Thursday

17-04-2025 Vol 19

political parties

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इफ्तार का सीजन लौट आया है

Iftar : पिछले कुछ समय से इफ्तार की दावतें नहीं होती थीं।

‘वादे पे तेरे मारा गया बंदा मैं सीधा-सदा’

आज हम जिस विषय पर पाठकों का ध्यान आकर्षित करने जा रहे हैं वे हैं चुनावी वादे। इन वादों को करने वाले नेता चाहे किसी भी दल के क्यों...

उपचुनावों से न बनेगा, न बिगड़ेगा!

एकाध अपवादों को छोड़ दें तो आमतौर पर उपचुनावों का देश या राज्य की राजनीति पर कोई खास असर नहीं होता है।

उपचुनाव में सियासी दलों के दिग्गजों की होगी अग्निपरीक्षा

उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दिग्गजों की अग्निपरीक्षा है।

भाषा से भी चुनाव में ठगा जाता है!

भारत में चुनाव अब विकासवादी नीतियों या विचारधारा के ऊपर नहीं हो रहे हैं, बल्कि लोकलुभावन घोषणाओं और भाषण की जादूगरी पर हो रहे हैं।

सामाजिक सुरक्षा की जगह रेवड़ी

दुनिया के सभ्य, विकसित और लोकतांत्रिक देशों ने अपने नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा का कवच उपलब्ध कराया है। उन्हें मुफ्त में अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मिलती है।

नीति का तो काम ही क्या!

कभी भारत में एक नीति आयोग हुआ करता था। नीतियों की घोषणाओं की प्रेस कॉन्फ्रेस हुआ करती थी। संसदीय कमेटियों में विचार और जानकारों व जनता की फीडबैक पर...

भारत एक ‘गप्पी गाय’ है

हम लोग बातें बनाने वाले, परन्तु दरअसल निरीह, नासमझ, और निकम्मे हैं।

सभी सांसदों को दलीय हितों से ऊपर उठकर देश के लिए काम करना चाहिए: पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राजनीतिक दलों से अपील करते हुए कहा है कि सभी राजनीतिक दलों के सांसदों को दलीय हितों से ऊपर उठकर देश के लिए काम...

बिहार में राजनीतिक दलों की नजर अब 4 विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर

बिहार के रुपौली विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी की जीत और दोनों गठबंधन की हार के बाद सभी राजनीतिक दलों की नजर अब चार विधानसभा सीटों पर होने वाले...

राजनीतिक विभाजन कहां तक पहुंच गया

भारत की राजनीति इतनी विभाजित कभी नहीं रही, जितनी अभी है। पार्टियां और नेता एक दूसरे को अब राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं मान रहे हैं, बल्कि शत्रु मान रहे हैं।

संवेदनशील मुद्दों को चुनाव से दूर रखें

देश के आदिवासी और अनुसूचित जाति समूहों की खान-पान की संस्कृति के बारे में भी जानना चाहिए और चुनावी लाभ हानि के लिए ऐसी संवेदनशील मुद्दों को राजनीति में...

एक साथ चुनाव से पहले सुधार जरूरी

मीडिया में जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक कमेटी ‘एक देश, एक चुनाव’ के नाम से संविधान में एक खंड जोड़ने की सिफारिश कर सकती है One Nation-One...

क्या पार्टियां देवमंदिर और नेता देवता है?

जनीतिक दल अन्य संस्थाओं, नागरिकों से ऊपर और वित्तीय हिसाब देने से परे हैं? इस से बड़ी जबरदस्ती और सत्ता का दुरुपयोग क्या होगा

भारत में कसौटी पर चुनावी रेवड़ियां…!

कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में आगामी चुनाव से 6 महीने पहले ही एसे वादों की फेहरिस्त जारी कर दी है।

लोकतंत्र की अफ़ीम के चटोरों का देश

पांच बरस की हुकूमत में दोनों को आधे-आधे वक़्त मुख्यमंत्री बनाने के समझौता-प्रयास करने पड़ें तो इसे हम कैसा प्रजातंत्र कहेंगे?

‘राज्यपाल’ विवाद : राजनीति ने संवैधानिक पद को बदनाम किया…?

देश का संविधान मूल रूप से किस की कैद में है तथा उसका राजनेता राज्यपाल किस तरह दुरुपयोग के माध्यम बने हुए है।

झूठ की आईटी सेलो से भारत का क्या बनेगा?

भारत की सनातन वैदिक संस्कृति अनेक अर्थों में विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है। क्योंकि ये व्यक्ति, पर्यावरण व समाज के बीच संतुलन पर आधारित जीवन मूल्यों की स्थापना करती...

घटनाएं विपक्षी एकता बनवा रही हैं

वैसे तो राजनीति के बारे में माना जाता है कि वहां सब कुछ योजना के तहत होता है लेकिन कई बार कुछ घटनाएं किसी योजना का हिस्सा नहीं होती...

चुनाव से पहले कानूनी लड़ाई!

विपक्षी पार्टियों को अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले लंबी और बेहद सघन कानूनी लड़ाई लड़नी है। उससे बचेंगे तभी चुनाव लड़ने के लायक रहेंगे।

उद्धव जैसा हस्र किसी का हो सकता है

भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टियों को तो सावधान होना ही चाहिए साथ ही भाजपा विरोधी दूसरी पार्टियों को भी सावधान होना चाहिए।