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जोहानिसबर्ग में तिरंगा

चांद पर रूस के लूना-25 का क्रैश होना तथा चंद्रयान-3 की सफलता से भारत का दुनिया में जलवा बना है। स्वभाविक जो ब्रिक्स की जोहानिसबर्ग बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाहवाही हो। समझे इस बात को कि बैठक से पहले चीन ने भारत से सीमा विवाद पर बातचीत के लेवल को जनरल स्तर का किया। जोहानिसबर्ग  में मोदी और शी जिन पिंग में औपचारिक बातचीत नहीं हुई लेकिन लांउज में जब दोनों मिले तो नियंत्रण रेखा, एलएसी पर तनाव घटाने और कमांडर व जनरल लेवल पर आगे वार्ता के साथ मसले के समाधान की शी जिनपिंग  ने जरूरत बताई। जाहिर है विश्व कूटनीति में ब्रिक्स भले चीन प्रायोजित मंच है लेकिन इसके लिए भी चीन को दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाले भारत की जरूरत है। राजनैतिक व आर्थिक दोनों मकसदों में। तभी लाख टके का सवाल है कि चीन ने तब भला क्यों जबरदस्ती भारत की सीमा में घुस स्थाई पंगा बनाया है। और अमेरिका व पश्चिमी देशों के साथ भारत के भू-राजनैतिक-सामरिक रिश्तों की अनिवार्यता बनवाई?  

ब्रिक्स में भारत का जलवा गुट-निरपेक्षता के जुमले से भी हुआ। मेजबान दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति रामाफोसा का कहना था कि- हमारा देश गुट-निरपेक्षता की नीति को लेकर प्रतिबद्ध है। हमने ख़ुद को किसी भी वैश्विक शक्ति या कुछ देशों के प्रभावशाली गुटों का हिस्सा बनाने वाले दबाव में आने से बचाया है। शीतयुद्ध के वक़्त बहुत से अफ़्रीकी देशों की स्थिरता और संप्रभुता कमज़ोर हुई क्योंकि इन्होंने ख़ुद को किसी एक बड़ी शक्ति के साथ जोड़ा। ऐसे ही ब्राजिल के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा का भी गुटनिरपेक्षता पर दो टूक स्टेंड था। तभी जो छह नए सदस्य बने है उसमें मोटामोटी सभी भारत के पक्षधर देश है। ईरान हो या सऊदी अरब व यूएई और मिस्र इनकी सदस्यता के सवाल पर भारत की निश्चित रजामंदी रही होगी। वही दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति रामाफोसा ने अफ्रिकी प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए अल्जीरिया व इथियोपिया को सदस्य बनाया तो ब्राजिल के लूला ने दक्षिण अमेरिका के प्रतिनिधित्व में अर्जेटाइना को सदस्य बनाया। इन सभी देशों में ईरान को छोड कर बाकि नए सदस्य अमेरिका व पश्चिमी देशों से गहरा नाता रखते है। कोई चीन और रूस के एजेंडे का आगे पैरोकार नहीं होगा। बावजूद इसके शी जिन पिंग सदस्य संख्या बढ़ने के खुश होंगे। इसलिए क्योंकि पांच देशों के पर्याय ब्रिक्स के बड़े कुनबे में फैलने का रास्ता खुल गया है। आगे रूस ब्रिक्स का मेजबान है तो उसकी कमान में, उसके बाद चीन की कमान में बेलारूस से ले कर क्यूबा, उजबेकिस्तान, पाकिस्तान, इंडोनेशिया आदि धीरे-धीरे सदस्य हो जाएगें जो पहले से चीन के सिल्क रोड प्रोजेक्ट में भागीदार है।  

जो हो, ब्रिक्स से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की जी-20 बैठक की मेजबानी चमकेगी। अगले पचीस दिन याकि बीस सितंबर तक भारत विश्व कूटनीति के नशे में होगा।

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