शिक्षा पर सार्थक फिल्मों की जरुरत
राजनीतिक घटनाक्रमों और राजनेताओं पर हमेशा फ़िल्में बनती रहीं हैं। जब जिस विचारधारा का ज़्यादा प्रभाव रहता है, उसके पक्ष की कहानियां प्रमुखता पातीं हैं और विपक्ष के क़िस्सों को अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता है। कुछ फ़िल्में ऐसी भी होती हैं जो दलगत विचारधारा से आगे निकल कर समाज में एक सकारात्मक भूमिका निभाने का काम करती हैं। ऐसे मामलों में ही सिनेमा एक माध्यम के रूप में बेहद सार्थक भूमिका निभाता है। 'सिने-सोहबत' में आज की फ़िल्म है 'दसवीं', जिसके निर्देशक हैं तुषार जलोटा। ये उनकी निर्देशित पहली फ़िल्म थी। इस फिल्म के लेखक हैं रितेश शाह,...