Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

अपनी शर्तों पर जिंदगीः ‘जिद्दी गर्ल्स’

ज़िद्दी गर्ल्स’ कहानी है पांच जेन ज़ी फ्रेशर्स की जो कॉलेज में आते ही गहरी दोस्ती, रोमांस और कैंपस की हवा के साथ साथ ज़िंदगी की ताप से भी गुज़र रही हैं।…. ज़िद्दी गर्ल्स’ सीरीज़ का निर्देशन किया है शोनाली बोस ने, जबकि इसे रंगिता प्रीतिश नंदी और इशिता प्रीतिश नंदी ने क्रिएट किया है। और संकल्प जोशी शामिल हैं।

कॉलेज की मस्ती, चुनौतियां और भावनात्मक उतार चढ़ाव को इसमें प्रामाणिक रूप से दर्शाया गया है।

कैंपस फ़िक्शन अपने आप में क़िस्सागोई के लिए एक बेहद दिलचस्प स्पेस है। चाहे ये कैंपस कॉलेज का हो या किसी यूनिवर्सिटी का, इसे कभी केंद्र तो कभी नेपथ्य में रख कर बहुत सी कहानियां, उपन्यास लिखे गए और फ़िल्में बनती रहीं हैं। इसी शृंखला में अब एक ताज़ातरीन वेब सीरीज़ आई है, ‘ज़िद्दी गर्ल्स’। फिल्म की कहानी दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय में लड़कियों के लिए मशहूर कॉलेज ‘मिरांडा हाउस’ के इर्द गिर्द बुनी गई है, जिसका नाम तकनीकी और व्यावहारिक वजहों से ‘मटिल्डा हाउस’ कर दिया गया है। साथ ही शुक्र है उस ‘भूल चूक लेनी देनी’ की तख़्ती (डिस्क्लेमर) एडवांस में लगा देने वाले अनिवार्य चलन का, जिसकी वजह से यह सीरीज़ रिलीज़ के पहले उन विवादों में फंसने से बच गई, जो इसे इसके दर्शकों से दूर रख सकते थे।

तो चलिए आज के ‘सिने-सोहबत’ में चर्चा की जाए ‘मटिल्डा हाउस’ यानी ‘मिरांडा हाउस’ यानी ‘एमएच’ से जुड़ी इस कहानी पर बनी ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ की।

दरअसल, ‘एमएच’ से मेरा निजी रिश्ता भी रहा है। तब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘कैंपस लॉ सेंटर’ (सीएलसी) में पढता था। क़रीब पच्चीस साल हो गए। ज़िंदगी की पहली घोषित गर्लफ्रेंड एमएच में थी और वो भी वहां के हॉस्टल में। ग़ौरतलब है कि ये बताना उतना प्रासंगिक नहीं है कि अब वो मेरी पत्नी हैं लेकिन चूंकि समाज को प्रेम कहानियों का सुखांत देखना अच्छा लगता है इसलिए मैंने इसका ज़िक्र भी कर दिया है।

तो होता ये था कि हर शाम उनसे मिलने जाता था। तब वहां रहने वाली लड़कियों के लिए विज़िटर्स से मिलने का समय होता था शाम साढ़े चार से साढ़े सात। उसके बाद के वक़्त को कहते थे ‘कर्फ्यू ऑवर’। शाम साढ़े सात के बाद हॉस्टल की वो सभी सैकड़ों लड़कियां उस ऊंची गेट और उससे भी ऊंची दीवारों के पीछे ग़ायब। ज़ाहिर है किसी भी संस्थान और वहां के माहौल को सुरक्षित रखने के लिए सिस्टम्स बनाए जाते हैं और समय समय पर उनको बेहतर करने के इंटरनल और एक्सटर्नल संघर्ष चलते रहते हैं।

बहरहाल, ‘अनुशासन’ और ‘अलग अलग किस्म की आज़ादी’ के बीच का संघर्ष सदियों से चला आ रहा है लेकिन ‘एमएच’ की लड़कियों की जो बात मुझे सबसे ज़्यादा चकित करती रही कि वो है वहां के माहौल में देश भर से पढ़ने और खुद को गढ़ने आई लड़कियों में ऐसा कॉन्फिडेंस आता है कि वो अपनी पसंद की फील्ड में कुछ भी कर गुज़रती हैं और वो भी अपनी शर्तों पर। चाहे वहां के थिएटर ग्रुप्स हों, या डिबेटिंग सोसाइटी या फिर स्टूडेंट्स यूनियन के चुनाव, चुनाव की प्रक्रिया और उनमें इन लड़कियों का बेधड़क भाग लेना, साइंस एक्जीबिशन हो या पोएट्री रेसाइटेशन अपनी पढ़ाई और स्पोर्ट्स के साथ साथ सबमें जूझना इन लड़कियों की जीवन शैली बन जाती है। इस कैंपस में हज़ारों लाखों सपने साकार किए हैं। हर क्षेत्र में लड़कियों ने नाम किए हैं। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी एक्स मिरांडीयन (मिरांडा हाउस की पूर्व छात्रा) थीं।

