तीन दिसंबर 2024 को South Korea में जो हुआ, उसकी कल्पना वहां के निवासियों ने शायद ही की होगी। तीन दिसंबर South Korea में किसी भी आम दिन की तरह था। मगर अँधेरा छाते ही नाटकीय घटनाक्रम शुरू हुआ। देर रात देश के राष्ट्रपति युन सौक योल ने मार्शल लॉ लागू करने का ऐलान किया। मोबाईल फ़ोनों में ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगी: “उत्तर कोरिया की कम्युनिस्ट ताकतों द्वारा उत्पन्न खतरों के चलते दक्षिण कोरिया में आपातकालीन मार्शल लॉ की घोषणा कर दी गई है”। और दुनिया में खौफ बना कि क्या पूरब में भी युद्ध के पागलपन का दौर शुरू हो जाएगा? आखिकार किम जान-उंग को सनकी माना जाता है!
लेकिन जब और जानकारी सामने आई तो साफ हुआ कि South Korea को खतरा उत्तर कोरिया से नहीं बल्कि अपने ही राष्ट्रपति युन सौक योल से था। उन्होंने नेशनल असेम्बली (देश की संसद) पर कब्ज़ा ज़माने की कोशिश में मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा की थी। कम्युनिस्ट खतरे का कोई सुबूत पेश करने की बजाए, युन ने आरोप लगाया कि नेशनल असेम्बली, जिस पर डेमोक्रेटिक पार्टी के उनके राजनैतिक प्रतिद्वंदियों का नियंत्रण है, एक दानव और लोकतंत्र के लिए खतरा बन गई है, और उसके सदस्यों की उत्तर कोरिया की ‘कम्युनिस्ट शक्तियों‘ के साथ सांठगांठ है!
साउथ कोरिया में मार्शल लॉ का विरोध, राष्ट्रपति को फैसला वापस लेने पर मजबूर
मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा के कुछ ही समय बाद हथियारबंद सैनिकों ने नेशनल असेम्बली के मुख्य कक्ष में घुसने की कोशिश की। लेकिन तब तक देश के लोग अपने राष्ट्रपति की घोषणा के खिलाफ विरोध दर्ज करने के लिए सड़कों पर इकठ्ठा होने लगे। पुलिस और सेना ने उन्हे भगाना, डराना चाहा लेकिन सैन्य बलों को उलटे दुबक कर पीछे हटना पड़ा। सड़क पर लोगों के उमड़ने ने राष्ट्रपति को भी मार्शल ला की घोपणा को वापिस लेना पड़ा।
इसने दक्षिण कोरिया के पुराने, तानाशाही के दुःख भरे दौर की यादें ताजा करा दी है। South Korea में पिछली बार मार्शल लॉ 1980 में लागू किया गया था। उस वक्त सैनिक तानाशाह जनरल चुन दू-ह्वान ने सैकड़ों लोगों को मरवा दिया था। विरोध प्रदर्शन करने वालों को कंसंट्रेशन कैम्पों में भेजा गया ताकि उन्हें “दिमाग को शुद्ध करने वाली शिक्षा” दी जा सके।
बहरहाल, मंगलवार को मार्शल लॉ की घोषणा होते ही पूरे देश में सनसनी फैली। सभी प्रकार की राजनैतिक गतिविधियों पर तुरंत पूर्ण पाबंदी लगाए जाने का आदेश दिया गया और मीडिया की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया। लोगों को बताया गया कि मार्शल लॉ के चलते उन्हें बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है। लेकिन इस सब की तेज और तीखी प्रतिक्रिया हुई। हजारों प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति के खिलाफ नारे लगते हुए सड़कों पर उतर आए। वे राष्ट्रपति से अपना फैसला वापिस लेने की मांग की और बिना डरे ऊंची आवाज में लोग चिल्ला रहे थे ‘अरेस्ट हिम’।
दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ के खिलाफ विपक्षी दलों का जोरदार विरोध, राष्ट्रपति ने फैसला वापस लिया
विपक्षी दलों ने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक साथ मिल कर विरोध तुरंत शुरू किया। डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा गैर-क़ानूनी तरीके से सत्ता पर काबिज होने का प्रयास है। युन की पीपुल्स पावर पार्टी के प्रमुख ने भी इस कदम का विरोध किया और पुलिस व और सेना का आव्हान किया कि वे राष्ट्रपति के गैर-कानूनी और गलत हुक्म न मानें। मारक हथियारों से लैस सैनिक संसद भवन में घुसे लेकिन वहां मौजूद 190 सांसदों (जो 300 सदस्यों वाली संसद में बहुमत का प्रत्निधित्व करने थे) ने मुख्य कक्ष को अन्दर से बंद कर लिया था। फिर, उन्होंने सर्वसम्मति से राष्ट्रपति द्वारा केवल दो घंटे पहले जारी किए गए आदेश को वापिस लेने का प्रस्ताव पारित किया।
सैनिक दस्तों के संसद भवन से वापिस जाने का सिलसिला शुरू होने के कुछ ही समय बाद युन टीवी पर आए और उन्होंने घोषणा की कि नेशनल असेम्बली की राय का सम्मान करते हुए वे मार्शल लॉ लागू करने का आदेश वापिस ले रहे हैं।
युन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति पद पर 2022 से आसीन हैं। उन्होंने राजनैतिक रूप से बुरी तरह विभाजित देश में एक अत्यंत कटु चुनावी जंग के बाद बहुत थोड़े से अंतर से जीत हासिल की थी। उसके बाद उन्होंने अपनी पकड़ बहुत तेजी से मजबूत की। उनका राजनीति से कोई लेनादेना नहीं रहा है। वे 27 साल तक अभियोजक रहे थे। मगर सत्ता पाते ही वे वे उससे चिपक गए एवं और अधिक ताकतवर बनने का प्रयास करने लगे।
दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति की महाभियोग प्रक्रिया और किम जांग-उन का बढ़ता प्रभाव
उनके कार्यकाल में हुए घोटालों से जनता के बीच उनकी छवि खराब है। उनकी एप्रूवल रेटिंग, जो उनके राष्ट्रपति पद संभालते समय 53 प्रतिशत थी, पिछले माह 20 प्रतिशत से भी नीचे चली गई।
और अब संसद में उनके खिलाफ महाभियोग चलेगा।
जाहिर है राष्ट्रपति की अपने हाथों अपनी आत्महत्या का यह वाकिया है। उनकी चाल उल्टी पड़ गई है।
संभव है इसके दक्षिण कोरिया में आने वाला समय अराजकता और खलबली भरा हो। पर आज मंगलवार-बुधवार के घटनाक्रम से लगता है दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हैं। युन की विदाई और उनका अंधकारपूर्ण भविष्य तय है!
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इस बीच प्यांगयांग में उनके पड़ोसी किम जांग-उन के अच्छे दिन चल रहे हैं। व्लादिमिर पुतिन को यूक्रेन युद्ध के लिए सैनिक मदद की सख्त दरकार है, जिसके चलते किम का दुनिया में पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाने के दिन हवा हो गए हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि किम सीओल के कमजोर पड़ने का पूरा पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेंगे। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)