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मुट्ठी तानिए, मुट्ठी से मुक्ति के लिए

 कुंभ सनातन की समानता का महायज्ञ है। उसे किसी व्यक्ति या दल विशेष उन्मुख एकजुटता की तरह प्रचारित करने की काइयां करतूत के भीतर ज़रा गहराई से झांकिए। यह शरारत नहीं, साज़िश है। असली हिंदू-विरोधी वे हैं, जिन्होंने अपने को हिंदुओं का ठेकेदार घोषित कर दिया है। सनातन के असली शत्रु वे हैं, जो सनातन के पर्वों, परंपराओं और रीति-रिवाजों पर काबिज़ हो कर उन्हें अपनी मुट्ठी में भींच रहे हैं। उन का असली मक़सद सनातन के स्व-प्रवाह को अपने बहीखाते में बांधना है। इन तत्वों से मुक्ति में ही सनातन की शाश्वतता अक्षुण्ण रह पाएगी। इसलिए इन की मुट्ठी से आज़ाद रहने के लिए अपनी मुट्ठी तानने में देर मत कीजिए।

कुंभ – नहीं, नहीं, महाकुंभ – संपन्न हो गया। पहले कुंभ और अर्धकुंभ ही हुआ करते थे। देश में नरेंद्र भाई मोदी ओर उत्तर प्रदेश में अजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद इलाहाबाद उर्फ़ प्रयागराज में जो हुआ, वह ‘महाकुंभ’ था। योगी-सरकार ने दुनिया को बताया कि महाशिवरात्रि को अमृत स्नान होने तक 66 करोड़ 33 लाख लोगों ने महाकुंभ स्नान किया है। प्राचीन गोरखनाथ मठ के योगी ने आधुनिकतम तकनीकों का इस्तेमाल कर के यह गिनती की है तो ठीक ही की होगी। दुनिया भर में सनातन धर्म को मानने वालों की तादाद तक़रीबन 1 अरब 20 करोड़ है। सो, आधी से कुछ ज़्यादा सनातन आबादी गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने पहुंची।

हिंदू एकता के इस महायज्ञ से हिंदू जागीर के स्व-नियुक्त जागीरदार गदगद नहीं होंगे तो कौन होगा? वे गदगद हैं। उन्हें गदगद होने का हक़ है। उन्हें गदगद होने दीजिए। उन के महायज्ञ के आयोजन में शास्त्रीय परंपराओं के पालन-अपालन पर सवाल खड़े करने वाले और अव्यवस्था-कुव्यवस्था पर प्रश्न उठाने वाले गिद्ध हैं, सूअर हैं। कुंभ में भगदड़ की घटनाओं में मारे गए सनातनियों को श्रद्धांजलि देने वाले राक्षस हैं। इन विघ्नकर्ता असुरों को माकूल जवाब देने के लिए ही भारत के प्रधानमंत्री को उस पर्चीबाज़ बाबा के धाम जाना पड़ा, जो संगम-तट पर मिले मोक्ष के महत्व से दुनिया को अवगत करा रहा था।

पहले कुंभ अपने आप होता था। कुंभ आता था तो सरकारों की भूमिका महज़ इंतज़ामअली की होती थी। मगर इस बार के ‘महाकुंभ’ में डबल इंजन की सरकार ने ख़ुद को मेज़बान घोषित कर दिया। नरेंद्र भाई और योगी के मुखारविंदों से हुलस-हुलस कर निमंत्रण संदेश बहने लगे। डेढ़ महीने बाद महाकुंभ ख़त्म हुआ तो दोनों के मुख-कमल से सनातनियों को धन्यवाद-ज्ञापन देने की होड़ लग गई। योगी डाल-डाल तो नरेंद्र भाई पात-पात। बोले, आप आए, हम धन्य हुए। आप ने दिखा दिया कि हिंदू एक हैं। योगी ने सोचा कि अगर मैं ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ न कहा होता तो इस तरह भरभरा कर हिंदूजन प्रयागराज न पहुंचते। नरेंद्र भाई ने सोचा कि अगर मैं ने ‘एक हैं तो सेफ़ हैं’ का जुमला न उछाला होता तो 66 करोड़ सनातनी उछल-उछल कर महाकुंभ नहीं आते।

144 बरस बाद महाकुंभ हुआ। ज़ाहिर है कि ऐतिहासिक बात है। फिर प्रयागराज में तो 400 साल बाद पहली बार हुआ, क्योंकि पहले तो इलाहाबाद में होता था, तो ज़ाहिर है कि यह और भी ऐतिहासिक बात है। लेकिन सब से बड़ी ऐतिहासिक घटना तो यह है कि कुंभ में शिरकत की स्वतःस्फूर्तता के भाव का हमेशा-हमेशा के लिए नाश हो गया है। अब भविष्य के कुंभ आयोजनों में भी बुलावा देने का ज़िम्मा नरेंद्र भाई ने ख़ुद-ब-ख़ुद अपने हाथ में ले लिया है। प्रयागराज के आयोजन की समाप्ति पर उन्होंने हमें याद दिलाया कि अगला कुंभ नासिक में होगा और आस्था एवं एकजुटता का यही भाव तब भी बना रहे! नरेंद्र भाई अब कुंभ के स्थायी-जजमान हैं। उन की टोली ने इन पैंतालीस दिनों में यह माहौल बनाने में कोई पत्थर उलटना बाकी नहीं रखा कि जो कुंभ नहाने नहीं आया, वह हिंदू नहीं है, वह सनातन का शत्रु है।

