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सीरिया एक नर्क से दूसरे नर्क में?

Bashar Al AssadImage Source: ANI

Bashar Al Assad: सीरिया के राष्ट्रपति असद भाग गए है। देश में सेना, प्रशासन और सरकार खत्म है। बांग्लादेश की हसीना वाजेद के हालिया पतन के बाद एक और तानाशाह के पतन की कहानी लिखी जा रही है।

राष्ट्रपति के राजधानी दमिश्क से भागने के साथ ही, असद परिवार का सीरिया पर पिछले 50 सालों से चला आ रहा राज खत्म हो गया है।

रविवार को सुबह-सुबह विद्रोही बलों ने दमिश्क में जयकारे लगाए। जश्न मनाते हुए हवा में गोलियां चलाईं। चारों ओर ‘अल्लाह-हु-अकबर’ की आवाजें गूंजने लगी।

विद्रोही जनता को सीरिया पर नियंत्रण कायम करने में केवल 11 दिन लगे। विद्रोहियों के उत्तर-पश्चिमी सीरिया से अपने हमले शुरू करने के बाद से ही असद की सेना पीछे हटती गई, उन्हें विदेशी मदद न के बराबर हासिल हो सकी और उनके वफादारों ने देश छोड़कर भागना शुरू कर दिया।

विद्रोहियों के लिए रास्ता साफ होता गया और एक हफ्ते के अंदर देश के पांच प्रांतों की राजधानियों पर असद का नियंत्रण खत्म था।

उथलपुथल और अराजकता सीरिया

उथलपुथल और अराजकता सीरिया के लिए नई बात नहीं हैं। वहां के लोग मुसीबतों के बीच जीने के आदी हैं। बशर अल-असद के जुल्मों के चलते वहां हालात पहले से ही बहुत खराब थे।

खून-खराबा बड़े पैमाने पर हो रहा था और देश रहने लायक नहीं बचा था। फिर रविवार की सुबह देश देश पर इस्लामिक विद्रोहियों का कब्ज़ा हो गया।Bashar Al Assad)

हालाँकि इससे असद के 24 साल के निर्मम शासन अंत हुआ है, लेकिन देश एक नर्क से निकल कर दूसरे नर्क में धकेल दिए जाने के मानिंद है।

2011 में असद गंभीर संकट में

पिछली बार 2011 में असद गंभीर संकट में फंसे थे जब सीरिया के कई शहरों में जनता ने उनके सत्ता छोड़ने की मांग करते हुए बगावत की थी।

उस समय असद ने सरकार की ताकत का इस्तेमाल अपनी ही जनता के खिलाफ करते हुए विरोध को सख्ती से कुचला था। धीरे-धीरे इस विरोध ने गृहयुद्ध का रूप ले लिया।

असद ने अपनी डरावनी जेलों से जेहादी कैदियों को रिहा करके उनकी खिलाफत कर रही ताकतों और जेहादियों के बीच टकराव पैदा करने का प्रयास किया।(Bashar Al Assad)

उसके बाद उन्होंने अपने मुख्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी रूस और लंबे समय के इलाकाई दोस्त ईरान की सहायता ली।

ईरान ने लेबनान के शक्तिशाली हथियारबंद संगठन हिज्बुल्लाह के साथ मिलकर उन्हें सैनिक सहायता उपलब्ध करवाई जिससे वे देश पर दुबारा अपना नियंत्रण कायम करने में कामयाब रहे।

गृहयुद्ध में 3 लाख से अधिक लोग मारे गए(Bashar Al Assad)

इस गृहयुद्ध में तीन लाख से अधिक लोग मारे गए। कुछ अनुमानों के मुताबिक मरने वालों की संख्या इससे दोगुनी थी।  दसियों हजार लोग जेलों में बंद हैं।

सन 2011 से लेकर आज तक कैद किए गए लोगों में से करीब एक लाख या तो गायब हो गए या उन्हें गायब कर दिया गया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों के मुताबिक, इन लोगों को योजनाबद्ध ढंग से क्रूर यातनाएं दी गईं। करीब 1.20 करोड़ लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए।

देश में कई वर्षों तक युद्ध चलता रहा और इस दौरान सीरिया के बड़े शहरों पर असद का नियंत्रण बना रहा।

मगर उत्तर-पश्चिम के कुछ पहाड़ी इलाकों में हयात तहरीर अल-शाम (एचईएस), जिसने 2017 में अलकायदा से नाता तोड़ लिया था, का कब्जा रहा।(Bashar Al Assad)

