सीरिया किसका होगा? वहां मची अफरातफरी का फायदा कौन-कौन उठाएगा? वहां की ज़मीन पर किसकी मर्जी चलेगी? ये कुछ सवाल हैं जिनका जवाब खोजने के लिए ज्ञानीजन, गुप्तचर संस्थाएं और पूरी दुनिया वहां के घटनाक्रम पर पैनी निगाहें रखे हुए हैं।
इस टूटे-बिखरे देश की कुंडली में शायद यही सब लिखा है। यह देश अब स्वयं अपने लिए एक बोझ है। लेकिन सिर्फ अपना फायदा देखने वाली ताकतों के लिए यह एक जायजाद है, अपना प्रभुत्व कायम करने की जगह है। बशर अल-असद, जो सीरिया से भागकर मास्को पहुंच गए हैं, के अचानक तख्तापलट के बाद से सीरिया में कई स्थानों पर बमबारी हुई है। जाहिर है पश्चिम एशिया की इलाकाई ताकतें सीरिया में अपने हितों की रक्षा के लिए छीना-झपटी कर रही हैं। इजराइल, तुर्की और अमेरिका ने वहां हमले किये हैं और असद के पुराने दोस्त रूस और ईरान भी सीरिया के भविष्य के निर्धारण में अपनी भूमिका चाहते हैं।
जाहिर है आने वाले समय में जो चुनौतियाँ इस देश के सामने होंगी, उनसे पार पाना आसान नहीं होगा।
सीरिया पिछले कई दशकों से बर्बरता का शिकार रहा है। वहां के गृहयुद्ध में तीन लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। सन् 2011 से अब तक करीब एक लाख लोग या तो लापता हो गए हैं या उन्हें गायब कर दिया गया है। वे अब कहां हैं – और कहीं हैं भी कि नहीं – इसका खौफनाक हिसाब-किताब अब शुरू होने वाला है। देश की करीब आधी आबादी (1.20 करोड़ लोग) अपने घर-बार छोड़ने पर मजबूर कर दिए गए। दसियों हजार बिना मुकदमों के जेलों में बंद हैं। उन्हें भीषण यातनाएं दी गईं हैं। अब जेलें धीरे-धीरे खाली हो रही हैं, और गुस्से और कड़वाहट से भरे, शरीर और मन से घायल और बदले की आग में जल रहे लोगों का सैलाब पहले से ही तहस-नहस समाज में वापिस लौट रहा है। तुर्की और जोर्डन में रह रहे दसियों लाख शरणार्थी बड़ी संख्या में वापिस आ सकते हैं। यूके और अन्य यूरोपीय देशों ने भी कहा है कि असद का राज समाप्त होने के बाद वे सीरियाईयों के शरण देने के आवेदनों पर आगे की कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। आस्ट्रिया पहले से सीरियाईयों को वापिस भेजने का सिलसिला शुरू कर चुका है। मानवीय एवं सुरक्षा आपदा देश पर मंडरा रही है।
इस बीच एचटीएस के प्रमुख अबू मोहम्मद अल-जोलानी, जिसके अलकायदा से रिश्ते रहे हैं, और जो एक इनामी आतंकवादी से एक राष्ट्र का मुक्तिदाता बन गया हैं, ने भविष्य की अपनी योजनाओं की एक झलक पेश की है। दमिश्क की प्रसिद्ध उम्मेयाद मस्जिद में एक बड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सीरिया कड़ी मेहनत से ‘इस्लामिक देशों के लिए एक प्रकाश स्तंभ बनेगा”।
उनके ये शब्द कान खड़े करने वाले हैं!
एचटीएस द्वारा 2016 में अलकायदा से संबंध तोड़ लेने के बाद से अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व में इदलिब से दमिश्क तक हमलों का सिलसिला चला और इस दौरान संगठन की छवि एक मध्यमार्गी या कम कट्टर संगठन की बनाने का प्रयास किया गया। सीएनएन के साथ एक इंटरव्यू में अल-जोलानी ने कहा कि वे सीरिया के अल्पसंख्यकों का सम्मान करेंगे और यह भी कि किसी भी समूह को किसी अन्य समूह को नष्ट करने का अधिकार नहीं है। अल्लेपो से आ रही शुरूआती खबरों के मुताबिक शहर पर एक हफ्ते पहले हुए एचटीएस के कब्जे के बाद से वहां के ईसाई अल्पसंख्यकों को किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है।
मगर सवाल यह है कि जोलानी किस तरह के इस्लामिक राष्ट्र की बात कर कर रहे हैं?