मुझे नहीं मालूम कि सभी शंकराचार्य, धर्माचार्य, महामंडलेश्वर, आदि-इत्यादि कुंभ स्नान करने गए या नहीं। मुझे नहीं पता कि नरेंद्र भाई की मंत्रिपरिशद के 71 सदस्यों में से कितनों ने कुंभ में डुबकी लगाई? भारतीय जनता पार्टी के सब मिला कर 338 सांसदों में से कितने कुंभ नहाने गए? एनडीए के बाकी 80 सांसदों में से कौन प्रयागराज गया, कौन नहीं गया? भाजपा के 1659 और एनडीए के 597 यानी कुल मिला कर 2256 विधायकों में से कितने कुंभ स्नान के पुण्यार्थी बने? मुझे पक्का भरोसा है कि नरेंद्र भाई की मंडली ने ज़रूर इस की सूची तैयार की होगी। कोई हैरत नहीं कि आने वाले हर चुनाव में भाजपा की उम्मीदवारी तय करते वक़्त अभ्यर्थियों से पूछा जाए कि वे प्रयागराज के महाकुंभ में अपने पापों का प्रक्षालन करने गए थे या नहीं?

क्या प्रधानमंत्री जी के दोनों प्रधान सचिव कुंभ नहा कर आए? भारत सरकार के 91 सचिवों में से कितने संगम-तट पहुंचे? 107 अतिरिक्त सचिवों में से कितनों ने कुंभ स्नान का पुण्य प्राप्त किया? 341 संयुक्त सचिवों में से कितनों ने यह सौभाग्य हासिल किया? भारतीय प्रषासनिक सेवा के 6789 अफ़सरों में से कितनों ने गंगा में डुबकी लगाई? भारतीय पुलिस सेवा के 5047 अधिकारियों में से कितने कुंभ में स्नान कर के आए हैं? यह पूछना तो शायद उचित नहीं होगा, इसलिए मैं नहीं पूछ रहा हूं कि क्या थल सेनाध्यक्ष, जल सेनाध्यक्ष और वायु सेनाध्यक्ष का कुंभ जाना-न-जाना भी उन के हिंदू होने-न-होने का आधार माना जाएगा?

स्नातन में आस्था अगर अब कुंभ स्नान से ही तय होगी तो क्या इसका अर्थ यह है कि 1 अरब 20 करोड़ हिंदुओं में से जो 54 करोड़ प्रयागराज नहीं गए या नहीं जा पाए, वे हिंदू नहीं हैं? रामलला का मंदिर बना तो महौल बनाया गया कि जो प्राणप्रतिष्ठा में अयोध्या नहीं आएगा, वह हिंदू-विरोधी है। अब कुंभ नहीं जाना भी हिंदू-विरोधी करार दे दिया गया। भाजपा का दावा है कि रामलला को हम लाए। भाजपा का दावा है कि महाकुंभ हमारा है। तो मूल रणनीति यह है कि भाजपा का समर्थक होना हिंदू होने की अंततः एक अपिवार्य शर्त बना दी जाए। जो किसी और राजनीतिक दल का समर्थक होगा, वह हिंदू-विरोधी है, सनातन का शत्रु है। बात ख़त्म।

डबल इंजन की सरकार के दावों को सच मानते हुए, और हिंदू-विरोधी तथा सनातन-शत्रु घोशित कर दिए जाने का जोख़िम लेते हुए, मैं एक बुनियादी मसला उठाने की हिमाक़त कर रहा हूं। अगर 66 करोड़ लोग कुंभ स्नान करने पहुंचे तो इस का मतलब हुआ कि 120 करोड़ सनातनियों में से 54 करोड़ प्रयागराज नहीं गए। इस का मतलब यह भी हुआ कि कुंभ में आस्था रखने वालों में से 43 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन की सनातन की परंपराओं में तो आस्था है, लेकिन उन की भाजपा में कोई आस्था नहीं है। वे अपने हिंदू होने पर तो गर्व करते हैं, मगर उन्हें भाजपा की विभाजनकारी सियासत से दूर रहने पर भी गर्व है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुल 23 करोड़ ही वोट मिले हैं। मान लें कि भाजपा को वोट देने वाले सभी लोग कुंभ नहाने ज़रूर गए होंगे तो बाक़ी 43 करोड़ हिंदू तो वे थे, जिन्होंने भाजपा के ख़िलाफ़ वोट दिया था। यानी जितने हिंदू भाजपा को वोट देते हैं, उस से दुगने हिंदू उस के खिलाफ़ मतदान करते हैं और उन के लिए कुंभ नहाना हिंदू होने की अनिवार्य शर्त नहीं है।

सो, कुंभ सनातन की समानता का महायज्ञ है। उसे किसी व्यक्ति या दल विशेष उन्मुख एकजुटता की तरह प्रचारित करने की काइयां करतूत के भीतर ज़रा गहराई से झांकिए। यह शरारत नहीं, साज़िश है। असली हिंदू-विरोधी वे हैं, जिन्होंने अपने को हिंदुओं का ठेकेदार घोषित कर दिया है। सनातन के असली शत्रु वे हैं, जो सनातन के पर्वों, परंपराओं और रीति-रिवाजों पर काबिज़ हो कर उन्हें अपनी मुट्ठी में भींच रहे हैं। उन का असली मक़सद सनातन के स्व-प्रवाह को अपने बहीखाते में बांधना है। इन तत्वों से मुक्ति में ही सनातन की शाश्वतता अक्षुण्ण रह पाएगी। इसलिए इन की मुट्ठी से आज़ाद रहने के लिए अपनी मुट्ठी तानने में देर मत कीजिए।

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