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राममंदिर और रामराज्य

रामराज्य से मेरा तात्पर्य हिंदू राज से नहीं है। रामराज्य से मेरा तात्पर्य दिव्य राज, द किंगडम ऑफ गॉड से है। मेरे लिए राम और रहीम एक ही देवता हैं। मैं किसी अन्य ईश्वर को नहीं, बल्कि एक सत्य और नीतिपरायणता के ईश्वर को स्वीकार करता हूं। चाहे मेरी कल्पना के राम इस धरती पर कभी रहे हों या नहीं, रामराज्य का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है।

देश में उत्सव चल रहा है। गणतंत्र के उत्सव से पहले एक सांस्कृतिक उत्सव आयोजित हो रहा है। अयोध्या के राममंदिर में रामलला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का उत्सव विशाल पैमाने पर है। हर तरफ उसी की गूंज देखी-सुनी, व दिखायी-दर्शायी जा रही है। अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ-साथ ही सभी राममंदिरों में रामलला पुन: विराजमान हो, ऐसा रचनात्मक कार्यक्रम भी जगह-जगह चलरहा है। आमजन की आशा भी है कि आस्थावान, राममय देश में रामराज्य आगे लोकतंत्र का संबल होगा। सवाल है क्या जनता के रामराज्य के सपने को विशाल जनमत के बावजूद सरकार समझती है?

देश के पौराणिक ग्रंथों में रामराज्य के लोकतंत्र का महात्म्य है। तुलसीदास रचित रामायण के उत्तरकांड में रामराज्य का वर्णन कुछ यों है –

राम राज बैठें त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।

बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई।।

तुलसीदास की पौराणिक आशा को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने भी दोहराया था। तब की परिस्थितियों को समझते हुए रामराज्य के अपने मायनों को उन्होने लोगों को नसमझाया था। कहा था, “रामराज्य से मेरा तात्पर्य हिंदू राज से नहीं है। रामराज्य से मेरा तात्पर्य दिव्य राज, द किंगडम ऑफ गॉड से है। मेरे लिए राम और रहीम एक ही देवता हैं। मैं किसी अन्य ईश्वर को नहीं, बल्कि एक सत्य और नीतिपरायणता के ईश्वर को स्वीकार करता हूं। चाहे मेरी कल्पना के राम इस धरती पर कभी रहे हों या नहीं, रामराज्य का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है। जिसमें सबसे कमजोर नागरिक भी विस्तृत और महंगी प्रक्रिया के बिना शीघ्र न्याय सुनिश्चित कर सकता है।“

“मेरे सपनों का रामराज्य राजा और रंक दोनों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करता है। राजनीतिक स्वतंत्रता से मेरा तात्पर्य ब्रिटेन, रूस या इटली या जर्मनी के शासन की नकल से नहीं है। उनके पास उनकी प्रतिभा के अनुकूल प्रणालियां होंगी। हमें अपने स्वयं के अनुकूल प्रणाली बनानी चाहिए। वह क्या हो सकती है, यह मैं जितना बता सकता हूं उससे कहीं अधिक है। मैंने इसे रामराज्य के रूप में वर्णित किया है। अर्थात शुद्ध नैतिक अधिकार पर आधारित लोगों की संप्रभुता। अन्यायपूर्ण असमानताओं की वर्तमान स्थिति में कोई रामराज्य नहीं हो सकता है, जिसमें कुछ लोग अति अमीर हैं और ज्यादातर जनता को खाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है।“

“मेरा हिंदू धर्म मुझे सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाता है। इसी में रामराज्य का रहस्य छिपा है। यदि आप ईश्वर को रामराज्य के रूप में देखना चाहते हैं तो पहली आवश्यकता है आत्म-निरीक्षण। हमें अपने दोषों को दूर करना होगा और अपने पड़ोसियों के दोषों पर आंखें मूंद लेनी होंगी। वास्तविक प्रगति का यही एकमात्र रास्ता है। मित्रों ने मुझे स्वतंत्रता को परिभाषित करने के लिए बार-बार चुनौती दी है। दोहराव के जोखिम पर, मुझे कहना होगा कि मेरे सपने की स्वतंत्रता का अर्थ है रामराज्य यानी पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य। मैं नहीं जानता कि यह स्वर्ग जैसा होगा या नहीं। मुझे दूर का दृश्य जानने की कोई इच्छा नहीं है। यदि वर्तमान पर्याप्त आकर्षक है, तो भविष्य बहुत विपरीत नहीं हो सकता।“

गांधी के समय से आज परिस्थिति बेहतर है। और आने वाली स्थितियों का निडरता से सामना करने के लिए समाज तैयार रहना भी सीख सकता है। राममंदिर व अन्य तीर्थस्थलों में बनाए गए गलियारों से पर्यटन के रोजगार और आध्यात्म की समझ में उछाल की आशा लगायी जा रही है। एक तरह से वहीं के लोगों को वहीं रोजगार मिले तो अच्छा ही है। सिर्फ औद्योगिक या राजनीतिक शहर ही प्रगति या विकास करें तो सारे समाज की रचनात्मकता का क्या होगा?

इसलिए छोटे शहरों का उत्थान भी राज्यसत्ता की जिम्मेदारी है। पर्यटन बढ़े तो पलायन रुकेगा, तभी सही प्रगति होगी। यही सब सोचकर अयोध्या से पांच बार विधानसभा और अब दो बार से लोकसभा सांसद लल्लू सिंह ने छह साल पहले अयोध्या पर्व मनाना शुरू किया था। वे अयोध्या के जनजीवन, संस्कृति और आध्यात्म से जुड़े पहलुओं पर लगातार प्रकाश डालते आए हैं। अयोध्या की चौरासी कोस यात्रा का महात्मय राजधानी में समझाते आ रहे हैं। इसलिए उत्सव होना ठिक ही है।

सो क्यों न अयोध्या से ही समरस समाज के रामराज्य की शुरुआत हो? राममंदिर बनरहा है। रामलला विराजमान होंगे। वही से रामराज्य के विचार और संकल्प का रास्ता शुरू हो!

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