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डर दिखाने से केजरीवाल को क्या फायदा?

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल क्यों अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का डर दिखा रहे हैं? इससे क्या राजनीतिक फायदा हो सकता है? उन्होंने कुछ दिन पहले कहा था कि केंद्र सरकार की एजेंसियां मुख्यमंत्री आतिशी को गिरफ्तार करने के लिए काम कर रही हैं। केजरीवाल ने किसी अज्ञात सूत्र के हवाले से यह भी कहा कि ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग की मीटिंग हो चुकी है और आतिशी की गिरफ्तारी की योजना बन चुकी है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को मुफ्त बस पास दिया जा रहा है इसलिए आतिशी को गिरफ्तार किया जाएगा। हालांकि इसके तुरंत बाद दिल्ली परिवहन विभाग की ओर से साफ कर दिया गया कि आतिशी के खिलाफ कोई भी शिकायत लंबित नहीं है और न उनके खिलाफ कोई जांच चल रही है।

आतिशी की गिरफ्तारी का खतरा बताने के बाद अब केजरीवाल ने कहा है कि सीबीआई जल्दी ही मनीष सिसोदिया के यहां छापा मारने वाली है। फिर उन्होंने कहा कि पहले भी सीबीआई की जांच में कुछ नहीं मिला है और अब भी कुछ नहीं मिलेगा। हालांकि सबको पता है कि अब कोई छापा सिसोदिया के यहां नहीं पड़ने वाला है। शराब घोटाले में जो भी जांच होनी थी और सबूत जुटाने थे वो सबूत सीबीआई और ईडी के पास हैं। फिर भी केजरीवाल ने भय दिखाया। सोचें, आतिशी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई और अगर चुनाव तक सिसोदिया पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो केजरीवाल का क्या जवाब होगा? हालांकि ऐसी बातों में न कोई जवाब मांगता है और दिया जाता है। लेकिन यह साबित होगा कि केजरीवाल इसी तरह भेड़िया आया, भेड़िया आया का भय दिखाते रहते हैं। अभी आतिशी और सिसोदिया को लेकर उन्होंने जो बयान दिया है उसका एक कारण यह लग रहा है कि दोनों नेता मुश्किल लड़ाई में फंसे हैं। कालकाजी में आतिशी और जंगपुरा में मनीष सिसोदिया दोनों कांटे की त्रिकोणात्मक लड़ाई में फंसे हैं। उनके प्रति सहानुभूति के लिए केजरीवाल यह दांव चल रहे हैं।

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