बिहार में कांग्रेस ऐसा लग रहा है कि अपनी सबसे पुरानी सहयोगी पार्टियों में से एक राष्ट्रीय जनता दल की परवाह नहीं कर रही है या उसके ऊपर दबाव डाल रही है ताकि वह कांग्रेस के ऊपर अपनी शर्तें नहीं थोप सके। कांग्रेस ने पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव और एनएसयूआई के प्रभारी कन्हैया कुमार को आगे किया। बिहार में कन्हैया कुमार की यात्रा होने जा रही है। होली के बाद 16 मार्च से बिहार में रोजगार दो, पलायन रोको यात्रा शुरू हो रही है, जिसका नेतृत्व कन्हैया करेंगे। कन्हैया और पप्पू यादव में निजी संबंध भी बहुत मजबूत हैं। दूसरी ओर लालू प्रसाद का परिवार इन दोनों नेताओं को पसंद नहीं करता है। लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को लगता है कि ये दोनों नेता तेजस्वी के लिए चुनौती हैं।
पप्पू यादव को चुनौती मानने का एक कारण हो सकता है कि वे यादव हैं और युवाओं में लोकप्रिय हैं लेकिन कन्हैया कुमार तो अगड़ी जाति के भूमिहार हैं। उनकी जाति की संख्या बिहार में बहुत कम है और जाति आधारित राजनीति में तो वे किसी के लिए चुनौती नहीं हो सकते हैं। लेकिन उनकी वक्तृता और युवाओं के बीच लोकप्रियता से लालू प्रसाद को चिंता होती है। तभी 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय सीट पर जब कन्हैया सीपीआई की टिकट से लड़े तो लालू ने अपनी पार्टी से एक मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर उनका खेल खराब किया। अब इन दोनों को आगे करके कांग्रेस ने संदेश दिया है कि वह राजद के साथ गठबंधन में है लेकिन उसकी अपनी स्वतंत्र राजनीति भी है। इसके जरिए कांग्रेस ने यह संदेश भी दिया है कि एक नए सहयोगी मुकेश सहनी को एडजस्ट करने और लेफ्ट की सीटें बढ़ाने के लिए कांग्रेस को अपनी सीटें कम करने को न कहे।
ध्यान रहे कांग्रेस ने पिछली बार 70 सीटें लड़ी थी और सिर्फ 19 जीत पाई थी। इसी आधार पर राजद उसकी सीटें कम करना चाहता है, जबकि कांग्रेस सीटों की संख्या इतनी ही रखते हुए कुछ सीटों की अदलाबदली चाहती है क्योंकि उसका कहना है कि राजद ने कमजोर सीटें उसको दी थीं। कांग्रेस की इस राजनीतिक दांव के बाद महागठबंधन यानी ‘इंडिया’ ब्लॉक के भीतर सीट शेयरिंग का विवाद बढ़ेगा।