ट्रंप काफी कन्फ्यूज्ड हैं। या शायद यह उनकी उम्र का तकाजा है – आखिरकार वे 78 साल के बुजुर्ग हैं। जो भी हो, लेकिन व्लादिमीर पुतिन को लेकर उनका कभी नरम कभी गरम रवैया बेतुका और विरोधाभासी लगता है। अभी एक-दो दिन पहले ट्रंप ने कहा कि जब तक यूक्रेन और रूस के बीच युद्धविराम और शांति समझौता नहीं हो जाता तब तक के लिए वे रूस पर सख्त प्रतिबंध और बढ़ा हुआ आयात शुल्क लगाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। इसके कुछ दिन पहले ट्रंप ने अपने उपराष्ट्रपति वेन्स के साथ मिल कर जेलेंस्की पर जबरदस्त जुबानी हमले किए थे। यहां तक कि उन्होंने जेलेंस्की को तानाशाह बताते हुए यूक्रेन को जंग शुरू करने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था। जब कि यह सब जानते हैं कि युद्ध 24 फरवरी 2022 तब शुरू हुआ था जब पुतिन ने अपने पड़ोसी देश पर बड़े पैमाने पर हमला बोला।
ट्रंप और पुतिन की घनिष्ठता कोई रहस्य नहीं है। इस बारे में कई तरह की बातें कही जाती हैं। केजीबी के पूर्व अधिकारियों का दावा है कि ट्रंप को मास्को में 1987 में केजीबी में भर्ती किया गया था। 2016 में उनके चुनाव जीतने के पहले के वर्षो में उन्हें एक काम के व्यक्ति के रूप में सम्हाल कर रखा गया था। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में और दूसरे कार्यकाल के चुनाव अभियान के दौरान भी पुतिन की प्रशंसा की थी। सीआईए और एमआई-6 सहित कई गुप्तचर एजेसिंयों ने 2016 के चुनावों में रूस की दखलअंदाजी की बात कही थी। लेकिन कुछ भी साबित नहीं हो सका और ऐसे हर दावे का खंडन किया गया।
लेकिन ट्रंप द्वारा लगातार पुतिन की तारीफों के पुल बांधना नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, न इसे हल्के में लिया जा सकता है। 12 फरवरी को उन्होंने करीब डेढ़ घंटे तक पुतिन से फोन पर बातचीत की। वे बार-बार पुतिन पर तारीफों के फूल बरसा रहे हैं और यूक्रेनी नेता पर आरोप लगा रहे हैं कि वे रूस के साथ शांति नहीं चाहते। ऐसा लगता है कि उन्हें पुतिन पर ज्यादा भरोसा है और क्रेमलिन के तानाशाह को खुश करने में वे कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। चूंकि रूस के मुकाबले यूक्रेन पर दबाव डालना ज्यादा आसान है, इसलिए वे क्रेमलिन की भाषा में बोल रहे हैं।
उन्होंने यूक्रेन को फौजी सहायता देना बंद कर दिया था और उसके साथ गोपनीय सूचनाएं साझा करने पर रोक लगा दी है। वे खुलेआम जेलेंस्की की आलोचना कर रहे हैं और पर्दे के पीछे उन्हें उनके पद से हटाने की साजिश में हिस्सेदार हैं। वे चाहते हैं कि यूक्रेन रूस की शर्तों पर शांति समझौता कर ले। पुतिन कई सालों से यूक्रेन के प्रति ट्रम्प के रवैये को गढने की कोशिश में लगे हुए हैं और अब इस जंग के बारे दोनों जो कह रहे हैं उसमें कोई ख़ास अंतर नहीं है।
ट्रंप और पुतिन की पहली मुलाकात जुलाई 2017 में हेम्बर्ग, जर्मनी में एक सम्मेलन में हुई थी। इस बैठक के दौरान रूसी राष्ट्रपति ज्यादातर समय यूक्रेन को एक भ्रष्ट और मनमाने ढंग से बनाया गया देश बताकर उसका अपमान करने में लगे रहे और ट्रम्प ने कुछ नहीं कहा। दोनों के नजरिए की यह एकरूपता ट्रंप के दुबारा सत्ता में आने के बाद और साफ नजर आ रही है क्योंकि ट्रम्प सरकार यूक्रेन पर रूस के साथ बातचीत कर शांति समझौता करने के लिए दबाव डाल रही है।
सीआईए की काउंटर-इंटेलिजेंस प्रमुख सुजन मिलर, जिन्होंने 2017 में चुनावों में रूस की दखलअंदाजी के सीआईए के गुप्त आंकलन का नेतृत्व किया था, ने इस निकटता को समझने के लिए एक तर्क दिया है। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि ट्रंप की रूसी राष्ट्रपति के प्रति घनिष्ठता की मुख्य वजह है ‘तानाशाही ईर्ष्या’ – यानि वे चाहते हैं कि पुतिन जिस तरह रूसी मामलों में मनचाहा फैसला ले सकते हैं, वैसा ही वे भी अमेरिका से जुड़े मामलों में कर सकें।
लेकिन,पुतिन से संबंधित बदलती हुई टिप्पणियों और रवैयों के पीछे इससे कुछ ज्यादा है।
ऐसा तो हो नहीं सकता कि व्हाईट हाऊस प्रशासन को यह नहीं पता हो कि शांति समझौते के लिए सिर्फ यूक्रेन पर दबाव डालने और रूस से कुछ न कहने की चौतरफा आलोचना हो रही है। इसलिए ट्रंप की यह धमकी यह दिखाने का प्रयास हो सकती है कि वे निष्पक्ष हैं। अब तक व्लादिमीर पुतिन ने काफी चतुराई से अपनी चालें चली हैं। वे खुश होंगे कि नाटो टूटने की ओर बढ़ता नजर आ रहा है। वैसे इस बात की संभावना बहुत कम है कि प्रतिबंधों से पुतिन विचलित होंगे। मुझे लगता है कि ट्रंप एक योजनाबद्ध तरीके से चालें चल रहे हैं। उथल-पुथल और खलबली भरी वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में पुतिन प्रमुख खिलाड़ी हैं और ट्रंप उनके सहायक की भूमिका हैं। आखिरकार कौन जानता है कि ट्रंप और पुतिन के बीच 12 फरवरी को फोन पर डेढ़ घंटे तक क्या बातें हुईं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)