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बारिश और बाढ़ की चिंता किसी को नहीं है

दिल्ली में शुक्रवार को हुई भारी बारिश से पूरी दिल्ली में बाढ़ के हालत बन गए। देश के सबसे ताकतवर लोग जहां रहते हैं वहां भी पानी भर गया। अनेक अधिकारियों और नेताओं के घरों में पानी घुस गया, जिसे निकलवाने के लिए उनको दिन भर मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन क्या किसी को इसकी चिंता है? दिल्ली सरकार के मंत्री, एमसीडी और एनडीएमसी के अधिकारी और दिल्ली की मेयर ने इधर उधर जाकर फोटो खिंचवा लिए और जिम्मेदारी पूरी हो गई। असल में इस तरह के मौसमी संकट को न तो दिल्ली की सरकार गंभीरता से लेती है और न केंद्र सरकार। जिस तरह से सब्जियों और खाने पीने की चीजों की कीमतें बरसात में या बहुत ज्यादा ठंड में बढ़ जाती है और फिर कम हो जाती है उसी तरह से इस संकट को भी लिया जाता है।

सोचें, क्या जनवरी महीने के बाद प्रदूषण रोकने या कम करने के उपायों पर कोई चर्चा होती दिखी है या कोई काम होता दिखाई दिया है? फिर नवंबर और दिसंबर में इसकी चर्चा होगी। दो महीने तक प्रदूषण जानलेवा हो जाएगा। दिल्ली की हवा में दम घुटने लगेगा। तब रोज चर्चा होगी और योजनाएं बनेंगी लेकिन जनवरी से फिर उनको ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। इसी तरह मई और जून में भीषण गर्मी और उससे मरने वालों की चर्चा होगी। इसके बाद जुलाई और अगस्त में बारिश और बाढ़ की चर्चा होगी। यह सीजनल चर्चा है। चाहे जितनी जोर से हो या जितना विवाद बने। दो महीने के बाद इस पर न कोई चर्चा करता है और न अगले साल ऐसा न हो इसकी कोई तैयारी होती है। लोग भी महीने दो महीने एक संकट से परेशान रहते हैं और फिर दूसरे संकट से जूझने लगते हैं। तभी हर मौसमी संकट पहले से ज्यादा गंभीर होता जा रहा है। शुक्रवार को बारिश और जलजमाव में मिंटो ब्रिज पर एक गाड़ी डूबी तो मीडिया में एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर आई, जिसमें आजादी के तुरंत बाद की बारिश में इस पुल के नीचे गाड़ी डूबी थी। यानी उसी समय से वहां पानी जमा होता है और हर साल बारिश में वहां गाड़ियां डूबती हैं। लेकिन कोई भी सरकार उसका समाधान नहीं निकाल पाई।

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