Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

पंजाब का हालिया घटनाक्रम क्या इशारा करता है?

पंजाब की हालिया घटनाएं मन में चिंता पैदा करती हैं। जो सूबा एक समय देश का सिरमौर था, वह आज नशाखोरी, मतांतरण, असहिष्णुता, हिंसा और अलगाववाद का शिकार है। इसके लिए बाहरी और आंतरिक तत्व- दोनों जिम्मेदार हैं। जिन राजनीतिज्ञों पर इस स्थिति का दायित्व है, वह या तो समस्या का हिस्सा हैं या फिर चुप हैं। जिस कांग्रेस ने अपनी नीतियों के कारण इसका खामियाजा सर्वाधिक भुगता, उसका शीर्ष नेतृत्व संकीर्ण चिंतन में फंसकर इसे फिर प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से बढ़ावा देने में लगा है।

पंजाब की जालंधर देहात पुलिस ने खडूर साहिब से खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल के भाई हरप्रीत सिंह सहित अन्य दो आरोपियों को चार चार ग्राम क्रिस्टल मेथामेफटामाइन (आइस) के साथ बीते दिन गिरफ्तार किया था। उस समय हुए मेडिकल जांच में हरप्रीत और उसके साथी का डोप टेस्ट भी पॉजिटिव आया था। अदालत आरोपियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृतपाल वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत असम के डिब्रूगढ़ जिले की जेल में बंद हैं। हाल ही में उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने के लिए चार दिन की पैरोल मिली थी। बतौर निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ते हुए अमृतपाल ने खडूर साहिब से कांग्रेसी उम्मीदवार को 1.97 लाख वोटों से हराया था। अमृतपाल के अलावा सरबजीत सिंह खालसा, जो कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे में से एक बेअंत सिंह के बेटे हैं, वे भी फरीदकोट से आम आदमी पार्टी (आप) प्रत्याक्षी को 70 हजार मतों से हराकर विजयी हुए हैं।

इससे पहले पांच जुलाई को शिव सेना की पंजाब इकाई के नेता संदीप थापर पर निहंग-वेष में तीन लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया था, जिसका वीडियो खूब वायरल हुआ। थापर पर व्यस्त सड़क पर दिनदहाड़े यह हमला उस समय किया गया, जब वे अपने सुरक्षाकर्मी के साथ स्कूटर पर बैठे थे। फिलहाल वे खतरे से बाहर हैं, तो आरोपी पुलिस की गिरफ्त में हैं। यह मामला ठंडा हुआ नहीं था कि अमृतसर स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) की बस में निहंग-वस्त्रधारी द्वारा तलवार लेकर घुसने, सुरक्षकर्मी को पीटने और छात्रों को धूम्रपान करने पर कलाई काटने की धमकी देने का मामला सामने आ गया। इस घटना का भी वीडियो वायरल हो गया, जिसके बाद पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करने को मजबूर हो गई। पूछताछ में आरोपी ने कहा कि गुरु नगरी में तंबाकू बेचने वालों और इस्तेमाल करने वालों को नहीं रहने देगा।

नशाखोरी, असहिष्णुता और खालिस्तानी तत्वों का उभार आपस में गहरा ताल्लुक रखती है। यह उस खूनी अध्याय की यादें ताजा करती है, जिसका जिक्र एक गैर-राजनीतिक चश्मदीद, मुआसिर आईपीएस अधिकारी और भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रॉ) में 26 वर्ष जुड़े रहने के बाद विशेष सचिव के रूप में सेवानिवृत हुए गुरबख्श सिंह सिद्धू ने अपनी पुस्तक ‘द खालिस्तान कांस्पीरेसी’ में किया है। उनका खुलासा इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि वे कांग्रेस के दिग्गज नेता दिवंगत सरदार स्वर्ण सिंह के दामाद भी हैं।

