एक झटके में डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया बदली। उन्होंने दो अप्रैल 2025 के दिन अमेरिका को ‘मुक्त’ किया। वह उस फ्री मार्केट, पूंजीवाद और भूमंडलीकरण से मुक्त हुआ, जिसकी बदौलत अमेरिका सर्वाधिक अमीर, नंबर एक महाशक्ति बना था। अमेरिका ने सब छोड़ा और बगल के कनाडा, मेक्सिको से ले कर यूरोप की उस जमात से भी मुक्त हुआ, जिससे उसका भाईचारा था। डोनाल्ड ट्रंप ने सभी के साथ व्यापार में टैरिफ थोपा और अमेरिका में उद्योग, धंधों, रोजगार की पुनर्स्थापना का शंखनाद किया। इसका अर्थ है अमेरिका के भुगतान संतुलन, व्यापार घाटे तथा घाटे की आर्थिकी की बीमारियों को जड़ों से उखाड़ना।
सोचें, जिस अमेरिका की छींक से दुनिया को जुकाम, वैश्विक शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आते हैं वह यदि दुनिया से ही नाता तोड़ेगा तो दुनिया अनाथ होगी या नहीं?
कोई न माने इस बात को लेकिन अमेरिका दुनिया का चौधरी रहा है तो विश्व राजनीतिक व्यवस्था, विश्व वित्तीय व्यवस्था, विश्व व्यापार, वैश्विक बौद्धिकता, पूंजी, ज्ञान-विज्ञान-तकनीक का प्रणेता सब कुछ रहा है, यह सत्य अब डोनाल्ड ट्रंप की ताजा सनक से फिर जाहिर है। अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के के दो अलग-अलग अमेरिकी आइडिया की धुरी में दुनिया कैसे अलग-अलग दिशा की ओर चलती है यह बाइडन और ट्रंप के दो प्रशासन से जाहिर है।
बाइडन आए तो उनकी प्राथमिकता के साथ दुनिया जलवायु परिवर्तन की चिंता करते हुए थी। उदारवाद, मानवाधिकार, नरसंहार, भूमंडलीकरण, यूक्रेन-रूस युद्ध, वैश्विक सहयोग का अलग ही नैरेटिव था। लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप आए तो सब बदल गया है। दुनिया अचानक अनाथ हुई लग रही है। ट्रंप ने स्टैंड बनाया कि भाड़ में जाए दुनिया, बस अमेरिका को केवल अपनी चिंता करनी है। उसे वापिस ग्रेट बनना है तो पूरी दुनिया इसके सदमे में है। ट्रंप ने दुनिया से अमेरिका की मुक्ति में क्या सोचा? उन सभी से व्यापार रोकना है जो अमेरिका से खरीदते कम हैं और बेचते ज्यादा हैं। अमेरिका को आश्रित बना लूट रहे थे!
चीन पर टैरिफ बढ़ोतरी, भारत के लिए अवसर और चुनौती
इसमें नंबर एक पर टारगेट कौन? वह चीन, जिसमें रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति निक्सन और उनके विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने पूंजी और तकनीक उड़ेल कर उसे दुनिया की फैक्टरी बनाया। चीनी मजूदरों की सस्ताई से अमेरिकी कंपनियों के चीन में कारखाने लगवाए। उससे सस्ता सामान खरीदा। उसे 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल कराया। उसकी वैश्विक व्यापार में एंट्री कराई। नतीजतन चीन वह भस्मासुर बना, जिससे दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं की फैक्टरियां बंद हुईं। बेरोजगारी बनी। कई देश चीन पर निर्भर और उसके गुलाम हुए। इसमें सर्वाधिक बेबस, लाचार व भयाकुल कौन? खुद अमेरिका। हां, पश्चिमी देश और उनका पूंजीवाद व उदारवाद।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका को वापिस ‘ग्रेट’ बनाने का जुमला चीन के कारण पैदा है। अमेरिका के आगे चीन सचमुच में अब हर मामले में एक चुनौती है। इसलिए डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बाइडन ने भी चीन से आयात पर टैरिफ बढ़ाया था तो ट्रंप के दो अप्रैल के मुक्ति दिवस की लिस्ट में भी चीन नंबर एक पर था। बाइडन ने चीन निर्मित कारों पर भारी टैक्स लगाया तो यूरोपीय संघ ने भी लगाया। अब ट्रंप ने कारों पर और 25 प्रतिशत टैरिफ की बढ़ोतरी की। वहीं सभी चाइनीज सामानों पर 54 प्रतिशत टैरिफ भी। सर्वाधिक टैक्स चीन पर।
इतना ही नहीं चीन की धूर्तताओं की बारीकी को पकड़ ट्रंप ने 800 डॉलर तक के सस्ते सामान के पैकेट के बिना शुल्क के प्रवेश की छूट या वियतनाम और कंपूचिया में चीनी कंपनियों के कारखानों से अमेरिका को निर्यात के वाया मीडिया तरीकों को पकड़ा। तभी वियतनाम और कंपूचिया पर भारी टैरिफ। ट्रंप ने किसी भी तरह से चीनी कंपनियों के सस्ते सामान को अमेरिका में घुसने नहीं देने के उपाय किए। ट्रंप प्रशासन ने हर तरह से चीन को घेर उसके आयातों को भारी टैरिफ में बांधा है। सो, चीन नंबर एक दुश्मन।
इसका असर भारत पर भी होगा। चीन अब भारत को पटाएगा। भारत के विशाल बाजार में और पांव फैलाएगा। तभी चीन ने भारत को फुसलाने के बयान दिए है। जबकि चीन से यदि कोई देश सर्वाधिक चौपट हुआ है तो वह भारत है। इसलिए क्योंकि भारत के छोटे-मझोले काम-धंधों, फैक्टरियों का खात्मा चीन के सस्ते सामान से हुआ है। चीन फिर डोरे डालेगा। क्या भारत को उसके झांसे में आना चाहिए?
विशेष कर तब जब दक्षिण एशिया की भूराजनीति तथा सीमा पर भारत के चीन से लगातार बुरे अनुभव हैं! जब पूरी दुनिया, वैश्विक पैमाने पर चीन के वर्चस्ववादी, एकाधिकारी मंसूबों का अनुभव करते हुए उसे निपटाना चाह रही है तब भारत को क्या अपना बाजार उसके लिए और खोलना चाहिए? उलटे भारत के लिए मौका है कि वह विकसित देशों की जमात में चीन के बढ़ते अलगाव को और बढ़ाने की कूटनीति करे।
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