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भाजपा में सबकछु चौंकाने वाला!

विधानसभा

भाजपा ने सबसे पहले चौंकाने का काम यह किया कि चुनाव की घोषणा से पहले ही उम्मीदवारों की एक लिस्ट घोषित कर दी। आमतौर पर राष्ट्रीय पार्टियां ऐसा नहीं करती हैं। फिर चौंकाने वाला काम यह किया कि बड़ी संख्या में सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतारा। कई सांसदों और बड़े नेताओं के बारे में यह कहा जा रहा है कि उनको पता ही नहीं था कि चुनाव लड़ना है। टिकट की घोषणा के बाद उनको पता चला कि राज्य की सबसे मुश्किल सीट पर उनको विधानसभा चुनाव लड़ना है।

इसके बाद भाजपा ने प्रदेश नेताओं को चौंकाया। उनको भी उम्मीदवारों के बारे में पहले से कुछ पता नहीं था। प्रदेश की चुनाव समितियों ने उम्मीदवारों के नाम पर जरूर माथापच्ची की थी और जमीनी फीडबैक के आधार पर संभावित उम्मीदवारों की सूची भी बनाई थी। लेकिन वह अंतिम सूची नहीं थी। अंतिम सूची दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपरी नड्डा की मौजूदगी में बनी। ताकि पहले से ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करवाए  सर्वे और फीडबैक के अनुसार सूची बने।

उस सूची को फिर एजेंसियों और पार्टी संगठन से फीडबैक के आधार पर हाईकमान ने अपने स्तर पर ठिक किया। जिसे केंद्रीय चुनाव समिति की बैठकों में पेश कर हां करवाई गई। केंद्रीय चुनाव समिति में विचार और बहस का पहले भी अर्थ नहीं था और अब तो बिल्कुल ही इसलिए नहीं है क्योंकि अंतिम फैसला मोदीजी और शाहजी का। तभी जब भाजपा के मुख्यालय प्रभारी अरूणसिंह द्वारा जारी लिस्ट में कैलाश विजयवर्गीय, तोमर, दीयाकुमारी आदि मंत्रियों, सांसदों और चौंकाने वाले चेहरों के नाम आए तो येदियुरप्पा, राजनाथसिंह, सोनोवाल, लालपुरा, लक्ष्मण, सुधा यादव, जटिया, फडनवीस या श्रीनिवासनी मतलब केंद्रीय चुनाव समिति में कितने लोग है जो मंत्रियों-सांसदों को समझाए कि हमने आपको विधानसभा चुनाव लड़ाने के लिए इन-इन कसौटियों पर फैसला किया। बाकि सदस्यों में जेपी नड्डा, बीएलसंतोष, भूपेंद्र यादव व ओम माथुर तो स्वभाविक तौर पर मोदी-शाह के पहले से ही खाटी अनुशासित स्वंयसेवक है।

सोचे, भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति में छतीसगढ, मध्यप्रदेश और राजस्थान के उम्मीदवारों को तय करने में चुनावी ग्रैंड मास्टर मोदी-शाह के आगे अपना स्वतंत्र दिमाग लगाने वाला क्या कोई एक भी है?

तभी भाजपा का कोई प्रदेश नेता अब यह दावा नहीं कर सकता है कि उसने टिकट बंटवारे में कोई भूमिका निभाई। राजस्थान में चाहे वसुंधरा राजे हों, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान हों, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह हों या तेलंगाना में जी किशन रेड्डी हों, किसी को उम्मीदवारों के नाम के बारे में पहले से पूरी जानकारी नहीं थी। तभी भाजपा की टिकटों की घोषणा के बाद ज्यादा नाराजगी देखने को मिली। टिकट की उम्मीद लगाए बैठे निराश है। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की तर्ज पर कई राज्यों में पार्टी के नेता निर्दलीय लड़ने की तैयारी में होंगे या चुपचाप घर बैठेगे।

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