अमेरिका, रूस और संयुक्त राष्ट्रसंघ – सभी जोलानी को आतंकवादी और एचटीएस को आतंकी संगठन मानते हैं। इसलिए यदि सत्ता पर उनका कब्जा हो जाता है तो जटिल हालात बन जाएंगे। तुर्की और कतर से उनके नजदीकी रिश्तों से अरब देशों में नाराजगी है क्योंकि वे नहीं चाहते कि सीरिया में तुर्की और क़तर का प्रभाव बढ़े। कई जानकारों का मानना है कि जोलानी दूसरा असद बन सकते हैं और दूर तक सोचने वाले सीरिया के नागरिकों को भी यह चिंता है कि कहीं एक तानाशाह की जगह दूसरा तानाशाह न ले ले। बस फर्क सिर्फ इतना होगा कि नया तानाशाह इस्लामवादी होगा।
कुल मिलाकर माहौल में बहुत घबराहट है।
इंटरव्यू में जोलानी के नरम रूख से ऐसा लगता है कि सीरिया में उनके नेतृत्व में बेहतरी की ओर बदलाव हो सकता है। लेकिन शक की गुंजाईश तो है। ‘इस्लामिक देश’ का नारा बुलंद करने और अलकायदा से उसके पुराने संबंधों के चलते एचटीएस तालिबान का सीरियाई संस्करण भी बन सकता है।
हालांकि फिलहाल बहुत से सीरियाई एचटीएस के झंडे तले एकत्रित हो रहे हैं।
लेकिन समस्या यही नहीं है। सीरिया में कई दूसरे विद्रोही समूह भी हैं, जिनके इरादे और सरोकार बहुत अलग हैं। और वे भी आपदा में अवसर तलाश रहे हैं। सबसे कठिन काम इन समूहों से जोलानी का नेतृत्व स्वीकार करवाना होगा। खबरों के मुताबिक पिछले कई सालों में जोलानी जितना राष्ट्रपति असद के खिलाफ भिड़े, उससे ज्यादा उनकी भिडंत इन समूहों से हुई।
युद्ध की शुरूआत से लेकर अब तक सीरिया में हुए घटनाक्रम के जड़ में है बर्बादी लाने वाला विदेशी हस्तक्षेप। और यह आगे के लिए भी बड़ा खतरा है। असद की सेना के भागने के कुछ ही घंटों बाद जमल अल-शाहयाक, जो हरमोन पर्वत श्रंखला की सबसे ऊंची चोटी है, पर स्थित निगरानी चौकी पर इजराइली कमांडो के एक दस्ते ने कब्जा कर लिया है। अर्दोगान, जिनके सिर पर उत्तरी सीरिया और ईराक से कुर्दों के खतरे का भूत सवार है, ने एचटीएस को हमले के लिए तब हरी झंडी दिखाई जब असद ने सीरिया के अंदर एक बफर जोन बनाने के उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अब तुर्की के और ज्यादा सैनिक सीरिया में घुसकर अर्दोगान के सरोकारों के हिसाब से काम कर सकते हैं।
सीरियाई एक शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण की उम्मीद कर रहे हैं ताकि देश में सामान्य हालात कायम हो सकें। लेकिन यह आसान नहीं होगा। हर पात्र, हर देश अपना प्रभाव कायम करने का प्रयास करेगा। संभवतः सीरियाई अराजकता, अव्यवस्था और अशांति के घेरे में फंसे रहेंगे। एचटीएस के उभार के साथ इस क्षेत्र में वैश्विक उग्रवाद का खतरा फिर उभर सकता है। सीरिया के अंदर और बाहर इतने सारे विभाजक तत्वों और खतरों की मौजूदगी के चलते शांति और सद्भाव कायम होना बहुत मुश्किल नजर आ रहा है। सीरिया एक और अफगानिस्तान बन सकता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)