बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत लगातार बिगड़ रही है। हालांकि सरकार की ओर से कुछ नहीं कहा जा रहा है लेकिन जब भी उनकी सार्वजनिक उपस्थिति होती है तो साफ पता चलता है कि वे सोचने समझने की क्षमता खोते जा रहे हैं। तीन दिन पहले उन्होंने महिला संवाद यात्रा की शुरुआत की। पार्टी के तमाम नेता जुटे, रथ रवाना किया गया, मीडिया को भी बुलाया गया, पूरे पूरे पन्ने के विज्ञापन छपे और महिला संवाद यात्रा की शुरुआत में नीतीश कुमार एक शब्द नहीं बोले। नेता विपक्ष तेजस्वी यादव कहते हैं कि मुख्यमंत्री अचेतावस्था में हैं। पिछले दिनों वे एक धार्मिक कार्यक्रम में गए तो आरती की थाली हाथ में लेकर खड़े रहे। उनके अगल बगल में खड़े लोग उनके हाथ के इशारे से समझाते रहे कि थाली घुमाइए लेकिन उनको समझ में नहीं आ रहा था क्या क्या करना है। यह स्थिति एक साल से ज्यादा समय से है लेकिन अब मर्ज बढ़ गया है। तभी राज्य में सरकार चलाने की एक नई व्यवस्था बनी है।
जब तक नीतीश कुमार की सेहत का मामला ढका छिपा था तब तक उनके सलाहकार और पूर्व चीफ सेक्रेटरी दीपक कुमार सब कुछ संभाल रहे थे। उनके अलावा दो अन्य आईएएस अधिकारी कुमार रवि और एस सिद्धार्थ भी सरकार चलाने में उनका सहयोग कर रहे थे। इन अधिकारियों के अलावा दो मंत्रियों, विजय चौधरी और अशोक चौधरी की भूमिका भी होती थी। लेकिन जब सब कुछ सामने आ गया और लोगों को पता चल गया तब नया सिस्टम बनाने की जरुरत महसूस हुई। जानकार सूत्रों का कहना है कि इस नए सिस्टम में उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुख्य भूमिका में हैं। पूर्व मुख्य सचिव दीपक कुमार की भूमिका अब भी है लेकिन वे पहले की तरह प्रभावी नहीं हैं।
पिछले दिनों सम्राट चौधरी और ललन सिंह ने राज्य के पदाधिकारियों की बैठक की, जिसके बाद तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री की बजाय दूसरे लोग सरकार चला रहे हैं। बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव तक के लिए यह व्यवस्था बनाई गई है क्योंकि सरकार को जनता के बीच सकारात्मक मैसेज बनवाना है। यह मैसेज नहीं जाने देना है कि सरकार भगवान भरोसे है। बिहार के लोग इन दोनों नेताओं के बारे में जानते हैं। इन दोनों की अपनी पार्टी के नेताओं पर कमांड है तो नौकरशाही पर भी पूरी पकड़ है। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री का कार्यालय रोजमर्रा के कामकाज का फैसला इनकी सलाह से करेगा। इसका एक दूसरा फायदा यह भी है कि एनडीए की ओर से लव कुश समीकरण कायम रहने का मैसेज भी बन रहा है। नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी इस समीकरण के प्रतिनिधि हैं। इसके अलावा भाजपा व जदयू ने अपने सवर्ण वोट बैंक को भी मैसेज दे दिया है। हालांकि इसके बावजूद एनडीए को यह खतरा दिख रहा है कि विपक्ष की ओर से नीतीश की सेहत का मुद्दा चुनाव में उठाया जाएगा और तब उनके नेतृत्व में लड़ने के नैरेटिव का असर कम होगा। तभी भाजपा चाहती थी कि चुनाव से पहले उसका मुख्यमंत्री बना दिया जाए। अब यह होता नहीं दिख रहा है। इस नई व्यवस्था में खास बात यह है कि ललन सिंह के सक्रिय होने से जदयू कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है और वे मान रहे हैं कि अब सीट बंटवारे में भी जदयू के साथ बराबरी पर बात होगी। अभी तक ऐसा लग रहा था कि भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आएगी।