कारण यह भी है कि ऐसे मामलों का सच कभी सामने नहीं आता।

NI Editorial

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