अपनी पुस्तक में गुरबख्श लिखते हैं, “…वर्ष 1977 के पंजाब (विधानसभा) चुनाव में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन से कांग्रेस हार गई थी। इसके तुरंत बाद, मुझे पूर्व मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी द्वारा जरनैल सिंह भिंडरावाले के समर्थन से अकाली दल के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों की जानकारी मिली…।” बकौल सिद्धू, “…ज्ञानी जैल सिंह ने संजय गांधी को सलाह दी कि पंजाब में अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन सरकार को अस्थिर किया जा सकता है, यदि उनकी उदारवादी नीतियों पर… एक उपयुक्त सिख संत द्वारा लगातार हमला किया जाए।” इसके लिए कांग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडरावाले को चुना। प्रारंभिक असफलता के बाद कांग्रेसी प्रपंच ने पंजाब को अनियंत्रित अराजकता और रक्तपात की ओर धकेल दिया।

कांग्रेस की विभाजनकारी राजनीति का परिणाम यह हुआ कि भिंडरावाले ने अमृतसर स्थित श्रीहरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) को अपना अड्डा बना लिया। चूंकि खालिस्तान की परिकल्पना विदेशी है और इसे अधिकांश भारतीय सिखों का समर्थन नहीं मिलता, इसलिए तब भिंडरावाले के निर्देश पर निरापराध हिंदुओं के साथ देशभक्त सिखों को भी चिन्हित करके मौत के घाट उतारे जाने लगा। कालांतर में इंदिरा सरकार के निर्देश पर हुए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ ने स्वर्ण मंदिर की मर्यादा भंग हो गई, जिससे श्रद्धालुओं को गहरा आघात पहुंचा। परिणामस्वरूप, 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों- सतवंत और बेअंत सिंह ने गोली मारकर हत्या कर दी। इसकी प्रतिक्रिया में हजारों निरपराध सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस प्रायोजित नरसंहार को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में न्यायोचित ठहराते हुए राजीव गांधी ने कहा था, “जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती थोड़ी हिलती है”। यह ठीक है कि कांग्रेस के ‘इको-सिस्टम’ ने खालिस्तान विमर्श को हवा दी, तो पाकिस्तान आज भी इसका सबसे पोषक बनकर पंजाब में नशाखोरी को भी बढ़ावा दे रहा है।

पंजाब में ‘आप’ का शासन है, जिसका नेतृत्व भगवत सिंह मान संभाल रहे हैं। उनका दामन ‘आप’ संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तुलना में अभी तक पाक-साफ है। अमृतपाल पर कानूनी कार्रवाई, मान सरकार के सहयोग से पूर्ण हो पाई है। वही केजरीवाल न केवल दिल्ली शराब घोटाले के आरोपी हैं और जेल में बतौर अभियुक्त बंद है, साथ ही उन पर खालिस्तानी चरमपंथियों के साथ सांठगांठ रखने का भी आरोप है। हाल ही में दिल्ली के उप राज्यपाल ने केजरीवाल नीत ‘आप’ पर प्रतिबंधित खालिस्तानी संगठन “सिख फॉर जस्टिस” से कथित रूप से राजनीतिक फंड लेने को लेकर जांच की सिफारिश की है।

एक पुरानी कहावत है- ‘जो लोग अतीत को याद नहीं रखते, वे उसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं’। क्या पंजाब ने अपनी गलतियों से सीखा? ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाबी समाज का एक छोटा हिस्सा कनाडा में बसे उग्रवादियों से प्रेरणा लेकर और पाकिस्तान के समर्थन से सत्कारयोग्य सिख गुरुओं की कर्मभूमि को दोबारा विनाश की ओर धकेलना चाहता है। पंजाब की भलाई इसी में है कि वे अपने गुरुओं की सच्चाई, त्याग, परिश्रम (किरत) और सबका भला करने के मार्ग पर चलें।

हाल ही में लेखक की ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या: डिकॉलोनाइजेशन ऑफ इंडिया’ पुस्तक प्रकाशित हुई है।

संपर्क:- punjbalbir@gmail.com

Exit mobile version