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वरुण पर बोलने की क्या जल्दी थी?

भारत जोड़ो यात्रा कर रहे राहुल गांधी ने अपने चचेरे भाई और भाजपा के सांसद वरुण गांधी को लेकर फिर बयान दिया। कुछ दिन पहले जब उनसे वरुण के उनकी यात्रा में शामिल होने के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि उनको कोई दिक्कत नहीं है लेकिन भाजपा वरुण को परेशान करेगी। इस बार उन्होंने कहा है कि वे वरुण की विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। पहले वे इस बात से चिंतित थे कि भाई को उनकी पार्टी परेशान कर सकती है और अब उनकी विचारधारा से परेशान हो गए! इस विरोधाभास को भी दरकिनार करें तो सवाल है कि अभी वरुण कौन सा कांग्रेस में शामिल होने जा रहे थे, जो राहुल को बोलने की जरूरत पड़ी? क्या वरुण की तरफ से कांग्रेस के पास कोई प्रस्ताव आया था? ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। वरुण अपनी राजनीतिक लाइन तय करने में लगे हैं। उनकी विचारधारा चाहे जो हो लेकिन अभी वे सरकार की जन विरोधी नीतियों का उसी तरह से विरोध कर रहे हैं, जैसे राहुल कर रहे हैं।

तभी यह यक्ष प्रश्न हो गया है कि राहुल को बयान देने की क्या जरूरत थी? इससे भी बड़ा सवाल है कि उन्होंने क्यों वरुण को यह मैसेज दिया कि उनके लिए कांग्रेस का रास्ता बंद हैं? किया यह राहुल गांधी और उनकी टीम का असुरक्षा बोध है? क्या राहुल की टीम को लग रहा है कि वरुण कांग्रेस में आए तो कांग्रेस उनके कब्जे में चली जाएगी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि  वरुण पर राहुल का रिस्पांस बहुत बचकाना है। राहुल ने कहा कि वे वरुण की विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकते। सोचें, क्या वरुण कांग्रेस में आएंगे तो आरएसएस की विचारधारा लेकर आएंगे और कहेंगे कांग्रेस व राहुल उस विचारधारा को स्वीकार करें? ऐसा तो कहीं नहीं होता है। किसी पार्टी का नेता दूसरी पार्टी में जाता है तो पुरानी पार्टी की विचारधारा को छोड़ कर जाता है और नई पार्टी की विचारधारा को स्वीकार करता है। जैसे राहुल का पार्टी में दशकों तक रहे हिमंता बिस्वा सरमा इन दिनों भाजपा के किसी भी नेता से ज्यादा कट्टरपंथी हो गए हैं। जाहिर है कि वे भाजपा में गए तो कांग्रेस की विचारधारा छोड़ कर गए। उसी तरह अगर वरुण आते तो वे अपनी विचारधारा छोड़ कर ही आते। लेकिन राहुल को लग रहा है कि अगर वरुण कांग्रेस में आए तो राहुल को आरएसएस की विचारधारा मानने को कहेंगे!

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