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इंजीनियर राशिद और हेमंत सोरेन का फर्क

जेल में बंद आतंकवादियों का संदिग्ध मददगार और उनको फंडिंग कराने वाले इंजीनियर राशिद को चुनाव प्रचार के लिए जमानत मिल गई है। इंजीनियर राशिद गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून यानी यूएपीए के तहत गिरफ्तार हैं और 2019 से जेल में हैं। जेल से चुनाव लड़ कर वे लोकसभा का चुनाव जीत गए। बड़ी मुश्किल से उनको शपथ लेने के लिए थोड़ी देर की जमानत मिली थी और संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए दायर की गई उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। लेकिन अचानक पता नहीं क्या बदलाव हुआ कि राशिद को विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का प्रचार करने के लिए 20 दिन की जमानत मिल गई है। वे दो अक्टूबर तक जमानत पर रहेंगे। राज्य में 18 व 25 सितंबर और एक अक्टूबर को मतदान होना है।

सबसे दिलचस्प यह है कि धन शोधन के मामले में निचली अदालतों से जमानत होते ही एजेंसियां भाग कर ऊपरी अदालत में पहुंचती हैं जमानत रद्द भी करवा लेती हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले में ऐसा हुआ। लेकिन राशिद को निचली अदालत ने जमानत दी तो एजेंसियां भूल गईं कि जमानत के खिलाफ ऊपरी अदालत में भी जाया जा सकता है। अब इसके बरक्स हेमंत सोरेन को रख कर देखें। उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा लोकसभा की पांच सीटों पर लड़ रही थी और उन्होंने केजरीवाल को प्रचार के लिए मिली जमानत का आधार बना कर प्रचार के लिए जमानत मांगी थी लेकिन उनको जमानत नहीं मिली। केजरीवाल को भी सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी। लेकिन इंजीनियर राशिद को तो निचली अदालत ने ही प्रचार के लिए जमानत दे दी।

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