जिस तरह से रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए नासूर बने हैं उसी तरह बाहरी आक्रमणकारियों के नाम पर बसी कॉलोनियां, सड़कें, पार्क आदि भी एक संप्रभु राष्ट्र की राजधानी में धब्बे की तरह हैं। अच्छी बात यह है कि दिल्ली की नई सरकार ने इस दिशा में भी कार्य आरंभ कर दिया है। विधानसभा के पहले सत्र में भाजपा विधायकों ने कम से कम तीन क्षेत्रों का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा है।
दिल्ली को विश्वस्तरीय राष्ट्रीय राजधानी बनाने का कार्य आरंभ हो गया है। इसमें करीब तीन दशक की देरी हुई है और इन तीन दशकों में धीरे धीरे राजधानी दिल्ली बुनियादी ढांचे से लेकर कानून व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन, साफ सफाई, सीवेज प्रणाली, जल आपूर्ति आदि हर पैमाने पर पिछड़ती चली गई। राष्ट्रीय राजधानी होने के बावजूद दिल्ली बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की शरणस्थली बन गई। राज्य सरकार की केंद्र से टकराव की नीतियों के कारण दिल्ली का विकास ठप्प हो गया और बुनियादी ढांचा चरमरा गया। परंतु अब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा चुनाव के समय दी गई गारंटी के अनुरूप दिल्ली में सब कुछ ठीक करने का अभियान शुरू हो गया है। कह सकते हैं कि दिल्ली को विश्वस्तरीय राजधानी शहर बनाने का कार्य आरंभ हो गया है।
लंबे अंतराल के बाद कानून व्यवस्था और दिल्ली की बुनियादी समस्याओं को लेकर केंद्र और राज्य की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई है। इसमें केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने दिल्ली की मुख्यमंत्री, दिल्ली के गृह मंत्री और पुलिस प्रमुख को कई अहम निर्देश दिए। उनमें सबसे महत्वपूर्ण निर्देश रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के पूरे नेटवर्क की पहचान करके उस पर सख्त कार्रवाई करने का है। केंद्रीय गृह मंत्री ने दो टूक शब्दों में कहा कि घुसपैठियों के मददगारों की भी पहचान करनी है और उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करनी है। ध्यान रहे चुनाव से पहले दिल्ली के उप राज्यपाल के निर्देश पर दिल्ली पुलिस ने घुसपैठियों की पहचान करने का अभियान शुरू किया था। जाकिर नगर, जामिया से लेकर ओखला, मुस्तफाबाद, सीलमपुर आदि इलाके में घर घर जाकर घुसपैठियों की तलाश की गई। तब बहुत सफलता इसलिए नहीं मिल पाई क्योंकि यह काम अकेले दिल्ली पुलिस कर रही थी। दिल्ली सरकार का उसको सहयोग नहीं मिल रहा था। दिल्ली की तत्कालीन सरकार घुसपैठियों को शरण और सुविधाएं देने के काम में लगी थी। परंतु अब स्थितियां बदल गई हैं। अब दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस मिल कर घुसपैठियों और उनके मददगारों की तलाश करेंगे और उनके पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करेंगे।
जिस तरह से रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए नासूर बने हैं उसी तरह बाहरी आक्रमणकारियों के नाम पर बसी कॉलोनियां, सड़कें, पार्क आदि भी एक संप्रभु राष्ट्र की राजधानी में धब्बे की तरह हैं। अच्छी बात यह है कि दिल्ली की नई सरकार ने इस दिशा में भी कार्य आरंभ कर दिया है। विधानसभा के पहले सत्र में भाजपा विधायकों ने कम से कम तीन क्षेत्रों का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा है। नजफगढ़ की भाजपा विधायक ने आक्रमणकारी नजफ खान के नाम वाले नजफगढ़ का नाम बदल कर नाहरगढ़ करने का प्रस्ताव दिया है। इसी तरह आरके पुरम के भाजपा विधायक ने अपने क्षेत्र के मोहम्मदपुर का नाम बदल कर माधवगढ़ करने का प्रस्ताव दिया तो मुस्तफाबाद से जीते भाजपा विधायक ने इसका नाम शिवपुरी या शिव विहार का प्रस्ताव पेश किया है।
