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असली सवाल भारतीय स्टेट बैंक पर है

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ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड से लिए दए गए चंदे का हिसाब नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड के चंदे को असंवैधानिक बताते हुए, इस पर रोक लगाई तो साथ ही भारतीय स्टेट बैंक को आदेश दिया था कि वह छह मार्च तक चंदे का पूरा ब्योरा जारी करे ताकि उसे 13 मार्च तक सार्वजनिक किया जाए। अगर भारतीय स्टेट बैंक इसकी डिटेल जारी कर दे कि किस कंपनी या व्यक्ति ने कितने का चुनावी बॉन्ड खरीदा और किस पार्टी को दिया। sbi electoral bonds

यह तो सबको पता है कि साढ़े 11 हजार करोड़ रुपए का चंदा चुनावी बॉन्ड के जरिए दिया गया है, जिसमें से साढ़े छह हजार करोड़ रुपए से ज्यादा अकेले भाजपा को मिला है। अगर इसके आंकड़े जारी होंगे तो पता चलेगा कि भाजपा को किस कुंपनी या किस व्यक्ति ने सबसे ज्यादा चंदा दिया है और फिर यह भी हिसाब निकाला जाएगा कि उस कंपनी या व्यक्ति का कारोबार कितना फला-फूला है या मुकदमों से कितनी राहत मिली है।

लेकिन इसमें पेंच यह आ गया है कि देश के सबसे बड़े बड़े भारतीय स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह छह मार्च तक आंकड़े जारी करने में सक्षम नहीं है। बैंक ने 30 जून तक का समय मांगा है। इसका मतलब है कि चुनाव से पहले या चुनाव के बीच यह आंकड़ा नहीं सार्वजनिक हो सकता है। स्टेट बैंक ने जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका दी वैसे ही विपक्षी पार्टियों ने तो इसकी मंशा पर सवाल उठा दिया लेकिन विपक्ष का आरोप राजनीतिक है।

विपक्ष का कहना है कि सरकार नहीं चाहती है कि चंदे का हिसाब किताब चुनाव से पहले सामने आए। लेकिन असली सवाल तो स्टेट बैंक की कार्यक्षमता पर है। उसे तो अपने रेपुटेशन का ख्याल रखना चाहिए। उसके पास 40 करोड़ से ज्यादा खाते हैं और हजारों कर्मचारी हैं। उसे अगर करीब 23 हजार चुनावी बॉन्ड का हिसाब देने में चार से पांच महीने का समय लगेगा तो उससे कैसे उम्मीद की जाएगी कि वह अपने उपभोक्ताओं को समय से सेवा दे पाएगी? इससे तो उसकी कार्य कुशलता और साख पर बड़ा सवाल खड़ा होगा।

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