यह इलाका बाकी दुनिया से कटा हुआ था। यह संगठन असद के लिए बहुत मामूली खतरा नजर आता था किंतु उसने अचानक आक्रमण किया और कुछ ही दिनों में अल्लेपो पर कब्जा कर लिया।

हालात पर काबू पाने की हरचंद कोशिश

सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अल्लेपो में विद्रोहियों के कब्जे के कुछ ही दिनों बाद एचटीएस नेता अबू मोहम्मद अल-जोलानी लड़ाकों के घेरे में शहर के प्राचीन किले की सीढ़ियों से शान से नीचे उतरे, जहां उत्साहित भीड़ ने उनका स्वागत किया।

जोलानी के पूर्व में अलकायदा से संबंध रहे हैं, जिस कारण अमेरिका ने अभी भी उन पर एक करोड़ डालर का इनाम रखा हुआ है।

लेकिन जनता के बीच उसकी सतत मौजूदगी और अपने समर्थकों से सीधे संवाद करने के कारण वे इस विद्रोह के नेता बतौर देखे जाने लगे हैं।

राष्ट्रपति के रूप में अपने आखिरी घंटों के दौरान असद ने हालात पर काबू पाने की हरचंद कोशिश की। चारों ओर से घिर जाने के बाद भी उन्होंने अरब देशों से मदद की गुहार लगाना जारी रखा।

कई स्त्रोतों के मुताबिक उन्होंने यूएआई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायेद – जो एचटीएस जैसे इस्लामिक समूहों से नफरत के लिए जाने जाते हैं –  से भी मदद की भीख माँगी और उन्होंने मिस्र, जार्डन और कई अन्य देशों से भी। लेकिन कोई इस हारी हुई लड़ाई में उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया।

सीरिया पर इस्लामिक विद्रोहियों का कब्जा(Bashar Al Assad)

अब सीरिया पर इस्लामिक विद्रोहियों का कब्जा है। विद्रोही गठबंधन में कई इस्लामिक कट्टरंपथी और नरम धड़े शामिल हैं, जो आपसी मतभेदों के बावजूद असद शासन, इस्लामिक स्टेट और ईरान-समर्थित लड़ाकों से युद्ध करने के मामले में एकमत थे।

एचटीएस और सीरियन नेशनल आर्मी (एसएनए), जिसमें विभिन्न विचारधाराओं वाले दर्जनों संगठन सम्मिलित हैं, को तुर्की धन और हथियार मुहैया करवा रहा है।

सीरिया पर असद का राज खत्म होना तुर्की के लिए फायदेमंद है। तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यब अर्दोग़ान ने सीरिया में आए बदलाव का स्वागत किया है।

शक नहीं कि एचटीएस पर सबसे अधिक प्रभाव तुर्की का ही रहेगा। जल्द ही अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को इस झमेले से दूर रखना चाहते हैं।

“इस लड़ाई से हमारा कोई लेनादेना नहीं है,”  उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है। इसी तरह रूस की प्राथमिकता तरतूस में अपने नौसेना अड्डे को बचाए रखना होगा, जो भूमध्य सागर में उसका इकलौता बंदरगाह है।

प्रश्न का उत्तर मिलना बाकी

मगर जिस प्रश्न का उत्तर मिलना बाकी है वह यह है कि क्या सीरियाईओं को अंततः अपने देश का पुनर्निर्माण करने का मौका मिलेगा? अभी तो वहां का माहौल बैचेनी और डर से भरा हुआ है।

इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस्लामिक संगठन एचटीअस तुर्की के काबू में रहेगा, या तुर्की, एचटीएस को उस हमले को रोकने का हुक्म दे सकेगा जिस हमले में एचटीएस को उसकी उम्मीद से ज्यादा कामयाबी हासिल हुई है।

एचटीएस के पास इतने संसाधन नहीं हैं जितने सीरिया जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश का शासन चलाने के लिए जरूरी हैं।

हालांकि एचटीएस ने ईसाईयों, अलावातियों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों को भरोसा दिलाया है कि वे सुरक्षित रहेंगे लेकिन इस बात की काफी संभावना है कि इनमें से कुछ देश छोड़कर चले जाएं।

फिलहाल, सीरियाईओं और सारी दुनिया के लिए राहत की सबसे बड़ी बात यह है कि खून-खराबे और बर्बादी भरे असद के शासन का अंत हो गया है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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