अगर झारखंड में कांग्रेस, जेएमएम, राजद और लेफ्ट के गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर समस्या हो रही है तो दूसरी ओर एनडीए की सहयोगी पार्टियों में भी कम समस्या नहीं है। भाजपा, आजसू, जदयू और लोजपा के बीच सीट बंटवारे को लेकर ज्यादा समस्या दिख रही है। पता नहीं आगे क्या होगा लेकिन चुनाव की घोषणा से पहले जनता दल यू और लोक जनशक्ति पार्टी ने भाजपा पर दबाव बना दिया है। लोजपा के नेता चिराग पासवान की बड़ी महत्वाकांक्षा है। उन्होंने अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन इस बार रांची में कराया, जहां वे दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। इस मौके पर उन्होंने जाति गणना का मामला उठाया और कहा कि वे एनडीए के साथ 11 सीटों पर लड़ेंगे। साथ ही यह भी कह दिया कि अगर भाजपा इतनी सीटें नहीं देती है तो वे 40 सीटों पर अकेले लड़ेंगे। ध्यान रहे भाजपा ने आखिरी बार 2014 में लोजपा के लिए संथालपरगना में शिकारीपाड़ा सीट छोड़ी थी, जहां पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी।
बहरहाल, जनता दल यू ने ज्यादा आक्रामक रवैया अख्तियार किया है। जमशेदपुर पूर्वी सीट के निर्दलीय विधायक सरयू राय जदयू में शामिल हो गए हैं। उनकी पारंपरिक सीट जमशेदपुर पश्चिम है लेकिन पिछली बार वे पूर्वी सीट से लड़े थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को हराया था। रघुवर दास के दबाव की वजह से सरयू राय की भाजपा में एंट्री नहीं हो पाई। तभी उनके लिए जनता दल यू जमशेदपुर की कोई सीट भाजपा से ले पाएगी इसे लेकर पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन सरयू राय जैसे बड़े नेता को पार्टी में शामिल कराने का फैसला अनायास नहीं हुआ होगा। जदयू की तैयारी भी झारखंड में एक दर्जन सीटों पर लड़ने की है। अगर भाजपा चिराग पासवान की पार्टी के लिए कोई सीट छोड़ती है तो जीतन राम मांझी की पार्टी भी सीट मांगेगी। बिहार की इन सहयोगी पार्टियों के अलावा झारखंड में भाजपा की अपनी सहयोगी आजसू है, जिसके नेता सुदेश महतो एक दर्जन सीटों की मांग कर रहे हैं। पिछली बार उनसे भाजपा का तालमेल नहीं हुआ था तो वे 53 सीटों पर लड़ गए थे और उनकी पार्टी को 18 लाख वोट आया था। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की जेवीएम अलग लड़ी थी और सुदेश महतो की पार्टी को उनसे ज्यादा वोट मिले थे। उनके साथ शह मात के खेल में जयराम महतो नाम के एक नए खिलाड़ी मैदान में हैं। इन दोनों के साथ भाजपा कैसे तालमेल बैठाती है यह देखने वाली बात होगी।