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विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई क्या अब भी कारगर?

विपक्षी पार्टियों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई तेज हो गई है। पहले ऐसा लग रहा था कि चुनाव नजदीक आने पर शायद कार्रवाई न हो क्योंकि इसका उलटा असर हो सकता है। विपक्षी पार्टियों के खिलाफ जितनी ज्यादा कार्रवाई हो रही है उतनी उनकी सहानुभूति मिलने की संभावना बढ़ रही है। लेकिन इसका उलटा हो रहा है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे कार्रवाई तेज हो रही है। केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने तीन दिन के भीतर विपक्ष के शासन वाले तीन राज्यों- पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और झारखंड में कार्रवाई की। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे की कंपनी पर छापेमारी हुई तो छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के सलाहकार और ओएसडी के यहां छापा मारा गया। झारखंड में कारोबारियों के साथ साथ कांग्रेस के एक मंत्री के बेटे के यहां छापमारी हुई। 

झारखंड में ईडी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लगातार समन दे रही है और पूछताछ के लिए बुला रही है। खनन, जमीन और शराब घोटाले में सरकार से जुड़े अनेक लोगों पर शिकंजा कस रहा है। उधर बिहार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की सेहत थोड़ी सुधरी और वे सक्रिय हुए तो तुरंत सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर लालू प्रसाद की जमानत रद्द करने की अपील की है। शुक्रवार यानी 25 अगस्त को उस पर सुनवाई है। तमिलनाडु में ईडी ने स्टालिन सरकार के मंत्री सेंथिल बालाजी को गिरफ्तार किया है। ऐसा लग रहा है कि चुनाव तक विपक्षी पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई कम नहीं होने वाली है। विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई से जितना उनको सहानुभूति मिल रही है उसी अनुपात में उनको भ्रष्ट और बेईमान साबित करने का अभियान भी तेज हो रहा है। सोशल मीडिया में सभी विपक्षी पार्टियों को भ्रष्ट बताया जा रहा है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और ज्यादा साफ-सुथरी दिखाने में सुविधा होती है और यह भी कहा जाता है कि कार्रवाई से बचने के लिए ही सब मोदी को हराना चाहते हैं और एकजुट हो रहे हैं।

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