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ट्रंप से तो चीन की मुश्किले हैं!

Donald Trump Oath Ceremony

डोनाल्ड ट्रंप का व्हाईट हाउस में गृहप्रवेश कोई दो महीने दूर है। वे सभी महिलाएं और पुरूष, जिन्होंने उनकी बेतुकी हरकतों और लफ्फाजियों में उनका गाजा-बाजा बजाया, गृहप्रवेश की तैयारियों में जुटे हुए हैं।

बीबीसी के अनुसार मारालागो (फ्लोरिडा स्थित डोनाल्ड ट्रंप का निवास) अमेरिका की राजनैतिक सत्ता का समान्तर केन्द्र बन गया है। वहां रिपब्लिकनों का तांता लगा हुआ है। वे नजदीकी होटलों में ठहर रहे हैं, आसपास के रेस्टोरेंटों में समय बिता रहे हैं ताकि वे ट्रंप के नजदीक पहुँच सकें और सत्ता हासिल कर सकें।

ट्रम्प को चुनाव जीते एक हफ्ता बीत चुका है। और धीरे-धीरे साफ हो रहा है कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल कैसा होगा। मुझे तो उसके बारे में सोच कर डर लग रहा है।

ट्रम्प द्वारा किये गए शुरूआती निर्णयों में शामिल हैं मार्कों रुबियो को विदेश मंत्री और माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार के पद पर बिठाना। माईकल वाल्ट्ज सेना के सेवानिवृत्त कर्नल हैं और फ्लोरिडा से कांग्रेस के सदस्य हैं। वे बार-बार, लगातार कहते रहे हैं कि अमेरिका और चीन के बीच ‘शीत युद्ध’ चल रहा है। वे ऐसी नीतियों के पैरोकार हैं जिनसे चीनी उत्पादों पर अमेरिका की निर्भरता कम हो और अमेरिकी टेक्नोलॉजी, अमरीकी ही बनी रहे। वे कांग्रेस के उन पहले सदस्यों में से एक थे जिन्होंने यह आव्हान किया था कि अमेरिका को बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार करना चाहिए। हालांकि भारत के प्रति उनका रवैया सख्त नहीं है। इंडिया काकस के प्रमुख होने के नाते वे भारत और अमेरिका के रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में अधिक नजदीकी संबंधों के पक्षधर हैं।

माइक वाल्ट्ज की तरह फ्लोरिडा के सीनेटर मार्को रूबियो भी चीन के प्रति आक्रामक रवैया रखते हैं। सन् 2020 में चीनी सरकार ने हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों के खिलाफ चीन की कार्यवाही का विरोध करने के लिए रुबियो पर प्रतिबन्ध लगाए थे। रूबियो भी भारत के प्रति नरम रवैया रखते हैं और मानते हैं कि चीन को पछाड़ने के लिए भारत-अमेरिका संबंधों को प्रगाढ़ बनाया जाना चाहिए।

दोनों फ्लोरिडा निवासियों को ट्रंप के प्रति वफादार रहने, अपनी वफ़ादारी का खुलेआम इजहार करने और चीन, ईरान, नॉटो यूक्रेन युद्ध आदि के सम्बन्ध में ट्रंप की सोच साझा करने का पुरस्कार दिया गया है।

इसके अलावा, पीटर हेगसेथ को रक्षामंत्री बनाया गया है। वे सेना के पूर्व कैप्टिन हैं और अफगानिस्तान में तैनात रह चुके हैं। लेकिन उनकी ज्यादा बड़ी पहचान फॉक्स न्यूज के एंकर और ‘द वॉर ऑफ वारियर्सः बिहाइंड द बिट्रेयल ऑफ द मैन हू कीप अस फ्री’ पुस्तक के लेखक के रूप में है। हेगसेथ युद्ध अपराध का आरोप झेल रहे अमरीकी सैनिकों का साथ देने के पक्षधर हैं और अब वे 13 पूर्णकालिक सैनिकों की सेना के प्रभारी होंगे।

इसकी पूरी-पूरी संभावना है कि अपने दूसरे कार्यकाल में भी विश्व व्यापार संगठन के प्रति ट्रंप का रवैया उपेक्षापूर्ण और उसे क्षति पहुंचाने वाला रहेगा। संभवतः अमेरिकी व्यापार के प्रमुख नियंता रॉबर्ट लाइटहाइजर होंगे जो स्थानीय उद्योग को संरक्षण देने और सीमा शुल्क बढ़ा पर आयात को निरुत्साहित करने में विश्वास रखते हैं।

इसके अलावा, एलन मस्क की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। ट्रंप के पूरे चुनावी अभियान के दौरान मस्क उनके बहुत नजदीक रहे। वे उनके पारिवारिक रात्रि भोजों और विश्व के नेताओं के साथ फोन पर हुई चर्चाओं के दौरान भी मौजूद रहे और इस संबंध में भी सलाह देते रहे कि किन व्यक्तियों को मंत्री बनाया जाए। आठ नवंबर को जब ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमिर जेलेंस्की को फोन किया तब मस्क ने भी उनसे बात की। मस्क को पुरस्कार के तौर पर फिलहाल जैव प्रौद्योगिकी व्यापारी विवेक रामास्वामी के साथ शासकीय कार्यकुशलता विभाग (डीओजीई) का सह-प्रमुख नियुक्त किया है। यह नया विभाग संघीय नौकरशाही में कटौती की गुंजाइशें तलाशेगा। यह दिलचस्प है कि इस विभाग को संक्षेप में ‘डोज़’ (डोओजीई) कहा जाएगा और मस्क जिस क्रिप्टोकरेंसी के प्रमोटर हैं, उसका नाम ‘डोज़कॉइन’ है!

अभी तक नियुक्त किए गए सभी व्यक्ति न केवल ट्रंप के वफादार हैं वरन् काफी हद तक उनके जैसे हैं – दूसरों की परवाह न करने वाले और असभ्य। भारतीय थिंक टैंक, संस्थानों और महत्वपूर्ण शासकीय अधिकारियों को भरोसा होता जा रहा है ट्रम्प की नीतियां और प्रशासनिक ढांचा भारत के अनुकूल होने के कारण भारत और अमेरिका के रिश्ते मजबूत होंगे। मूडीज के आकलन के अनुसार अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ने और अमरीका में चीनी निवेश पर संभावित प्रतिबंध से भारत को काफी फायदा हो सकता है। वास्तव में क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

अब तक कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां हो चुकी हैं, ट्रम्प की जो बाइडन के साथ मुलाकात हो चुकी है और शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन का आश्वासन दिया जा चुका है। इन शुरूआती नियुक्तियों के मद्देनजर लगता है कि अगले साल से अमरीका 1945 से चली आ रही अंतर्राष्ट्रीयवाद की नीति से दूर हट जाएगा और विश्व के घटनाक्रम से अलग-थलग रहने की नीति लागू की जाएगी। आगे मौसम ख़राब है। अपनी सीट की पेटी बाँध लीजिये। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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