economy crisis

  • रिपोर्ट अनेक, संकेत एक

    Economy crisis: देहाती इलाकों में कर्ज के बोझ तले दबे परिवारों की संख्या में साढ़े चार प्रतिशत इजाफा हुआ है। 2016-17 के सर्वे के दौरान ऐसे परिवारों की संख्या 47.40 प्रतिशत थी, जो ताजा सर्वे के समय 52 फीसदी हो चुकी थी। also read: KKR की बागडोर अब श्रेयस अय्यर की जगह इस खिलाड़ी के हाथ में…नहीं होगा यकीन श्रमिक वर्ग की बढ़ती रही दुर्दशा एक और सरकारी संस्था की रिपोर्ट ने श्रमिक वर्ग की बढ़ती रही दुर्दशा पर रोशनी डाली है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक (नाबार्ड) के अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वे (एनएएफआईएस) 2021-22 के दौरान पाया गया...

  • चमक पर ग्रहण क्यों?

    वित्तीय बाजारों की चमक ही एकमात्र पहलू है, जिस पर भारत के आर्थिक उदय का सारा कथानक टिका हुआ है। वरना, निवेश-उत्पादन-वितरण की वास्तविक अर्थव्यवस्था किसी कोण से चमकती नजर नहीं आती। अब वित्तीय बाजारों पर भी ग्रहण के संकेत हैं। अक्टूबर में विदेशी पोर्टपोलियो निवेशकों (एफपीआईज) ने भारतीय बाजारों से लगभग 94,000 करोड़ रुपये निकाल लिए। यह अभूतपूर्व है। इसके पहले किसी एक महीने में एफपीआईज ने इतनी बड़ी निकासी नहीं की थी। कोरोना महामारी ने जब दस्तक दी थी, तब मार्च 2020 में इन निवेशकों ने 61,973 करोड़ रुपये निकाले थे, जो अब तक का रिकॉर्ड था। ताजा...

  • आंकड़ों के आईने में

    कृषि पर रोजगार की निर्भरता घटना विकास की आम प्रक्रिया का हिस्सा है। उच्च शिक्षा में ऊंची भागीदारी और कंप्यूटर का अधिक उपयोग आज विकास के मूलभूत स्तंभ हैं। इन तीनों पैमानों पर कमजोर सूरत के साथ भारत आखिर कहां पहुंच सकता है? हाल में जारी आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट से यह चिंताजनक आंकड़ा सामने आया कि भारत में श्रमिकों का विपरीत विस्थापन हो रहा है। यानी बड़ी संख्या में मजदूर गैर-कृषि क्षेत्रों से वापस कृषि क्षेत्र में चले गए हैं। भारत सरकार की इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 में देश में 42.5 प्रतिशत श्रमिक कृषि क्षेत्र...

  • वित्तीयकृत अर्थव्यवस्था में

    शेयर बाजारों में गिरावट है। उस समय, जब लिस्टेड इक्विटी मार्केट में कुल निवेश के बीच घरेलू सेक्टर का हिस्सा 21.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह बड़े बाजारों के बीच अमेरिका के बाद घरेलू सेक्टर की सबसे ऊंची हिस्सेदारी है। पिछला हफ्ता भारत के शेयर बाजारों में भारी गिरावट का रहा। वजह पश्चिम एशिया में युद्ध के गंभीर होते हालात और चीन में दिए गए प्रोत्साहन पैकेज को बताया गया है। आकलनों के मुताबिक चीन में ज्यादा मुनाफे की संभावना देखते हुए विदेशी निवेशक वहां लगाने के लिए भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं। चूंकि उपरोक्त दोनों वजहें...

  • सच बोलने की चुनौती

    अब आवश्यकता देश की बहुसंख्यक जनता की वास्तविक स्थिति पर सार्वजनिक बहस की है, ताकि एक खुशहाल समाज बनाने की तरफ बढ़ा जा सके। वरना, वे हालात और गंभीर होंगे, जिनकी एक झलक चुनाव अभियान के दौरान देखने को मिली है। पिछले दस साल में भारत के लोगों की बढ़ी मुसीबत का प्रमुख कारण उनसे बोला गया झूठ या अर्धसत्य है। खासकर ऐसा आर्थिक मामलों में हुआ है। आर्थिक आंकड़ों को उनके पूरे संदर्भ में पेश करने के बजाय उनके भीतर से चमकती सूचनाओं को चुन कर इस तरह बताया गया है, मानों सबकी जिंदगी बेहतर हो रही हो। अभी...

  • बढ़ रही है बदहाली

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  • विषमता की ऐसी खाई

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  • मुश्किल में एमएमसीजी क्षेत्र

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  • सरकारी दावों के विपरीत

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  • तमाम शोर के बावजूद

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  • अर्थव्यवस्था की असल कहानी

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  • ब्रिटेन की ये बदहाली

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  • बदहाली का फैलता दायरा

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  • अब प्रश्न औचित्य का

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