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चुनावी राज्यों में भाजपा की हालत खराब

वैसे तो भारतीय जनता पार्टी को इस बार लोकसभा चुनावों में कई राज्यों में बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश में उसे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। इसके अलावा राजस्थान में भी किसी ने नहीं सोचा था कि विपक्ष दहाई की संख्या में पहुंच जाएगा। ये राज्य तो भाजपा के लिए चिंता की बात हैं लेकिन इनसे ज्यादा चिंता तीन अन्य राज्यों की है, जहां इस साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होंगे और इन तीनों राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन पहले के मुकाबले बहुत खराब हुआ है। तीनों राज्यों में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने शानदार प्रदर्शन किया है।

महाराष्ट्र में भाजपा ने अपना गढ़ बचाने का बहुत प्रयास किया था। उद्धव ठाकरे की पार्टी तोड़ कर एकनाथ शिंदे के हवाले कर दी गई थी। उनकी पार्टी को असली शिव सेना का दर्जा मिला था और वे मुख्यमंत्री बने थे। इसी तरह अजित पवार का खेमा असली एनसीपी बन गया था और वे उप मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस की साझेदारी ने भाजपा का महाराष्ट्र का किला ध्वस्त कर दिया। तमाम उपायों के बावजूद भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां राज्य की 48 में से सिर्फ 17 सीटें जीत पाईं। पिछली बार 23 सीट जीतने वाली भाजपा को सिर्फ नौ सीटें मिलीं और एक सीट जीतने वाली कांग्रेस ने 13 सीटें जीतीं। कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी को 30 सीटें मिलीं और एक सीट पर कांग्रेस का बागी निर्दलीय जीता। महाविकास अघाड़ी को 44 फीसदी और भाजपा की महायुति को 42 फीसदी वोट मिला। चार महीने बाद राज्य में चुनाव हैं और उससे पहले इस नतीजे ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है।

इसी तरह हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने का दांव काम नहीं आया। राज्य की 10 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस ने पांच सीटें जीत लीं, जबकि पिछले चुनाव में भाजपा ने सभी 10 सीटें जीती थीं। हरियाणा में पिछले 10 साल से भाजपा की सरकार है और वहां नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले लोकसभा चुनाव के नतीजे बड़ा झटका हैं। भाजपा को 46 फीसदी वोट मिला है, लेकिन उसके मुकाबले कांग्रेस और उसकी सहयोगी आम आदमी पार्टी को 47.60 फीसदी वोट मिला है। अकेले कांग्रेस को 43.67 फीसदी वोट है। कांग्रेस को मिला वोट और भाजपा की राज्य सरकार के लिए खतरे की घंटी है।

तीसरा राज्य झारखंड है, जहां भाजपा को बड़ा झटका लगा है। पिछली बार उसने 11 सीटें जीती थीं और उसकी सहयोगी आजसू को एक सीट मिली थी। आजसू तो इस बार भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रही है लेकिन भाजपा ने तीन जीती हुई सीटें गंवा दी हैं। उसे सिर्फ आठ सीटें मिलीं हैं। उसने कांग्रेस की गीता कोड़ा और जेएमएम की सीता सोरेन को अपनी पार्टी में शामिल कराया था लेकिन दोनों चुनाव हार गए। हालांकि भाजपा और उसकी सहयोगी को 47 फीसदी से ज्यादा वोट मिला है और कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियां 40 फीसदी के करीब वोट ले पाई हैं। लेकिन आदिवासी वोटों में भाजपा के खिलाफ नाराजगी दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भारी पड़ सकती है।

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