Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

हरियाणा में कांग्रेस का हाल

हरियाणा में कैसे भाजपा की ऐसी लहर चली कि उसने सारे नगर निगम और सारे नगर परिषद के चुनाव जीत लिए? कांग्रेस के साथ ऐसा क्या हुआ कि 38 पदों के लिए हुए चुनाव में वह एक भी सीट नहीं जीत पाई? कांग्रेस पार्टी के नए प्रभारी बीके हरिप्रसाद को इन सवालों का जवाब तलाशना है। छह महीने पहले अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बराबरी की टक्कर दी थी। भाजपा को 39.94 फीसदी और 55 लाख 48 हजार वोट मिले थे। दूसरी ओर कांग्रेस को 39.09 फीसदी और 55 लाख 30 हजार वोट मिले। यानी दोनों के वोट में कुल 18 हजार का अंतर था। इतने अंतर पर ही भाजपा ने 48 और कांग्रेस  ने 39 सीटें जीतीं। लेकिन छह महीने बाद हुए शहरी निकायों के चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। पार्टी के चुनाव चिन्ह पर हुए चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई।

नगर निगम में 10 मेयर के चुनाव हुए, जिनमें नौ में भाजपा जीती और एक पर भाजपा के नेता राव इंद्रजीत सिंह का नाम लेकर निर्दलीय जीता। नगर परिषद की पांच सीटों में पांचों भाजपा जीती और 24 नगरपालिकाओं में भाजपा ने नौ और निर्दलियों ने 15 में जीत दर्ज की। यानी जिन 15 नगरपालिकाओं में लोगों ने भाजपा को हराया वहां भी कांग्रेस को नहीं जिताया। सवाल है कि ऐसा क्या हो गया कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ रोहतक में कांग्रेस हार गई और कुमारी सैलजा के गढ़ सिरसा में भी कांग्रेस हार गई? असल में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस आलाकमान हाथ पर हाथ रख कर बैठ गया। यह सोच लिया गया कि अब हरियाणा में चाहे जो हो जाए हुड्डा को कमान नहीं देनी है। दूसरी ओर हुड्डा अड़े हुए हैं कि उनको विधायक दल का नेता बनाया जाए और उनके करीबी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा जाए। इस खींचतान में पार्टी पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई। लोग घर बैठ गए। हुड्डा के करीबी नेता टिकट लेने नहीं पहुंचे। कांग्रेस के अनेक मजबूत नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ना बेहतर समझा। अब हुड्डा ने बता दिया है कि उनके बगैर हरियाणा में कांग्रेस का गुजारा नहीं है। विधायक दल ने नेता का फैसला करने का अधिकार पार्टी आलाकमान पर छोड़ा है। पार्टी के फैसले से पता चलेगा की वह 20 साल से पार्टी पर हुड्डा के एकछत्र राज को खत्म करती है या लौट कर उनके सहारे पर ही लौटती है!

Exit mobile version