Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

मंडी में मनीष सिसोदिया नहीं बिके!

Manish sisodia

Manish sisodia

भाजपा ने भर्ती मेला लगा रखा है, जिसको अब मिलन समारोह का नाम दिया गया है। इस मेले में कहीं से आकर कोई भी भी नेता बिक रहा है। भर्ती हो जा रहा है। तभी इस सप्ताह जब दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के जेल में एक साल पूरे होने की खबर सुनी तो लगा यह बंदा अलग निकला। इसने भाजपा के आगे सरेंडर नहीं किया। ऐसे ही आप के सांसद संजय सिंह का मामला है। वे भी जेल में है। Manish sisodia

इन दोनों के पास मौका था।वे भी भाजपा में भर्ती हो जाते तो उनकी मुश्किलें समाप्त होती। वे भी साफ-सुथरे हो जाते। सोच सकते हैदेश की राजनीति अभी जैसी है और नेता, विधायक, सांसद जैसे बिक रहे है तो इन दोनों ने सौदा न करके क्या मूर्खता नहीं की?ये बिना मतलब के राजनीतिक विचारधारा से चिपके है।पार्टी और नेता के प्रति निष्ठा की डोर से बंधे है और जेल में सड़ रहे है!

मनीष सिसोदिया को जेल में बंद हुए 26 फरवरी को एक साल हुआ। वे धन शोधन कानून की जिस धारा के तहत गिरफ्तार हुए हैं उसमें दोषी होने पर अधिकतम सात साल की सजा होती है। लेकिन बिना सुनवाई के ही वे एक साल से जेल में बंद हैं। अगर किसी तरह से वे बरी हो गए तो क्या होगा? जेल में बिताया गया उनका समय कौन लौटाएगा? केंद्र की सर्व शक्तिशाली एजेंसी कह रही है कि जमानत दे दी तो वे सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं।

सवाल है कि अब कौन सा सबूत बाहर बचा हुआ है, जो ईडी ने जब्त नहीं कर लिया है? जिनको आरोपी के तौर पर गिरफ्तार किया था उनको सरकारी गवाह बना लिया गया है और सारे सबूत दो केंद्रीय एजेंसियों- सीबीआई और ईडी के कब्जे में हैं। फिर भी एजेंसियों को लग रहा है कि सिसोदिया सबूतों से छेड़छाड़ करेंगे, गवाहों को प्रभावित करेंगे और उससे भी हैरानी की बात यह है कि अदालतों को इस परीकथा पर यकीन भी है। देश की सर्वोच्च अदालत ने सिसोदिया का मामला सुनते हुए एजेंसियों से कहा था कि सबूत लाएं नहीं तो यह केस सुनवाई के दौरान एक मिनट नहीं टिकेगा। फिर भी उनको जमानत नहीं मिली।

पर सिसोदिया का जीवट देखिए कि वे न तो सरकारी गवाह बने और न भाजपा की सदस्यता लेकर अपनी जान बचाई। सोचें, उनका बेटा बाहर रहता है और पत्नी की तबियत बहुत ज्यादा खराब है। अदालत के आदेश से उनको अपनी बीमार पत्नी से मिलने का मौका मिलता है। फिर भी उन्होंने जमानत के लिए या अपने मुकदमे में राहत के लिए कोई समझौता नहीं किया। इसी तरह संजय सिंह को धन शोधन के मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया है। लेकिन सारा मामला परिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित है। उनको चार अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था।

वे भी पांच महीने से जेल में हैं। उनकी जमानत का भी विरोध इस आधार पर है कि वे बाहर आए तो सबूतों से छेड़छाड़ करेंगे और गवाहों को प्रभावित करेंगे। इस लिहाज से कह सकते हैं कि देश की सबसे बड़ी समस्या गवाहों और सबूतों की सुरक्षा का है। अगर केंद्र सरकार की ताकतवर एजेंसियों को यह खतरा घेरे रहता है कि उसके पास जो सबूत हैं या उसके जो गवाह हैं उन्हें प्रभावित किया जा सकता है तो फिर ये एजेंसियां किस बात की ताकतवर हैं? दुनिया के किसी भी सभ्य देश में ऐसा नहीं होता है। Manish sisodia

गिरफ्तारी के तुरंत बाद आरोपी की हैसियत के हिसाब से बॉन्ड जमा करा कर जमानत दी जाती है और जल्दी से जल्दी सुनवाई पूरी करके फैसला होता है। भारत में सबूतों और गवाहों की सुरक्षा के एक लचर तर्क के आधार पर आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रखा जाता है और उसके बाद दशकों तक सुनवाई चलती रहती है, फैसला नहीं आता है। सोचे इस देश की कानून-व्यवस्था ही क्या तानाशाही, लोगों को डराने, गुलाम बनाने का तानाबाना नहीं है। क्या सुप्रीम कोर्ट ने कभी इस पर विचार किया?

बहरहाल, जेल में बंद सिसोदिया और संजय सिंह ने राजनीति में वैचारिक प्रतिबद्धता और दलगत निष्ठा की मिसाल बनाई है। इन दोनों चीजों का भारतीय राजनीति से भयावह क्षरण है। सत्ता के साथ जुड़ना या पद की भूख हर नेता के जीवन की प्राथमिकता हो गई है। केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से अपनी और अपने परिवार के दूसरे सदस्यों की रक्षा करना भी ज्यादातर नेताओं की चिंता है। इसलिए भाजपा के लिए बहुत आसान है कि वह किसी भी नेता को तोड़ ले।

चार दशक तक कांग्रेस के साथ रहे नेता किसी न किसी निजी स्वार्थ या डर के कारण पार्टी बदल रहे हैं। ऐसे समय में अपेक्षाकृत युवा और राजनीति में नए आए सिसोदिया और संजय सिंह जैसे लोग यदि वैचारिक प्रतिबद्धता और निष्ठा जैसे बुनियादी मूल्यों को बचाए हुए हैं तो यह अच्छे चेहरे बचे होने की उम्मीद है। Manish sisodia

अभी जिस तरह से घोड़ों की मंडी की तरह नेताओं की मंडी लगी है और नेताओं की खरीद फरोख्त हो रही है उसमें कुछ नेता अगर अपनी जमीन पकड़ कर खड़े हैं तो वे राजनीति के बुनियादी आदर्शों की ओर दूसरे लोगों के लिए मिसाल तो बन ही सकते हैं।

यह भी पढ़ें:

गडकरी अच्छे या मोदी?

मोदी तानाशाह नहीं, हिंदू गुलाम!

भयाकुल नस्ल के पावरफुल

गुजरात में चिंता!

Exit mobile version