वेद और शब्द नित्य एकरस हैं
शब्द दो प्रकार का होता है-एक नित्य और दूसरा कार्य। इनमें जो शब्द, अर्थ और सम्बन्ध परमेश्वर के ज्ञान में हैं, वे सब नित्य होते हैं, और जो लोगों की कल्पना से उत्पन्न होते हैं, वे कार्य होते हैं, क्योंकि जिसका ज्ञान और क्रिया स्वभाव से सिद्ध और अनादि हैं, उसका सब सामर्थ्य भी नित्य ही होता है। इससे वेद भी उसकी विद्यास्वरूप होने से नित्य ही हैं, क्योंकि ईश्वर की विद्या अनित्य कभी नहीं हो सकती। प्रत्येक कल्प में वेद यथावत रहती है। एक या एक से अधिक वर्णों के योग से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक इकाई को शब्द...