कैद में सोल्झेनित्सिन का आत्मसुधार
सोल्झेनित्सिन ने लिखा है कि ''आदमी पर घमंड उसी तरह सहज चढ़ता है जैसे सुअर पर चर्बी चढ़ती है।'' यानी अनायास। ... सोल्झेनित्सिन ने अपने दीर्घ, कठिन जीवन, और हजारों अन्य लोगों के जीवन के अवलोकन से पक्की तौर पर समझा था कि अच्छे और बुरे का भेद करने वाली रेखा ''हर मनुष्य की आत्मा से होकर गुजरती है"। उसे राष्ट्रों, समाजों, दलों, मतवादों में कदापि निर्धारित नहीं किया जा सकता। गुलाग आर्किपेलाग की विरासत – 4 रूसी नागिरकों का सत्य बतलाते हुए सोल्झेनित्सिन ने अपने को देवता नहीं दिखाया है। उन्होंने नोट किया है कि अपनी गिरफ्तारी से पहले,...