religion and politics

  • न शर्म न हया: संविधान की रोज हत्या.?

    भोपाल। भारतीय आजादी के इस हीरक वर्ष में कभी ‘विश्वगुरू’ का दर्जा प्राप्त हमारा देश अब किसी का ‘शिष्य’ बनने के काबिल भी नही रहा है, यद्यपि हमारे भाग्यविधाता सत्तारूढ़ नेता विश्वभर में जाकर अपनी खुद की प्रशंसा करते नहीं थकते, किंतु वास्तव में हमारी स्थिति उस मयूर जैसी है जो प्रगति के बादल देखकर अनवरत् नाचता है और उपलब्धि के अभाव में बाद में आंसू बहाता है। आजादी के बाद से हमारे देश में भी राजनीति के अलग-अलग दौर रहे है, जवाहरलाल के जमाने की राजनीति प्रगति की कल्पना पर आधारित थी तो इंदिरा जी के जमाने से सत्ता...