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झारखंड चुनाव की विडम्बना

हर चुनाव में कुछ न कुछ उलटबांसी या विडम्बना देखने को मिलती है। लेकिन इस बार का झारखंड विधानसभा का चुनाव इस मामले में अद्भुत था। पहली बार यह देखने को मिला कि हेमंत सोरेन की सरकार विकास के नाम पर चुनाव लड़ रही थी और भारतीय जनता पार्टी धर्म और ध्रुवीकरण के आधार पर वोट मांग रही थी। आमतौर पर यह माना जाता है कि शिबू सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को विकास से कोई लेना देना नहीं होता है। पार्टी अपने आदिवासी और मुस्लिम वोट आधार पर राजनीति करती है। शिबू सोरेन की दाढ़ी और तीर धनुष चुनाव चिन्ह पर उसे वोट मिलता है। तभी हेमंत ने भी अपने पिता की तरह दाढ़ी और बाल बढ़ा लिए हैं। लेकिन इस बार उलटा हो गया।

पांच साल सरकार चलाने के बाद हेमंत सोरेन ने पूरे चुनाव प्रचार में विकास के नाम पर वोट मांगा। उन्होंने अपनी सरकार की योजनाओं के नाम पर प्रचार किया और उसके आधार पर वोट मांगा। प्रचार और मतदान के दौरान दिखा भी कि हेमंत सोरेन की पार्टी अब सिर्फ आदिवासी या मुस्लिम, ईसाई वोट पर आधारित नहीं है, बल्कि हर जातीय समूह में उनका वोट है। लेकिन दूसरी ओर देश में विकास की सबसे ज्यादा बात करने वाली भाजपा पूरा चुनाव हिंदू मुस्लिम के मुद्दे पर लड़ी। उसने ‘रोटी, बेटी, माटी’ का सबसे बड़ा मुद्दा बनाया। ‘लैंड जिहाद’, ‘लव जिहाद’ के मुद्दे पर उसने वोट मांगे। वह यहां तक चली गई कि जेएमएम, कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं के नाम लेकर उनकी तुलना औरंगजेब से की और उनसे मुक्ति दिलाने का वादा करके वोट मांगा।

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