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एफआईआर की राजनीति बंद होनी चाहिए

तमिलनाडु के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर दिए बयान को लेकर बिहार में एक मुकदमा दर्ज हो गया है। हैरानी नहीं होगी अगर उस एफआईआर का मामला अदालत में पहुंचे और अदालत उदयनिधि को हाजिर होने का समन जारी कर दे। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मानहानि के एक मुकदमे में गुजरात की एक अदालत में हाजिर होना है। राहुल गांधी के ऊपर महाराष्ट्र के लेकर गुजरात, बिहार, झारखंड तक मुकदमे दर्ज हैं। कांग्रेस के गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी के ऊपर असम में मुकदमा दर्ज हुआ और रातों-रात असम की पुलिस उनको गुजरात से पकड़ कर ले गई थी।

इसी तरह असम की पुलिस कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा को गिरफ्तार करने दिल्ली पहुंच गई थी और उन्हें हिरासत में भी ले लिया था। ऐसे ही पंजाब की पुलिस कुमार विश्वास को गिरफ्तार करने दिल्ली पहुंची थी। इसके अलावा भी हजारों मामले हैं, जिसमें किसी प्रदेश के नेता के ऊपर किसी दूसरे प्रदेश में मुकदमा दर्ज किया गया और इस बहाने उनको परेशान करना शुरू किया गया। एक तरह से एफआईआर को राजनीतिक हथियार बना दिया गया। जिस पार्टी की जहां सरकार होती है और पुलिस हाथ में होती है वहां विपक्षी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज होने लगते हैं और पुलिस धरपकड़ शुरू कर देती है। जहां पुलिस  सहयोग नहीं करती है वहां अदालतों से यह कार्रवाई होती है। सिर्फ नेता ही इसका शिकार नहीं हैं, फिल्म अभिनेता, लेखक, पत्रकार आदि भी शिकार हो रहे हैं। इसलिए इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए।

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