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मंत्रियों की मध्यावधि समीक्षा के खतरे

Maharashtra politics

मंत्री बनाना, उसे विभाग देना और पद पर बनाए रखना प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है। लेकिन पार्टी सिस्टम में पार्टी की सलाह से ही मंत्री चुने जाते हैं और पार्टी सुप्रीमो तय करते हैं कि कौन मंत्री बनेगा और कितने समय तक बना रहेगा। महाराष्ट्र में नतीजों के 22 दिन के बाद मंत्रिमंडल का गठन हुआ तो उप मुख्यमंत्री और एनसीपी के नेता अजित पवार ने कहा कि मंत्रियों की मध्यावधि समीक्षा होगी। Maharashtra Cabinet Expansion

उन्होंने कहा कि मंत्री सिर्फ ढाई साल के लिए बनाए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि ढाई साल का यह नियम महायुति की तीनों पार्टियों यानी भाजपा, शिव सेना और एनसीपी के मंत्रियों पर लागू होगा। इसका मतलब है कि ढाई साल के बाद कामकाज की समीक्षा के आधार पर मंत्री बदले जा सकते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि ज्यादा लोगों को मौका देने के लिए यह फॉर्मूला लाया गया है।

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लेकिन लोकप्रिय राजनीति में यह फॉर्मूला कितना कारगर होगा यह नहीं कहा जा सकता है। आंध्र प्रदेश में सरकार बनने पर जगन मोहन रेड्डी ने यह फॉर्मूला आजमाया था। उन्होंने अपने साथ पांच उप मुख्यमंत्री बनाए थे और ढाई साल के बाद सभी उप मुख्यमंत्रियों को हटा कर पांच नए उप मुख्यमंत्री बनाए गए। इसके पीछे भी यही तर्क दिया गया था कि ज्यादा लोगों को मौका मिलेगा और ज्यादा बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पार्टी की पहुंच होगी। लेकिन नतीजे उलटे आए। जगन की पार्टी बुरी तरह से हार कर सत्ता से बाहर हुई है।

इसमें असली खतरा यह है कि क्या तीनों पार्टियां ढाई साल के बाद अपनी ही सरकार के मंत्रियों को निकम्मा या नकारा ठहराने का जोखिम ले सकती हैं? क्या इससे जनता के बीच सरकार को लेकर धारणा नहीं बदलेगी? तभी ऐसा लग रहा है कि यह एक सोच है, जिसे तीनों पार्टियां शायद ही लागू कर पाएं। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि यही मंत्रिमंडल पांच साल चलेगा। बदलाव होगा लेकिन यह कह कर नहीं होगा कि कामकाज की समीक्षा करके निकम्मे मंत्रियों को हटा रहे हैं।

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