Gulag Archipelago

  • कैद में सोल्झेनित्सिन का आत्मसुधार

    सोल्झेनित्सिन ने लिखा है कि ''आदमी पर घमंड उसी तरह सहज चढ़ता है जैसे सुअर पर चर्बी चढ़ती है।'' यानी अनायास। ... सोल्झेनित्सिन ने अपने दीर्घ, कठिन जीवन, और हजारों अन्य लोगों के जीवन के अवलोकन से पक्की तौर पर समझा था कि अच्छे और बुरे का भेद करने वाली रेखा ''हर मनुष्य की आत्मा से होकर गुजरती है"। उसे राष्ट्रों, समाजों, दलों, मतवादों में कदापि निर्धारित नहीं किया जा सकता। गुलाग आर्किपेलाग की विरासत – 4 रूसी नागिरकों का सत्य बतलाते हुए सोल्झेनित्सिन ने अपने को देवता नहीं दिखाया है। उन्होंने नोट किया है कि अपनी गिरफ्तारी से पहले,...

  • करोड़ों लोगों की पीड़ा, यंत्रणा की बीती का दस्तावेज

    नाजी दस्ते केवल यहूदियों का खात्मा करते थे, और अपने संदिग्ध विरोधियों को। पर यदि किसी गैर-यहूदी बंदी के विरुद्ध वस्तुत: कोई प्रमाण नहीं मिलता तो उसे छोड़ दिया जाता था। यानी, नाजी जर्मनी में आम जर्मनों पर कोई आंतक न था। गैर-राजनीतिक लोग बेखटके जीते रहे थे। यह सोवियत संघ में बिलकुल नहीं था। जिस व्यक्ति को पकड़ लिया गया, उसे छोड़ने का कोई सवाल ही न था।.. पूरी सोवियत व्यवस्था, कम्युनिस्ट पार्टी का पूर्णत: विमानवीयकरण हो गया था। किसी मानवीय मूल्य के लिए उस में स्थान नहीं था। गुलाग आर्किपेलाग की विरासत -3 'गुलाग आर्किपेलाग' के आरंभिक सैकड़ों...

  • रूस तब नयी-नयी यंत्रणाओं की प्रयोगशाला था

    यह सोवियत रूस में 1950  के दशक में जानी-मानी बात थी कि लाखों लाख रूसी कैदियों से जो अपराध जबरन कबुलवाये गये, वे वस्तुत: निरपराध लोग थे। पर बाहरी दुनिया को इस की कोई खबर न थी। इक्के-दुक्के व्यक्तियों के बताने पर उसे अतिरंजित आलोचना समझा जाता था, जो इतने अविश्वसनीय लगते थे! पर वास्तविकता उस से भी अधिक भयावह थी। गुलाग आर्किपेलाग की विरासत -2 सोवियत व्यवस्था में विविध शहरों को कोटा देकर भी गिरफ्तारियाँ और दंड दिए जाते थे। फलाँ शहर या जिले में इतनी संख्या में 'जनता के दुश्मनों' को पकड़ना है। यह सोवियत खुफिया पुलिस वालों...

  • ‘गुलाग आर्किपेलाग’ से दुनिया सिहर गई थी

    स्तालिन द्वारा देहातों पर इस उत्पीड़न में कुल मिलाकर एक करोड़ से अधिक जानें गईं! यह सब यूरोपीय बुद्धिजीवियों को बिलकुल पता न था। वे केवल 1930 के दशक में रूस में दिखावटी मुकदमों के द्वारा मारे गये नेताओं, लेखकों, आदि 'द ग्रेट पर्ज' वाली कुख्यात बातें ही जानते थे। क्योंकि उन में मारे गए अधिकांश लोग रूसी बुद्धिजीवी ही थे।(यह लेख प्रोफेसर गैरी साउल मॉरसन द्वारा जून 2024  में लिखी गई समीक्षा 'द मास्टरपीस ऑफ अवर टाइम' पर आधारित है।) 'गुलाग आर्किपेलाग' की विरासत - 1 आज से पचास वर्ष पहले, रूसी लेखक अलेक्सांद्र सोल्झेनित्सिन का महान ग्रंथ 'गुलाग...