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हरियाणा में आम आदमी पार्टी का क्या असर होगा

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच लोकसभा चुनाव के लिए जो आधा अधूरा गठबंधन हुआ था वह चुनाव के तुरंत बाद खत्म हो गया। दिल्ली में कांग्रेस नेताओं ने आप के खिलाफ तलवार निकाली हुई है और आए दिन दोनों तरफ से हमले हो रहे हैं। दोनों के बीच तालमेल हरियाणा में भी हुआ था, जहां कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के लिए कुरूक्षेत्र की सीट छोड़ी थी। वहां आप के पूर्व राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता ने कांग्रेस की मदद से भाजपा के नवीन जिंदल को कड़ी टक्कर दी थी और 29 हजार वोट के अंतर से चुनाव हारे थे। वहां भी दोनों पार्टियों का तालमेल खत्म हो गया है। आम आदमी पार्टी ने ऐलान कर दिया है कि वह राज्य की सभी 90 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। अब सवाल है कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने का क्या असर होगा? वे किसे फायदा पहुंचाएंगे और किसे नुकसान करेंगे?

आम आदमी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए नारा दिया है, ‘बदलेंगे हरियाणा का हाल, अब लाएंगे केजरीवाल’। गौरतलब है कि हरियाणा के दो तरफ आम आदमी पार्टी की सरकार है। पंजाब और दिल्ली में आप की सरकार है। इन दोनों राज्यों की जनसंख्या संरचना हरियाणा से मिलती जुलती है। तीनों राज्यों में सिख, जाट, पंजाबी, दलित और गुर्जर आबादी अच्छी खासी है। इनके बीच आप ने दो जगह सरकार बनाई है और मुफ्त बिजली, पानी, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और नकद पैसे आदि के जरिए शासन का एक मॉडल पेश किया है। तभी यह तय है कि आम आदमी पार्टी इस बार 2019 के मुकाबले ज्यादा मजबूती से लड़ेगी। ध्यान रहे राज्य में कांग्रेस ने जाट और दलित का बहुत सॉलिड समीकरण बनाया है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा दोनों के प्रतिनिधि चेहरे हैं और दोनों के बारे में कहा जा रहा है कि सरकार बनी तो ये मुख्यमंत्री हो सकते हैं। दूसरी ओर भाजपा ने गैर जाट यानी पिछड़े, पंजाबी और ब्राह्मण का समीकरण बनाया है। केजरीवाल दोनों के वोट में सेंध लगा सकते हैं। वे वैश्य वोट भी काट सकते हैं और दलित वोट भी। वे हरियाणा के रहने वाले हैं तो धरती पुत्र के नाम पर हर समुदाय का कुछ कुछ वोट वे ले सकते हैं।

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