Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

चीन, यूरोप, कनाडा से सीखें कूटनीति

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पूरी दुनिया की भू राजनीतिक स्थितियां बदल रही हैं। चाहे अमेरिका के दोस्त देश हों या दुश्मन सबको नई स्थितियों के साथ एडजस्ट होना है क्योंकि ट्रंप ने चौतरफा मोर्चा खोला है। ऐसे मुश्किल समय में एक तरफ अमेरिका के ऑल वेदर फ्रेंड्स यानी ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, कनाडा, भारत आदि देश हैं तो दूसरी ओर चीन, रूस जैसे देश हैं। ट्रंप की राजनीति से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देशों में भारत इकलौता देश है, जिसने शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन गाड़ी है या चुपचाप परदे के पीछे बातचीत यानी सौदेबाजी करके अपना मसला निपटाने की कूटनीति की है। बाकी सभी देशों ने अपना चरित्र दिखाया है। सबने तन कर अमेरिका को जवाब दिया है। जवाबी कूटनीति की है। कोई भी देश ट्रंप की बयानबाजियों से नहीं डरा है और न पीछे हटा है।

भारत एकमात्र देश है, जिसने ट्रंप की किसी बात का जवाब नहीं दिया। उलटे ट्रंप ने कहा कि अगर शुल्क कम नहीं किया तो हम भी शुल्क बढ़ाएंगे तो भारत ने तत्काल शुल्क कम कर दिए। ट्रंप ने फिर भी भारत को नहीं छोड़ा और कहा कि दो अप्रैल से रेसिप्रोकल टैरिफ यानी जैसे को तैसा शुल्क लगाएंगे तो भारत ने चुप्पी साध ली। अमेरिका ने कहा कि हम अवैध भारतीय प्रवासियों को निकालेंगे तो भारत ने कहा कि निकालो। अमेरिका ने उन्हें बेड़ियों में जकड़ कर भेजना शुरू किया तब भी हमारे मुंह पर ताले लगे रहे। ट्रंप ने कहा कि भारत के साथ व्यापार  घाटा बहुत बड़ा है, जिसे कम करना है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भारत ने अमेरिका से ज्यादा तेल व गैस खरीदने पर सहमति बनाई ताकि अमेरिका का व्यापार घाटा कम हो और जिस एफ 35 लड़ाकू विमान को इलॉन मस्क ने कबाड़ कहा था उसे भी अमेरिका से खरीदने पर भारत ने सहमति जताई।

इसके बरक्स दूसरे देशों को देखें तो अंतर समझ में आता है। अमेरिका ने कहा कि दो अप्रैल से चीन के खिलाफ जैसे को तैसा शुल्क लगेगा। इसके जवाब में चीन ने कहा कि अमेरिका वॉर चाहता है, चाहे वह ट्रेड वॉर हो या टैरिफ वॉर हो या कोई वॉर हो, चीन सबके लिए तैयार है।  चीन ने कहा कि वह आखिरी तक लड़ने को तैयार है। इतना ही नहीं अमेरिका की ओर से लगाए शुल्क के जवाब में उसने भी अमेरिका के उत्पादों पर 10 से 15 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया। इसके बाद चीन ने अमेरिका को जवाब देने के लिए अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी का ऐलान किया। ट्रंप ने चार मार्च को बयान दिया और चीन ने बुधवार यानी पांच मार्च को अपने रक्षा बजट में 7.2 फीसदी की बढ़त का ऐलान किया। अब चीन का रक्षा बजट 249 अरब डॉलर का होगा। हालांकि अमेरिका का रक्षा बजट अब भी इससे चार गुना बढ़ा है लेकिन सबको पता है कि अमेरिका एशिया में आकर चीन से लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता है। वियतनाम और अफगानिस्तान से अमेरिका ने सबक लिया है। तभी चीन का 249 अरब डॉलर का बजट बहुत बड़ा है। यह भारत के रक्षा बजट से तीन गुना है। इतना ही नहीं सब मानते हैं कि हो सकता है कि यह वास्तविक आंकड़ा नहीं हो और चीन इससे कहीं ज्यादा पैसा रक्षा पर खर्च कर रहा हो।

राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस तरह भारत को धमकाया उसी तरह उन्होंने कनाडा को भी धमकाया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो को तो उन्होंने गवर्नर और कनाडा को अपना 51वां राज्य कहना शुरू कर दिया। ट्रंप ने कनाडा के उत्पादों पर 25 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगाया तो कनाडा ने भी जवाबी शुल्क लगा दिया। किसी तरह का समझौता करने की बजाय ट्रुडो ने पलटवार किया। इसका नतीजा यह हुआ कि ट्रंप ने शुल्क लगाने की सीमा एक महीने बढ़ाई और अब दोबारा उसे 30 दिन के लिए बढ़ा दिया। ट्रंप ने सीमा बढ़ाई तो कनाडा ने भी शुल्क लगाने की सीमा बढ़ा दी। ट्रंप से टकराने का नतीजा यह हुआ है कि दो महीने पहले तक जहां ट्रुडो की लिबरल पाटी 20 फीसदी से ज्यादा वोट के अंतर से पीछे चल रही थी वह अब दो फीसदी वोट से आगे निकल गई है। इतना ही नहीं कनाडा ने अपने नागरिकों को अमेरिका यात्रा करने से रोकना शुरू किया है और अनुमान है कि इससे अमेरिका को 18 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है।

ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देशों को अमेरिका का बारहमासी दोस्त माना जाता है। लेकिन जब ट्रंप और उनके उप राष्ट्रपति जेडी वेंस ने व्हाइट हाउस के ओवल रुम में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को बैठा कर जलील करने का प्रयास किया तो पूरा यूरोप जेलेंस्की के साथ खड़ा हुआ। खुद जेलेंस्की ने ट्रंप और वेंस की आंखों में आंखें डाल कर जवाब दिया। उसके तुरंत बाद यूरोपीय संघ के देश लंदन में जुटे। इस सुरक्षा सम्मेलन में 24 देशों के प्रमुख सशरीर उपस्थिति हुए तो करीब 20 देशों के प्रमुख वर्चुअल तरीके से जुड़े। रूस के साथ यूक्रेन के युद्ध में सबने अमेरिका की भूमिका मानी और यह भी कहा कि आगे भी अमेरिका की जरुरत है लेकिन साथ ही सबने अपनी और यूक्रेन की सुरक्षा अपने दम पर करने का संकल्प भी जताया। यूक्रेन को 40 हजार करोड़ रुपए के मदद की घोषणा की गई। यहां तक कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सभी देशों को परमाणु सुरक्षा उपलब्ध कराने का भरोसा भी दिया। जर्मनी अपनी परमाणु क्षमता विकसित करने में जुट गया है और यूरोपीय देश अपना रक्षा बजट बढ़ा रहे हैं। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषणों, बयानों की परवाह नहीं की। पोलैंड के राष्ट्रपति ने अपने भाषण में कहा कि 13 करोड़ की आबादी वाले रूस से निपटने के लिए 50 करोड़ की आबादी वाला यूरोप 30 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका की ओर देख रहा है। उन्होंने यूरोपीय देशों को ललकारा और सब अपनी सुरक्षा के लिए एकजुट होकर खड़े हुए।

सो चीन, कनाडा, यूरोपा ने सिखाया है कि कूटनीति कैसे की जाती है। अमेरिका ने कूटनीति के बुनियादी सिद्धांत का उल्लंघन किया है। कूटनीति का बुनियादी सिद्धांत यह है कि दो देश आपसी सहमति की चर्चा सार्वजनिक रूप से करते हैं और असहमतियों की चर्चा बंद कमरे में करते हैं। ट्रंप ने असहमतियों की चर्चा सार्वजनिक कर दी तो दुनिया के बहादुर देशों ने उनको जवाब दिया। इसके बाद ट्रंप बैकफुट पर हैं। वे कनाडा पर टैक्स लगाना टाल रहे हैं तो जेलेंस्की पर भी उनके सुर नरम हुए हैं। ट्रंप ने हमास को धमकी दी तो उसने भी पलट कर जवाब दिया। हमास ने गुरुवार, छह मार्च को ट्रंप की धमकियों को खारिज करते हुए कहा कि स्थायी युद्धविराम होगा तभी वे बंधकों को रिहा करेंगे। इसके बावजूद ट्रंप हमास का कुछ नहीं कर पाएंगे। क्योंकि उनकी आदत बिना सोचे समझे गीदड़भभकी देने की है। 20 जनवरी को राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप भारत को छोड़ कर किसी भी देश से मनमाफिक समझौता नहीं कर पाए हैं। भारत एकमात्र देश है, जो सर झुका कर उनकी बातों को स्वीकार कर रहा है या चुप रह कर इंतजार कर रहा है कि बैक चैनल से बात करके कोई समझौता कर लेंगे।

Exit mobile version