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कांग्रेस कैसे लड़ रही है चुनाव

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दो राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और राहुल गांधी पहले अमेरिका गए और फिर हिमाचल प्रदेश चले गए, जहां उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा छुट्टी मना रहे थे। सोचें, चुनाव के बीच राहुल छुट्टी मनाने चले गए! उससे पहले वे हरियाणा के करनाल गए थे, जहां उन्होंने अमेरिका में रह रहे एक युवक के परिजनों से मुलाकात की थी। उसका मैसेज चुनाव में अच्छा गया होगा लेकिन पारंपरिक तरीके से चुनाव प्रचार करने में राहुल गांधी पता नहीं क्यों हिचक रहे हैं। उन्होंने जम्मू कश्मीर का सिर्फ एक दौरा किया। वहां बुधवार को दूसरे चरण का मतदान होना है, जिसके साथ ही 50 सीटों के चुनाव निपट जाएंगे। हरियाणा में भी उनकी चुनावी रैली नहीं हुई है। लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा ने खूब प्रचार किया था लेकिन पता नहीं क्यों उनको घर बैठा दिया गया है। झारखंड में नवंबर में चुनाव हैं और नेताओं को भी शायद ही याद हो कि आखिरी बार राहुल कब झारखंड आए थे। संभवतः भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण में एक बार वे झारखंड से गुजरे थे।

इस बीच खबर है कि हरियाणा में तमाम नकारात्मक बातों और एंटी इन्कम्बैंसी के बावजूद भाजपा की स्थिति में सुधार हो रहा है। अब भी बढ़त हालांकि कांग्रेस को ही है लेकिन बड़ी तेजी से भाजपा आगे बढ़ रही है। 10 दिन पहले तक जो पत्रकार भाजपा को 15 सीट पर रूका हुआ मान रहे थे उनको लग रहा है कि भाजपा 25 या उससे ज्यादा सीट जीत सकती है। हरियाणा में घूम रहे या कांग्रेस को नजदीक से जानने वाले पत्रकार कहने लगे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि मध्य प्रदेश वाली स्थिति हो जाए। वहां भी कमलनाथ यह मान कर चुनाव लड़ रहे थे कि उनको मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी है। लेकिन वहां कांग्रेस बुरी तरह से साफ हुई। उसी तरह हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा यह मान कर चुनाव लड़ रहे हैं कि उनको चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी है। लेकिन न कहीं बहुत सघन प्रचार है और न गांधी परिवार के नेताओं की दिलचस्पी है। यहां तक कि मल्लिकार्जुन खड़गे की भी दिलचस्पी नहीं दिख रही है।

कम से कम खड़गे को हरियाणा में कैम्प करना चाहिए था क्योंकि सारी राजनीति अब दलित वोट पर टिक गई है। कांग्रेस की दलित नेता कुमारी शैलजा नाराज होकर घर बैठ गईं और एक हफ्ते तक प्रचार के लिए निकली ही नहीं। हुड्डा के करीबी किसी नेता ने जातिसूचक शब्द कह दिए उसके बाद वे घर बैठ गईं। लेकिन अगर वे नहीं निकल रही थीं तो खड़गे को जाना चाहिए था। दलित समाज में खड़गे को लेकर बहुत सद्भाव है और वह बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा तक है। लेकिन खड़गे नहीं गए। दूसरी ओर मायावती के भतीजे आकाश आनंद की रैली हुई और उन्होंने कांग्रेस को दलित विरोधी बता कर कांग्रेस पर खूब हमला किया। एक तरह ओमप्रकाश चौटाला की इनेलो है, जो बसपा के साथ मिल कर लड़ रही है और दूसरी ओऱ दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी है, जो चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ मिल कर लड़ रही है। दो जाट और दो दलित पार्टियां अलग अलग गठबंधन बना कर लड़ रही हैं। कांग्रेस के पास भी यही गठबंधन है। चौटाला परिवार के असर वाले इलाकों में उनका गठबंधन काम कर रहा है दूसरी ओर कांग्रेस के नेता अति आत्मविश्वास में अपनी शुरुआती बढ़त धीरे धीरे गंवा रहे हैं।

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