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छापों से कांग्रेस को फायदा

वैसे विपक्ष को केंद्रीय एजेंसियों से फायदा भी होता है। यह कर्नाटक विधानसभा चुनावों से बखूबी साबित हुआ है। वहां कांग्रेस के डीके शिवकुमार हीरो बन कर उभरे। सो, चुनाव से ठीक पहले की ऐसी कार्रवाई से विपक्ष के प्रति सहानुभूति भी बन सकती है। आमतौर पर कमजोर के प्रति लोगों की हमदर्दी बनती है। अगर लोगों को लगता है कि केंद्र सरकार अपनी ताकत का इस्तेमाल करके विपक्षी नेताओं को परेशान कर रही है तो उनकी हमदर्दी विपक्ष के साथ हो सकती है। इससे यह भी धारणा बनती है कि भाजपा राजनीतिक लड़ाई में कमजोर है तभी वह केंद्रीय एजेंसियों से विपक्ष के यहां छापे पड़वा रही है। सब जानते है कि राजनीतिक लड़ाई चुनाव के मैदान में लड़ी जाती है। पर चुनाव घोषणा के बाद भी यदि केंद्रीय एजेंसियां विपक्षी नेताओं के यहां छापे मार रही हैं तो धारणा बनेगी कि भाजपा कमजोर है और कांग्रेस मजबूत है इसलिए उसको परेशान किया जा रहा है। यह धारणा भाजपा को बड़ा चुनावी नुकसान कर सकती है।

यदि राजस्थान के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के यहां पड़े ईडी के छापे की बात करें तो इससे जातीय राजनीति का हिसाब भी प्रभावित हो सकता है। डोटासरा जाट समुदाय से आते हैं। कांग्रेस ने उनको जाट वोट आकर्षित करने के लिए ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। ध्यान रहे जाट मतदाताओं की किसान आंदोलन के समय से भाजपा से नाराजगी है। हालांकि उत्तर प्रदेश में भाजपा को उसका कुछ वोट मिल गया लेकिन चुनाव से पहले जाट प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई का उनके इलाके खासकर जाट बहुल सीकर इलाके में अच्छा मैसेज नहीं गया होगा। भाजपा वैसे भी जाट वोट को लेकर बहुत भरोसे में नहीं है। उसके सहयोगी रहे जाट नेता हनुमान बेनिवाल अलग लड़ रहे हैं और जाट वोट के लिए नागौर में भाजपा ने कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को पार्टी में लाकर दिया है। तभी चुनाव से पहले एक बड़े जाट नेता के खिलाफ कार्रवाई भाजपा को नुकसान कर सकती है। दूसरी ओर कांग्रेस ने इसका इस्तेमाल एकजुटता बनाने के लिए किया। ईडी की कार्रवाई के बाद सचिन पायलट ने प्रेस कांफ्रेंस करके डोटासरा और वैभव गहलोत का बचाव किया।

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