यह पहला कदम है। इसके बाद दिल्ली के कम से कम 50 गांवों, कस्बों, मोहल्ले या विधानसभा क्षेत्रों के नाम बदलने की आवश्यकता है, जो विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर हैं। दिल्ली सल्तनत काल से लेकर मुगल काल तक के हमलावरों के नाम पर दिल्ली में विधानसभा क्षेत्रों के नाम हैं। दिल्ली में सुल्तानपुर माजरा, तिमारपुर, शकूर बस्ती, वजीरपुर, मटिया महल, बल्लीमारान, नजफगढ़, जंगपुरा, तुगलकाबाद, बदरपुर, शाहदरा, सीलमपुर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद जैसे नाम हैं। इनको तुरंत बदला जाना चाहिए। ऐसे ही हुमायूंपुर, यूसुफ सराय, बेगमपुर, सैदुलाजाब, सुल्तानपुर, नजफगढ़, मोहम्मदपुर, सराय काले खां, हौज खास इत्यादि नामों को भी बदल कर उनकी प्राचीन पहचान बहाल करनी चाहिए। आखिर हमलावरों ने प्राचीन नामों को बदल कर ही अपना नाम आरोपित किया। इसलिए इन नामों को बदलना देश की संप्रभुता, स्वतंत्रता, सम्मान और नागरिकों की गरिमा के लिए भी आवश्यक है।
राजधानी दिल्ली में अब डबल इंजन की सरकार बन गई है और जल्दी ही ट्रिपल इंजन की सरकार बन जाएगी। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद यानी एनडीएमसी में भी भाजपा का नियंत्रण है। इसलिए एमसीडी और एनडीएमसी दोनों क्षेत्रों में आने वाली सड़कों जैसे अकबर रोड, बाबर रोड, हुमायूं रोड, शाहजहां रोड, बहादुर शाह जफर मार्ग, हनीफुद्दीन मार्ग, लोदी रोड, मोहम्मद अली जौहर मार्ग, नजफ खान रोड, सफदरजंग रोड, तुगलक रोड, अंसारी रोड आदि के नाम बदलने की कार्रवाई आरंभ करनी चाहिए। सफदरजंग अस्पताल, लोधी गार्डन, निजामुद्दीन पूर्व व पश्चिम, सफदरजंग एनक्लेव, सफदरजंग डेवलपमेंट एरिया, हौज खास इत्यादि के नाम भी बदले जाने चाहिए। एक अन्य बड़ा बदलाव यह करने की आवश्यकता है कि दिल्ली पुलिस की कागजी कार्यवाही में से अरबी, फारसी शब्दों को हटाया जाए या कम किया जाए। अरबी, फारसी शब्दों की बजाय इसे तुरंत हिंदी शब्दों परिवर्तित किया जाना चाहिए। अरबी, फारसी शब्दों का अत्यधिक मात्रा में चलन गुलामी की विरासत का प्रतीक है। आम जनता और देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले नागरिकों को दिल्ली और नई दिल्ली दो नामों से असुविधा होती है। इनमें विदेशी पर्यटक शामिल हैं। इसलिए राजधानी का एक नाम इंद्रप्रस्थ या दिल्ली कर देना चाहिए।
दिल्ली में नई सरकार के गठन के साथ एक और चुनावी वादे पर क्रियान्वयन शुरू हो गया है। नई सरकार ने अपने वादे के मुताबिक नियंत्रक व महालेखापरीक्षक यानी सीएजी की लंबित रिपोर्ट सदन में पेश करनी शुरू कर दी है। शराब मामले की रिपोर्ट से अरविंद केजरीवाल सरकार की लूट का सारा कच्चा चिट्ठा सामने आ गया है। इस लूट की वजह से दिल्ली के खजाने को 2002 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। सीएजी रिपोर्ट से ही ‘शीशमहल’ का भी खुलासा हुआ। इसी तरह स्वास्थ्य की सीएजी की रिपोर्ट से दिल्ली के कथित स्वास्थ्य मॉडल की पोल खुल गई है। पता चला है कि दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिकों में थर्मामीटर तक उपलब्ध नहीं था। इन क्लीनिकों का इस्तेमाल फर्जी मरीजों के नाम पर फर्जी जांच कराने और फर्जी बिल बना कर लूट खसोट के लिए किया गया। दिल्ली की नई सरकार पिछली सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने और उस पर रोक लगाने के लिए प्रतिबद्ध है।
इसके आगे भारत और दिल्ली सरकार से अपेक्षा है कि वो त्वरित गति से दिल्ली में निम्नलिखित कार्यों को अंजाम दे–
फुटपाथों को दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ते अनाधिकृत और गैरकानूनी रेहड़ी, खोमचे, ठेले से मुक्ति दिलवाए, जिससे आम जनता को सड़कों पर दुर्घटनाग्रस्त ना होना पड़े। इनके लिए सीमित संख्या में लाइसेंस प्रदान किए जाएं। सबके लिए एक डिजाइन तय कर दी जाए और थाना प्रभारी को इनकी निगरानी की जिम्मेदारी दी जाए।
