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01-03-2025 Vol 19

Tag: economy crisis

आर्थिक तस्वीर सुधर नहीं रही है

नए साल के पहले दिन केंद्र सरकार ने वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी कलेक्शन का आंकड़ा पेश किया। इसके मुताबिक दिसंबर में सरकार को 1.77 लाख करोड़ रुपए...

भारतीय मध्य वर्ग का ऐसे ढहना!

भारत में मध्य वर्ग सिकुड़ रहा है, ये तथ्य अब देश की मार्केट एजेंसियां और कॉरपोरेट सेक्टर भी बताने लगा है।

देश की सेहत और शेयर बाजार!

नरेंद्र मोदी के राज में मध्यवर्ग की संख्या और शेयर बाजार की तेजी का मामला पहेली जैसा है।

रिपोर्ट अनेक, संकेत एक

Economy crisis: देहाती इलाकों में कर्ज के बोझ तले दबे परिवारों की संख्या में साढ़े चार प्रतिशत इजाफा हुआ है।

चमक पर ग्रहण क्यों?

वित्तीय बाजारों की चमक ही एकमात्र पहलू है, जिस पर भारत के आर्थिक उदय का सारा कथानक टिका हुआ है।

आंकड़ों के आईने में

कृषि पर रोजगार की निर्भरता घटना विकास की आम प्रक्रिया का हिस्सा है।

वित्तीयकृत अर्थव्यवस्था में

शेयर बाजारों में गिरावट है। उस समय, जब लिस्टेड इक्विटी मार्केट में कुल निवेश के बीच घरेलू सेक्टर का हिस्सा 21.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

सच बोलने की चुनौती

पिछले दस साल में भारत के लोगों की बढ़ी मुसीबत का प्रमुख कारण उनसे बोला गया झूठ या अर्धसत्य है। खासकर ऐसा आर्थिक मामलों में हुआ है।

बढ़ रही है बदहाली

भारत में जीडीपी की तुलना में बचत का स्तर 50 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है।

विषमता की ऐसी खाई

भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया था कि 2022-23 में घरेलू बचत 5.1 प्रतिशत तक गिर गई है, 47 साल का सबसे निचला स्तर है।

मुश्किल में एमएमसीजी क्षेत्र

उचित प्रयास सरकार की तरफ से नहीं किए गए हैँ। नतीजतन, गांवों में मंदी है और उसका साया एफएमसीजी कारोबार पर भी पड़ रहा है। Economy crisis

सरकारी दावों के विपरीत

भारत में आर्थिक वृद्धि दर के लाभ आम जन तक नहीं पहुंच रहे हैं, इस बारे में तो पहले से पर्याप्त आंकड़े मौजूद रहे हैं। लेकिन अब व्यापार जगत...

तमाम शोर के बावजूद

खाद्य की बढ़ती महंगाई के कारण लोगों के लिए गुजरे पांच वर्षों में स्वस्थ आहार ले पाना अधिक कठिन हो गया।

अर्थव्यवस्था की असल कहानी

भारतीय अर्थव्यवस्था की खुशहाल कहानी प्रचारित करने की कोशिशें अपनी जगह हैं, लेकिन इनके बीच ही देश के आम जन का असली हाल का इजहार मुख्यधारा मीडिया की सुर्खियों...

ब्रिटेन की ये बदहाली

यह सुनना आश्चर्यजनक लगता है कि जिस देश के साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था, वहां के लोग आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे हैँ।

बदहाली का फैलता दायरा

इस खबर की खास चर्चा हुई है कि कैसे बीते पांच साल में भारत के 72 प्रतिशत सूक्ष्म, लघु और मध्यम कारोबारियों की आमदनी बिल्कुल नहीं बढ़ी है।

अब प्रश्न औचित्य का

नदी में पानी आता है, तो सबकी नाव ऊंची होती है- यह कहावत अक्सर नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था के औचित्य को सही ठहराने के लिए कही जाती है।