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छग में आदिवासी विकास से यूएन संतुष्ट

रायपुर। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में अनुसूचित जनजातीय वर्ग (Scheduled Tribes) की जिंदगी को बेहतर बनाने की कोशिशें जारी हैं। एक तरफ जहां उनसे लघु वनोपज (Minor Forest Produce) की समर्थन मूल्य पर खरीदी की जा रही है, वहीं वनवासियों को सामुदायिक वन अधिकार दिए जाने का क्रम जारी है। राज्य सरकार की कोशिशों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी संतोष जताया है। राज्य में ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए लगातार योजनाओं को अमली जामा पहनाया जा रहा है। एक तरफ गोबर और गोमूत्र की खरीदी की जा रही है तो दूसरी ओर लघु वनोपज को समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है। यह ऐसा राज्य है जहां बड़ी तादाद में अनुसूचित जनजातीय वर्ग निवास करता है। ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में बदलाव लाने के इन प्रयासों का असर भी जमीनी स्तर पर दिख रहा है।

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संयुक्त राष्ट्र संघ कृषि संगठन (United Nation Agriculture Organization) के आदिवासी विभाग के प्रमुख डॉ. योन फनेर्डेस लेरिनोआ (Yon Fanardes Lerinoa) का छत्तीसगढ़ के प्रवास पर आना हुआ। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी और वनवासियों को सामुदायिक वन अधिकार दिए जाने को सकारात्मक कदम बताया। इस मौके पर डॉ. लेरिनोआ ने मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह टेकाम (Prem Sai Singh Tekam) और छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधिमंडल को संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व खाद्य और कृषि संगठन के मुख्यालय भी आने का आमंत्रण दिया। डॉ. लेरिनोआ ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासी कल्याण के लिये चलाई जा रही योजनायें निश्चित ही आदिवासी समाज के लिये सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण है।

इस मौके पर डॉ. टेकाम ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासियों के कल्याण और उन्नति के लिए चलाई जा रही योजनाओं, कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए वनोपजों के समर्थन मूल्य और वनोपज खरीदी की सफलताओं के बारे में चर्चा की। मंत्री डॉ. टेकाम ने डॉ. लेरिनोआ को यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में मिलेट्स (मोटे अनाज), विभिन्न कंदों और अन्य परंपरागत जड़ी बूटियों के संरक्षण-संवर्धन को भी विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। डॉ. लेरिनोआ ने मुलाकात के दौरान कहा कि इन प्रयासों को शैक्षणिक गतिविधियों से भी जोड़ना चाहिये। विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों की पाठशालाओं, विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में आदिवासी समाज के इस ज्ञान को औपचारिक पाठ्यक्रम के रूप में शामिल करना चाहिये। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में इसके अनुभव बेहद परिवर्तनकारी साबित हुए हैं। (आईएएनएस)

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By NI Desk

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