दिल्ली में ऑटोरिक्शा, टोटो आदि की भरमार है। बिना सोचे समझे वोट बैंक के लिए अनगिनत लाइसेंस बांटे गए हैं। इस संख्या की एक वैज्ञानिक जांच करवाई जाए कि कितने लाइसेंस दिए जा सकते हैं, उतने ही स्वीकृत या नवीनीकृत किए जाएं।
फिलहाल सीवर लाइन, पेड़ पौधे आदि एमसीडी, पीडब्लुडी और दिल्ली जल बोर्ड के बीच बिखरे पड़े हैं। कुछ सड़कों के रखरखाव और मरम्मत की ज़िम्मेदारी एमसीडी के पास है, तो कुछ की पीडब्लुडी के पास है। आम जनता इन तीन विभागों के बीच भ्रमित हो चक्कर काटती रहती है। इन्हें सही तरीके से बांट कर सिर्फ एक विभाग के अंतर्गत लाया जाए।
जहां सीवर लाइन के लिए नई पाइप लगती है वहां पुरानी पाइप को निकाले बिना वैसे ही छोड़ दिया जाता है। जरूरत है कि सारे सीवर लाइन और पानी की पुरानी पाइपलाइन को एक सिरे से निकाल कर बदल दिया जाए।
टेलीफोन, इंटरनेट, टीवी आदि के केबल का जाल बना हुआ है जो खंभों और इमारतों पर टंगा रहता है। यह शहर को गंदा करता है। इन सभी तारों को अंडरग्राउंड करवाया जाए।
दिल्ली में व्यवसायिक मालवाहक वाहनों जैसे ट्रक, ट्रेलर आदि के प्रवेश और निकास का समय कड़े रूप में रात 11 बजे से सुबह पांच बजे तक लागू होना चाहिए। ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन होना चाहिए। सड़क के किनारे विभिन्न प्रकार के वाहन जैसे तैसे खड़े कर दिए जाते हैं, जिससे ट्रैफिक जाम होता है और लोगों को काफ़ी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। इस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
साफ हवा, साफ पानी, साफ फुटपाथ, जल जमाव से मुक्ति, कानून व्यवस्था आदि तो दिल्ली के हर नागरिक के दिल की आवाज है। ध्यान रहे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने वादा किया था कि दिल्ली का वे स्वयं ध्यान रखेंगे, इससे दिल्ली के नागरिक निश्चिंत हैं कि मोदी है तो मुमकिन है। इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि दिल्ली के नागरिकों के इस भरोसे के अनुरूप काम हो।
अगर राजनीति की बात करें तो दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भाजपा को 43.23 लाख वोट मिले। इसके अलावा उसकी सहयोगी जदयू को एक लाख और लोजपा 50 हजार से कुछ अधिक वोट मिले। इस तरह एनडीए को पिछली बार से सात लाख वोट ज्यादा मिले हैं, जबकि आप-दा को 41.33 लाख वोट मिले, जो पिछली बार से आठ लाख कम हैं। कांग्रेस को पिछली बार से दो लाख ज्यादा यानी छह लाख वोट मिले। भाजपा को 45.56 प्रतिशत, जदयू को 1.06 प्रतिशत और लोजपा को 0.53 प्रतिशत वोट मिले। आप-दा को 43.57 प्रतिशत। कांग्रेस को 6.34 प्रतिशत वोट मिले। आप-दा के लगभग 10 प्रतिशत मतदाताओं ने उसका साथ छोड़ दिया। भाजपा लगभग 1.9 लाख यानी 3.6 प्रतिशत मतों से आगे है। अब यह आंकड़ा बढ़ता चला जाएगा और आप-दा के लिए इसे रोक पाना असंभव है क्योंकि अब उसकी शक्ति तो सारे कुकर्मों और घोटालों के खुलासे, और कानूनी कार्यवाही से लड़ने, बचने में ही चली जाएगी। इस दल में भगदड़ मचेगी। आप-दा एक मंदिर के रूप में सामने आई थी पर उसे उन्होंने शराबखाने में परिवर्तित कर दिया। एक पढ़े लिखे इंसान या बहुरूपिया कहें, ने अपना वो झूठा, पल्टीबाज और गंदा रूप दिखाया कि लोगों को उनसे नफरत होने लगी। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी अपने युवराज के प्रत्यक्ष और परोक्ष नेतृत्व में 90 चुनाव हार कर शतक लगाने की तैयारी है। इसके राष्ट्रीय दल की मान्यता पर खतरा आएगा। जल्दी ही यह दल देश के हर राज्य में सत्ता से दूर हो जाएगा और टूटने की ओर अग्रसर हो जाएगा।
(लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)