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मोदी का बिहार दौरा क्यों रद्द हुआ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 जनवरी को बिहार जाने वाले थे। महात्मा गांधी की कर्मभूमि चंपारण के बेतिया से उनको बिहार में लोकसभा चुनाव के अभियान का आगाज करना था। कई सरकारी कार्यक्रम भी थे। रेलवे और गैस पाइप लाइन सहित कोई साढ़े छह हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास उनको करना था। इसके बाद बेतिया के रमना मैदान में उनकी सभा होनी थी। वहां से प्रधानमंत्री को झारखंड के धनबाद जाना था और वहां से झारखंड में लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत करनी थी। लेकिन पहले धनबाद का दौरा रद्द हुआ और फिर बेतिया का कार्यक्रम भी रद्द हो गया। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम आमतौर पर रद्द नहीं होते हैं क्योंकि बहुत तैयारियों और तमाम पहलुओं पर विचार के बाद कार्यक्रम तय होता है। तभी सवाल है कि प्रधानमंत्री का बिहार दौरा क्यों रद्द हुआ?

भाजपा के नेता यह दलील दे रहे हैं कि 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होना है इसलिए कोई दूसरा राजनीतिक कार्यक्रम नहीं किया जा रहा है ताकि मीडिया और लोगों का ध्यान नहीं भटके। तब सवाल है कि फिर प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तय ही क्यों हुआ था? ध्यान रहे अयोध्या का कार्यक्रम कई महीने पहले से तय था, जबकि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम कुछ दिन पहले ही तय होने की खबर आई थी। जब अयोध्या के कार्यक्रम से ध्यान नहीं भटकाना था तो प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तय ही नहीं होना चाहिए था। लेकिन कार्यक्रम तय हुआ और फिर रद्द हुआ। भाजपा की ओर से दिए जा रहे तर्क ज्यादा दमदार इसलिए भी नहीं हैं क्योंकि प्रधानमंत्री पूरे देश का दौरा कर रहे हैं। नए साल में वे तमिलनाडु, केरल और लक्षद्वीप गए और अपने गृह राज्य गुजरात जाकर भी रहे, जहां उन्होंने वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन का उद्घाटन किया और दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्षों के साथ दोपक्षीय वार्ताएं कीं।

जाहिर है कि बिहार में कार्यक्रम तय करने और फिर रद्द करने के पीछे कुछ और कारण हैं। जानकार सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री का बिहार की परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास का असली कार्यक्रम फरवरी में है। जनवरी में सिर्फ खबर के लिए कार्यक्रम तय किया गया था। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू के साथ गठबंधन को ध्यान में रख कर यह काम हुआ है। सोचें, अगर प्रधानमंत्री मोदी बिहार जाते और भाजपा की जनसभा में नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर हमला बोलते तो क्या उसका यह मतलब नहीं निकलता कि भाजपा और जदयू की बात खत्म हो गई है? अगर वे नीतीश पर चुप रहते तो मैसेज होता कि दोनों के बीच बात हो रही है। तभी गठबंधन की बात फाइनल हुए बगैर प्रधानमंत्री का बिहार दौरा नहीं होना है। बताया जा रहा है कि कार्यक्रम की घोषणा से जदयू पर दबाव बना कि वह जल्दी फैसला करे। इसके बाद दौरा रद्द करके उनको सोचने का थोड़ा और समय दिया गया। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति के तुरंत बाद फैसला करेंगे।

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