बहरहाल, ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ कहानी है पांच जेन ज़ी फ्रेशर्स की जो कॉलेज में आते ही गहरी दोस्ती, रोमांस और कैंपस की हवा के साथ साथ ज़िंदगी की ताप से भी गुज़र रही हैं। साथ ही वे अपने कॉलेज और वहां के माहौल को बाहरी खतरों से बचाने के लिए संघर्ष करना भी सीखती हैं। ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ की कहानी का प्लॉट ‘शिक्षा के निजीकरण’ की साज़िश को अमली जमा पहनाने की कोशिश और उसके खिलाफ वहां की लड़कियों और कुछ ऐसे शिक्षिकाओं और शिक्षकों के संघर्ष पर टिका है जो उस खुले और प्रगतिशील माहौल को बचाए रखना चाहते हैं। एक तरफ खुले माहौल से हो रही भारतीय संस्कृति के अपमान का कुतर्क और

कॉलेज के खुले माहौल पर अंकुश लगाने की कवायद चल रही होती है तो दूसरी तरफ ‘समानता के अधिकार’ के तहत सबके लिए कम शुल्क में अच्छी शिक्षा को बरक़रार रखने की कोशिश है।

देश भर में जिस तेज़ी से ‘शिक्षा का निजीकरण’ बढ़ रहा है उससे अमीर और गरीब बच्चों के बीच की खाई और भी चौड़ी होती जा रही है। नितांत आवश्यक है कि सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और अन्य तकनीकी संस्थानों को बेहतर किया जाए ताकि हर तबके से आने वाले विधार्थियों को समान अवसर मिल सके। इस संदर्भ में मुझे छत्तीसगढ़ कैडर के अपने एक आईएएस अधिकारी मित्र अवनीश शरण का नाम इसलिए ध्यान में आ रहा है क्योंकि उन्होंने आईएएस रहते हुए अपनी बेटी की स्कूली शिक्षा के लिए उसका दाखिला शहर के एक सरकारी विद्यालय में करवाया था। लगभग सामंती समाज और उसकी री-पैकेजिंग के तौर पर नौकरशाही की ठसक वाले अपने इस देश के किसी भी छोटे शहर के लिए ये एक बहुत बड़ी घटना थी। उसके बाद अवनीश शरण के कई और साथी अफसरों और जूनियर्स ने भी ऐसा ही किया। फिर सरकारी अधिकारियों को ही राज्य सरकार के उस विद्यालय की स्थिति दुरुस्त करनी पड़ी. जिससे हर वर्ग से आने वाले बच्चों की सहूलियतें बढ़ गई। ज़रुरत है माइक्रो लेवल पर सबको अपना योगदान देने की ताकि अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए प्राइवेट प्लेयर्स ही आखिरी विकल्प न रहें।

बढ़िया है कि ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ के माध्यम से समाज में शिक्षा के निजीकरण और उसके इर्द गिर्द भी विचार विमर्श हो कि अपने यहां किस अनुपात में क्या हो या क्या नहीं? ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ सीरीज़ का निर्देशन किया है शोनाली बोस ने, जबकि इसे रंगिता प्रीतिश नंदी और इशिता प्रीतिश नंदी ने क्रिएट किया है। प्रमुख भूमिकाओं में सिमरन, नंदिता दास, अनुप्रिया कैरोली, रेवती, अतिया तारा नायक, उमंग भड़ाना, जैन अली, दिया दामिनी, नंदीश सिंह संधू

और संकल्प जोशी शामिल हैं।

कॉलेज की मस्ती, चुनौतियां और भावनात्मक उतार चढ़ाव को इसमें प्रामाणिक रूप से दर्शाया गया है। साथ ही, यह सीरीज दोस्ती, महत्वाकांक्षाओं और निजी संघर्षों के माध्यम से युवा महिलाओं के जीवन की वास्तविक झलक प्रस्तुत करती है। ये कहानी बख़ूबी दिखाती है कि कैसे ये लड़कियां अप्रासंगिकता को चुनाती देकर अपने भविष्य के लिए संघर्ष करती हैं। ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ के इस पहले सीज़न में कुल आठ एपिसोड हैं। अमेज़न प्राइम वीडियो पर है। देख लीजिएगा।(पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़” के होस्ट हैं।)

Exit mobile version